गांधी मैदान बना आत्मशुद्धि का तीर्थ, “जहां हर जूता बाहर, और हर भाव भीतर था…”

जोधपुर का गांधी मैदान उस सुबह कोई साधारण स्थल नहीं था। वह आत्मशुद्धि और समभाव का महातीर्थ बन गया था, जहाँ जूते-चप्पल बाहर उतरे, और अहंकार भीतर। पुरुषों का श्वेत वस्त्र जैसे शांति का प्रतीक था, तो महिलाओं की लाल साड़ियाँ जैसे साधना की ज्वाला। हज़ारों लोग, मगर कोई ऊँच-नीच नहीं — हर कोई एक समान साधक, हर चेहरा श्रद्धा में डूबा।
सुबह 8:01 पर जब नवकार मंत्र की दिव्य ध्वनि गूँजी, तो प्रतीत हुआ मानो स्वयं समय ने कुछ क्षणों के लिए ठहर कर साधना में भाग लिया हो। मंत्र की अनुगूंज न केवल आसमान में, बल्कि आत्मा की गहराइयों में प्रतिध्वनित हो रही थी।

जैसे कोई पथिक अपने भीतर के शिव को खोज रहा हो

इस पुण्य आयोजन में जोधपुर शहर के विधायक अतुल भंसाली भी आम साधकों की तरह उपस्थित हुए — बिना किसी राजनीतिक आभामंडल के, जैसे कोई पथिक अपने भीतर के शिव को खोज रहा हो।
जीतो जोधपुर चैप्टर के अध्यक्ष प्रियेश भंडारी ने पूरे आयोजन का स्वागत इस भाव से किया, मानो कोई संत अपने घर आए यायावरों को गले लगा रहा हो। और कार्यक्रम के अंत में संयोजक राजेश कर्णावट ने ऐसा धन्यवाद ज्ञापित किया, जैसे किसी मंदिर की अंतिम आरती—जो भक्त और देव, दोनों को जोड़ दे।
विज्ञान भवन से प्रधानमंत्री की वाणी जब यहाँ गूंजी, तो वह एक श्रद्धा और शासन के बीच सेतु बन गई। उपस्थित साधकों ने तालियों की गूंज से उसके हर शब्द को सम्मान दिया—वह तालियाँ किसी व्यक्ति के लिए नहीं थीं, बल्कि उस चेतना के लिए थीं जो राष्ट्र और धर्म के बीच संतुलन बनाना जानती है।

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कब्र में ही रहने दें दफ़न

यह भी साबित हुआ कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से हम आगे भले ही बढ़ रहे हैं, लेकिन मानसिक स्तर पर कुछ मान्यताओं और धारणाओं को हम आज भी छोड़ नहीं पा रहे हैं।

राजस्थान विधानसभा: गरिमा और जवाबदेही पर उठते सवाल

लोकतंत्र के इस मंदिर में जिस गरिमा और गंभीरता की अपेक्षा की जाती है, वह बार-बार तार-तार होती नजर आई।

झूठ- कोई ऐसा दल नहीं, जिसने इसका सहारा लिया नहीं

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो कोई भी दल और कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जिसने सत्ता हासिल करने के लिए या अपने विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए झूठ का सहारा ना लिया हो।

राजनीति का अपराधीकरण, कौन लगाए रोक?

राधा रमण,वरिष्ठ पत्रकार वैसे तो देश की राजनीति में 1957 के चुनाव में ही बूथ कैप्चरिंग की पहली वारदात बिहार के मुंगेर जिले (अब बेगुसराय...

AI- नियमित हो, निरंकुश नहीं

एक दिलचस्प दावा यह भी है कि यह मॉडल सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होगा। वहीं सरकार ने एआइ के इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए 10,372 करोड़ रुपए का बजट भी मंजूर कर दिया है।

शनि ग्रह का राशि परिवर्तन

ऐसा नहीं है कि बाकी राशियां शनि के इस स्थान परिवर्तन के प्रभाव से अछूती रह जाएंगी। सभी राशियों पर कुछ अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव पढ़ने सुनिश्चित हैं।

ट्रम्प का डॉलर डिवेल्यूएशन का डर्टी प्लान!

एक तरफ अपना एक्सपोर्ट को बढ़ाने के लिए उत्पाद आधारित नौकरियां पैदा करने का बोझ ट्रम्प पर है, दूसरी ओर वे ये भी नहीं चाहते हैं कि ब्रिक्स देश डॉलर के अलावा अन्य भुगतान के विकल्प पर सोचें।

बाबर को हरा चुके थे राणा सांगा

राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के भाषण में राणा सांगा को बाबर की मदद करने के कारण ‘गद्दार’ कहे जाने से देश भर में बवाल मचा हुआ है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। इनके मुताबिक राणा सांगा ने बाबर की मदद तो कभी नहीं की, बल्कि उन्होंने फरवरी 1527 ई. में खानवा के युद्ध से पूर्व बयाना के युद्ध में मुगल आक्रान्ता बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता था।

मानवीय संवेदनाओं का चितेरा- सत्यजित रे

यह मुख़्तसर सा बायोडाटा दुनिया के मानचित्र पर भारतीय फिल्मों को स्थापित करने वाले उस फ़िल्मकार का है, जिसे करीब से जानने वाले ‘माणिक दा’ के नाम से और दुनिया सत्यजित रे (राय) के नाम से पहचानती है।

काश, फिर खिल जाए बसंत

पूरी दुनिया जहां हर 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाती है और 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस। भारत के लिए भी यह महीना काफी महत्वपूर्ण है, खासकर कला, संस्कृति और तीज त्योहारों के कारण।

शब्द भाव का खोल है, कविता निःशब्दता की यात्रा

विचार किसी के प्रति चिंता, प्रेम, आकर्षण, लगाव, दुराव, नफरत का संबंध रखता है। वह चाहे कोई मनुष्य हो, समाज हो,  देश हो, जाति- धर्म हो या भाषा। किंतु भाव किसी से संबंधित नहीं होता।

बाबा रे बाबा

सरकार के साथ हैं या उनके विरोध में। कब, कैसे, कहां और किस बात पर वे सरकार से नाराज हो जाएं, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। माटी और आंदोलन के बूते राजस्थान की सियासत के जमीनी नेता माने जाने वाले किरोड़ी लंबे समय से मंत्री पद से इस्तीफा देकर भी बतौर मंत्री काम कर रहे हैं।

स्ट्रेटेजिक टाइम आउट! और गेम चेंज

ड्रीम-11 की तरह माय-11 सर्कल, मायटीम-11, बल्लेबाजी जैसी कई ऐप्स ने स्पोर्ट्स फैंटेसी के मार्केट में कदम रख दिया। सभी ऐप्स तेजी से ग्रो भी कर रहे हैं। ये करोड़ों तक जीतने का लुभावना ऑफर देकर लोगों को इसमें पैसे लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। और इनका प्रमोशन करते हैं आईपीएल के स्टार क्रिकेटर्स।

किंकर्तव्यविमूढ़ कांग्रेस

कांग्रेस के लिए मुफीद रहे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी उसके हाथ से निकल गए और हार का असर यह हुआ कि इन प्रदेशों में भी कांग्रेस अब तक 'कोमा' से निकल नहीं पा रही।

वह विश्व विजय

दादा ध्यानचंद के सपूत बेटे के इस गोल ने देश को दिलाया पहला विश्व कप। इसके 8 साल बाद वर्ष 1983 में कपिल देव की टीम ने भारत को दिलाया था क्रिकेट का विश्व कप।

इटली का बेटा, राजस्थान की माटी का अपना – लुइजि पिओ तैस्सितोरी

वर्ष 1914 में, तैस्सितोरी बीकानेर पहुंचे। एक विदेशी, जो उस भाषा के प्रेम में खिंचा आया था, जिसे तब भारत में भी उचित मान्यता नहीं मिली थी। बीकानेर की हवाओं में जैसे कोई पुरानी पहचान थी, यहां की धूल में शायद कोई पुराना रिश्ता।

बात- बेलगाम (व्यंग)

संयम लोढ़ा की राजनीति किसी कसीदाकारी की तरह महीन नहीं, बल्कि एक धारदार तलवार की तरह है— सीधी, पैनी और कभी-कभी बेलगाम। उनकी राजनीति में विचारधारा से ज्यादा आक्रामकता और बयानबाजी का तड़का देखने को मिलता है।

बोल हरि बोल

अपन भी आज बिना चिंतन के बैठे हैं। अपनी मर्जी से नहीं, जब लिखने कहा गया तो ऐसे ही मूर्खता करने बैठ गए! कहा गया कि आजकल जो चल रहा है, उस पर एक नजर मारिए और अपनी तीरे नजर से लिख डालिए। जिसको समझ आया वो व्यंग्य मान लेगा, वरना मूर्खता में तो आपका फोटू सुरिंदर शर्मा से मीलों आगे ही है।

कोटा, एक जिद्दी शहर

अनुभव से सीखने की है और विरासत को और आगे ले जाने की है। चम्बल के पानी की तासीर कहें या यहां के लोगों की मेहनत की पराकाष्ठा, इतिहास में देखें तो कोटा ने जब-जब जिद पाली है कुछ करके दिखाया है।

वैश्विक व्यापार और भारत: टैरिफ की नई चुनौतियां

ताजा टैरिफ प्रकरण में ये जानना जरूरी है कि भारत जहां अमेरिकी वस्तुओं पर 9.5 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, वहीं भारतीय आयात पर अमेरिकी शुल्क केवल 3 प्रतिशत ही है। ट्रम्प रैसिप्रोकल नीति (जैसे को तैसा) के जरिए सभी देशों से इसी असंतुलन को खत्म करना चाहते हैं।