राजीव हर्ष,
वरिष्ठ पत्रकार
हमारे देश के राज्य चिन्ह में मुद्रित ध्येय वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ हमारे राजनीतिक दलों के लिए बेमानी है। झूठे वादे, गलत बयान, भ्रमित करने वाले नारे, झूठे आंकड़े, अधूरे सत्य जनसमर्थन जुटाने के प्रमुख उपकरण बन गए हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो कोई भी दल और कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जिसने सत्ता हासिल करने के लिए या अपने विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए झूठ का सहारा ना लिया हो।
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बात करें देश के विभाजन की तो सत्य पर अडिग रहने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अपने वादे और बयान पर टिके नहीं रह सके। उन्होंने कहा था कि देश का विभाजन मेरी लाश पर होगा, मगर तत्कालीन राजनीति में ऐसी करवट बदली कि आजादी से कुछ समय पहले वे देश के विभाजन के लिए सहमत हो गए। देश का विभाजन हुआ और उनका वादा झूठा साबित हुआ। गांधी जी ने कहा था कि कांग्रेस सिर्फ आजादी के लिए संघर्ष करेगी, आजादी के बाद कांग्रेस को भंग कर दिया जाएगा, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस को भंग नहीं किया गया और बाद में कांग्रेस ने सत्ता संभाली। सुभाष चंद्र बोस ने जब कांग्रेस छोड़ी तो कहा गया कि उन्होंने स्वेच्छा से पद त्याग किया है, लेकिन हकीकत यह थी कि 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमैया उम्मीदवार थे। गांधी जी चाहते थे कि पट्टाभि सीतारमैया अध्यक्ष बनें, मगर इस चुनाव में सुभाष चंद्र बोस को 1580 और पट्टाभि सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले। सुभाष चंद्र बोस की इस जीत पर गांधीजी ने कहा ‘सीता रमैया की हार मेरी हार है।’ इसके कुछ समय बाद बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
नेहरू ने विभाजन की योजना तो तुरंत स्वीकार किया
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि वे देश के बंटवारे के पक्ष में नहीं है। मगर सच्चाई यह है कि माउंट बैटन की देश के विभाजन की योजना को नेहरू ने तुरंत स्वीकार कर लिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के प्रस्ताव के संबंध में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दावे को गलत बताया जाता है। पंडित नेहरू के अनुसार भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का प्रस्ताव नहीं मिला, जबकि ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, 1950 और 1955 में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने भारत को स्थायी सदस्यता का अप्रत्यक्ष प्रस्ताव दिया था, लेकिन नेहरू ने इसे चीन के पक्ष में ठुकरा दिया। कश्मीर के मसले पर भी नेहरू ने झूठ बोला। वे कहते रहे कि यह समस्या शीघ्र हल हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए और इसे अंतरराष्ट्रीय मसला बना दिया। धारा 370 लागू कर कश्मीर को भारत से अलग दर्जा दे दिया। यह समस्या आज तक हल नहीं हो सकी है। पंडित नेहरू ने जनता को विश्वास दिलाया था कि भारत जल्द ही आत्मनिर्भर होगा और औद्योगीकरण में बड़ी छलांग लगाएगा, लेकिन हुआ इसके विपरीत। तत्कालीन सरकार की समाजवादी नीतियों और लाइसेंस राज ने निजी उद्योगों को बढ़ने नहीं दिया। देश आर्थिक संकट में चला गया। देश में गरीबी और बेरोजगारी और बढ़ गई। देश को कई बार खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा, अमेरिका से गेंहू आयात करना पड़ा। पंडित नेहरू कहते थे कि “मेरी नीतियां लोकतंत्र को मजबूत करेंगी”, लेकिन सच्चाई यह थी कि वे विरोधी विचार धारा वाले दलों का सहन नहीं कर पाते थे। इसी के चलते उन्होंने 1959 में केरल की कम्युनिस्ट पार्टी की निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया। उस समय ईएमएस नंबूदरीपाद केरल के मुख्यमंत्री थे। वे देश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। पहले उनकी सरकार देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। इस सरकार ने भूमि और शिक्षा क्षेत्र में कई सुधार किए।
पटेल की चेतावनियों को दरकिनार किया
चीन के साथ संबंधों को लेकर भी पंडित नेहरू के बयान गलत साबित हुए। वे जनरल करियप्पा और सरदार पटेल की चेतावनियों को दरकिनार कर दावा करते रहे कि कि चीन भारत का दोस्त है, वह हमला नहीं करेगा। उन्होंने “हिंदी-चीनी भाई-भाई” का नारा दिया, लेकिन 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत को पराजय का सामना करना पड़ा। भारत- चीन युद्ध से पहले नेहरू कहते थे कि भारतीय सेना पूरी तरह सक्षम है और किसी भी युद्ध के लिए तैयार है, लेकिन युद्ध में भारतीय सेना को संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ा। विज्ञान और तकनीक को लेकर किए गए नेहरू के दावे सच साबित नहीं हुए।
इंदिरा ने भी पूरे नहीं किए लोक लुभावन वादे
देश के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में से एक देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाने, बेरोजगारी मिटाने और आर्थिक विषमता दूर करने के लोक लुभावन वादे किए, लेकिन वे एक भी वादा पूरा नहीं कर पाई। इंदिरा गांधी के शासन काल में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी और देश खद्यान्न के संकट से जूझता रहा। इंदिरा सरकार की आर्थिक नीतियों ने भ्रष्टाचार और लाइसेंस राज को बढ़ावा दिया। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए काम करने का दावा करने वाली इंदिरा गांधी का आपातकाल को लेकर दिया गया बयान सबसे बड़ा झूठ था। उन्होंने कहा कि आपातकाल देश की भलाई के लिए लगाया गया। जबकि सच्चाई यह थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी गड़बड़ी के आरोप में इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दे दिया था। इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा दिया, प्रेस की स्वतंत्रता खत्म कर दी, विरोधियों को जेल में डाल दिया, और जबरन नसबंदी अभियान चलाया।
मनमोहन के भी कई दावे भ्रामक रहे
2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह सभी दलों में समादृत थे। अच्छे अर्थशास्त्री, अपनी विनम्रता और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। उनके भी कई दावे झूठ और भ्रामक सिद्ध हुए। उनके कार्यकाल में कई घोटाले हुए, लेकिन वे उन्हें नकारते रहे। सबसे बड़ा घोटाला था 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला। मनमोहन सिंह ने दावा किया कि इस 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई घोटाला नहीं हुआ। सबकुछ नियमानुसार ही हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन हकीकत कुछ और थी। 1.76 लाख करोड़ के इस घोटाले में तत्कालीन तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने अपनी मनचाही कंपनियों को सस्ती दरों पर लाइसेंस दिए। बाद में सीएजी और और सुप्रीम कोर्ट ने इसे घोटाला बताया और ए राजा द्वारा दिए गए सभी लाइसेंस रद्द कर दिए। इस बात के प्रमाण भी मिले कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सबकुछ जानते बूझते हुए इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। 2012 के कोयला घोटाले के संबंध में मनमोहन सिंह ने कहा था कि “कोयला खदानों के आवंटन में कोई घोटाला नहीं हुआ, और मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा।” लेकिन हकीकत यह थी कि 1.86 लाख करोड़ के इस घोटाले में कई कंपनियों को कोयला खदानें बिना नीलामी के आवंटित कर दी गईं। मनमोहन सिंह ने इस मामले में कोई कठोर कार्रवाई नहीं की। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में 214 कोयला खदानों का आवंटन रद्द कर दिया, जिससे सरकार की भारी बदनामी हुई। सन 2010 हुए कॉमन वेल्थ खेलों के आयोजन में 70 हजार करोड़ का घोटाला हुआ। लेकिन मनमोहन सिंह का कहना था कि इस आयोजन में पूरी पारदर्शिता बरती गई, कोई घोटाला नहीं हुआ। लेकिन इस मामले में बाद में सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार किया गया। स्वयं मनमोहन सिंह ने इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि वे घोटालों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे, लेकिन 2G, कोल, कॉमनवेल्थ, आदर्श सोसाइटी, और अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले हुए, पर सरकार ने आरोपियों पर तुरंत कार्रवाई नहीं की। मनमोहन सिंह कहते थे, “मैं किसी के दबाव में काम नहीं करता।” लेकिन सच्चाई यह थी कि उन्होंने अनेक मामलों में सोनिया गांधी और कांग्रेस हाईकमान के इशारों पर फैसले लिए।
जुमला निकला विदेशों में जमा धन वापस लाने का मोदी का वादा
इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में देश की जनता से वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो विदेशों में जमा धन वापस लाएंगे और यह वादा केवल चुनावी जुमला निकला। देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का वादा भी खोखला ही निकला। इसी तरह 8 नवंबर को नोट बंदी की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी, भ्रष्टाचार मिटेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रिजर्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट कहती है कि 99 फीसदी पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन गलत है कि पिछले 70 सालों में देश में कुछ नहीं हुआ। सच्चाई यह है कि कांग्रेस के शासन काल में देश में औद्योगिकरण की नींव रखी गई। इसरो, डीआरडीओ, एम्स, आईआईटी जैसे संस्थान खुले। देश परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बना। हरित क्रांति के जरिये देश खद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना, साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा, जनसंख्या नियंत्रण में सफलता पाई। सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में देश ने अपनी अलग पहचान कायम की। मोदी ने कहा था कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना कर देंगे। ऐसा नहीं हुआ, इसके उलट कृषि कानूनों से किसानों में असंतोष फैला और किसानों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया।
राहुल के कई आरोप निराधार निकले
नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी आए दिन कोई न कोई गलत बयानी करते रहते हैं। राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि राफेल सौदे में 30 हजार करोड़ का घोटाला हुआ है। वे इस मुद्दे को लेकर बार- बार कहते रहे चौकीदार चोर है, लेकिन कोई सबूत नहीं दे पाए। बाद में सीएजी और सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को क्लीन चिट दी और कहा इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ। इस मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी। राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने संप्रग सरकार की मनरेगा योजना को खत्म कर दिया, लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने मनरेगा को बंद नहीं किया, बल्कि इसका बजट बढ़ाया और 2020-21 में कोविड के दौरान सबसे ज्यादा फंड मनरेगा में दिया गया। राहुल गांधी का यह आरोप भी झूठ साबित हुआ कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया। सच्चाई यह है कि भारत चीन सीमा पर लम्बे समय तक तनाव रहा, लेकिन चीन भारत की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाया। नरेंद्र मोदी का विरोध करने के सिलसिले में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर दिया। लेकिन सच्चाई यह है किे नोटबंदी का असर कुछ समय के लिए जरूर पड़ा, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ गई। नोट बंदी से यूपीआई और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा मिला। जीडीपी में कुछ गिरावट आई, लेकिन यह स्थायी नुकसान नहीं था। राहुल गांधी जेब में एक लाल किताब लेकर यह आरोप लगाते हैं कि मोदी सरकार संविधान बदलना चाहती है। दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनना चाहती है। राहुल गांधी का यह आरोप जनता को भ्रमित करने के लिए है। वे इस संबंध में आज तक कोई सबूत पेश नहीं कर सके।
केजरीवाल के झूठे वादों की फेहरिस्त लम्बी
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से उपजी आम आदमी पार्टी ने थोड़े से समय में बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल की। आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल बहुत कम समय में देश के प्रमुख राजनीतिज्ञों में शुमार हो गए। केजरीवाल के झूठे वादों और दावों की फेहरिस्त लम्बी है। वे अपनी विफलताओं का ठीकरा केंद्र सरकार या अन्य किसी पर फोड़ते रहते हैं। गलत बयानी और गलत आरोप लगाने के चक्कर में वे कई बार माफी मांग चुके हैं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने बिना किसी सबूत के भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर यमुना के जल में जहर मिलाने का आरोप लगा दिया। चूंकि यह आरोप विधानसभा चुनाव के वक्त लगाया गया था, इस वजह से निर्वाचन आयोग ने केजरीवाल से जहर मिलाने के आरोप के संबंध में सबूत मांगे तो वे कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। आम आदमी पार्टी ने अपने गठन के समय कहा था कि आप कभी भी कांग्रेस या बीजेपी से समर्थन नहीं लेगी और न ही किसी के साथ गठबंधन करेगी। लेकिन सच यह है कि 2013 के दिल्ली चुनाव में आप ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाई। केजरीवाल ने बड़े जोर शोर के साथ कहा था, ‘मैं मुख्यमंत्री बनने के बाद भी लाल बत्ती, सिक्योरिटी और बड़े बंगले नहीं लूंगा।’ लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जेड प्लस सिक्योरिटी ली, वे बड़े बंगले में शिफ्ट हुए, और बड़े बंगले के नवीनीकरण पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने भी वीआईपी कल्चर अपनाया।
ममता के भी कई झूठे वादे आए सामने
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी अपने बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहती है। उनेक कई गलत बयान और झूठे वादे तो सामने आए ही हैं, सच को छिपाने के प्रयास भी सामने आए हैं। ममता बनर्जी कहती है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त है। लेकिन सच यह है कि उनकी सरकार के कई मंत्रियों पर घोटाले के आरोप लगे हैं। ममता सरकार के कार्यकाल में हुए शारदा चिटफंड घोटाले में लाखों लोगों के पैसे डूब गए। 2016 में हुए नारदा स्टिंग ऑपरेशन में कई टीएमसी नेताओं को रिश्वत लेते देखा गया। कभी ममता सरकार में अहम स्थान रखने वाले पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में जेल में हैं। उनकी सरकार के एक अन्य मंत्री राशन घोटाले के मामले में जेल की हवा खा चुके हैं। उनकी पार्टी के अनेक नेता आरोपों से घिरे हैं। घुसपैठ पश्चिम बंगाल की ज्वलंत समस्या है, लेकिन ममता बनर्जी कहती हैं कि बंगाल में कोई अवैध घुसपैठ नहीं है, और यह सिर्फ राजनीतिक आरोप है। अवैध घुसपैठ के चलते पश्चिम बंगाल के कई जिलों में जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है, जिससे सामाजिक और आर्थिक समस्याएं बढ़ने लगी है। पश्चिम बंगाल राजनीतिक हिंसा से ग्रस्त राज्य है। वैसे तो हिंसक घटनाओं का दौर वर्षपर्यंत चलता है, मगर चुनाव के दौरान राजनीकि हिंसा चरम पर होती है। ममता बनर्जी सदैव यही कहती है कि उनके कार्यकर्ता हिंसक वारदातों में शामिल नहीं होते। सच्चाई यह है कि 2018 के पंचायत चुनावों में भारी हिंसा हुई, और विपक्ष के उम्मीदवारों को नामांकन तक नहीं भरने दिया गया। ममता कहती है कि राज्य में निवेश के लिए उपयुक्त माहौल है, मगर सच्चाई यह है कि प्रदेश में उद्योगों की दशा खराब है। कई बड़े उद्योगपति राज्य से बाहर चले गए। नए निवेशक आ नहीं रहे हैं।
बयानों से पलटने में माहिर रहे हैं नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देश के प्रमुख राजनेताओं में गिना जाता है। वे झूठे वादे करने, अपने वादों और बयानों से पलटने, अपनी सुविधा से पाले बदलने वाले नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। नीतीश ने कभी कहा था, ‘मैं मिट्टी में मिल जागा मगर भाजपा में नहीं जाऊंगा।’ इतना बड़ा दावा करने वाले नीतीश आज भाजपा के साथ मिल कर सरकार चला रहे हैं, अब कह रहे हैं कि अब और कहीं नहीं जाऊंगा। नीतीश कुमार ने 2022 में भाजपा से नाता तोड़ कर इंडी गठबंधन बनाया और फिर 2024 में पुन: भाजपा के साथ आ गए। नीतीश कुमार के कई दावे गलत साबित हुए है। वे बिहार में अपराधों पर काबू पाने का दावा करते हैं, मगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े अलग कहानी कहते हैं। आंकड़ों के अनुसार बिहार में अपराध बढ़े है। न जंगल राज और माफिया राज खत्म हुआ न हत्या और बलात्कार के मामले कम हुए। नीतीश बेरोजगारी कम होने की बात करते हैं, मगर बिहार के युवा रोज़गार की तलाश में देश के अन्य राज्यों में पलायन करने पर मजबूर है। नीतीश कुमार ने बिहार में शराब बंदी लागू की। वे कहते हैं कि इससे अपराध में कमी आई, लेकिन हुआ यह कि बड़ी मात्रा में शराब की तस्करी होने लगी। शराब बंदी कानून के तहत हजारों लोग गिरफ्तार हो गए। शराब की तस्करी बंद नहीं हुई। नीतीश कुमार कहते हैं कि बिहार में उद्योगों की कमी नहीं है, मगर सच्चाई यह है कि बिहार में बड़े उद्योग नहीं है। बड़े उद्योगपति आज बिहार में निवेश करने से कतराते हैं। राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव केवल बिहार ही नहीं, देश के प्रमुख नेताओं में उनकी गिनती होती है। उनके झूठे वादों, झूठे दावों की सूची लम्बी है। वे जातिवाद को खत्म करने की बात करते हैं और सच यह है कि उनकी राजनीति जातीय समीकरणों पर ही टिकी हुई है। चारा घोटाले में दोषी पाए जाने पर जेल की हवा खा चुके हैं। लैंड फॉर जॉब स्कैम में उनके और उनके परिवार के खिलाफ जांच चल रही है। वे दावा करते हैं कि उनके शासन काल में बिहार में विकास हुआ गरीबों के हालात सुधरे। सच्चाई यह है कि 1990 से 2005 तक अधिकांश समय लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी का शासन रहा। इस दौर को जंगल राज कहा गया। बिहार का बुनियादी ढांचा चरमरा गया था।
दिग्विजय ने भी जनता को भ्रमित किया
झूठ बोल कर जनता को भ्रमित करने वालों एक प्रमुख नाम है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह। दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मुम्बई में 26 नवम्बर 2008 को हुए आतंकी हमले में हिंदू संगठनों का हाथ था। सच्चाई यह है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। पकड़े गए हमलावर अजमल कसाब और अन्य आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक निकले।
झूठ बोलने के मामले में वामपंथी दल किसी से पीछे नहीं हैं। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले वामपंथी सत्ता में आते ही दूसरे राजनीतिक दलों का दमन करने लगते हैं। विपक्ष की आवाज को खत्म करने का पूरा प्रयास करते हैं। दावा करते हैं कि वे अहिंसा में विश्वास करते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि नक्सलवाद वामपंथी विचारधारा से निकला। वाममोर्चा के शासन में पश्चिम बंगाल राजनीतिक हिंसा से ग्रस्त रहा। वाम मोर्चा शासित केरल भी राजनीतिक हिंसा से त्रस्त है। वामदल मजदूरों के कल्याण की बात करते हैं मगर सच्चाई यह है कि जब पश्चिम बंगाल में वाममोर्च का शासन था मजदूर बहुत बुरी दशा में थे। जब तक जनता जागरुक नहीं होगी, नेताओं के झूठ, गलत बयान, अधूरे सत्य पर सवाल नहीं करेगी, राजनीति में झूठ का बोलबाला यूं ही चलता रहेगा।