सरहदों की निगहबानी में AI का दमखम

प्रो. (डॉ.) सचिन बत्रा,
वरिष्ठ पत्रकार

किसी भी देश की सुरक्षा के लिए सरहदों पर तैनात सैनिक अनगिनत चुनौतियों का सामना करते हैं। जैसे जलवायु, तापमान, विषम परिस्थितियां, दुश्मन पर लगातार निगरानी, जमीन में छिपी लैंड माइंस, घात लगाए घुसपैठिए, औचक हमले और हवाई कार्रवाई आदि। ऐसे में चाहे जितनी भी सतर्कता क्यों न बरती जाए, किसी भी एक तरफा हमले या घात लगाकर की गई कार्रवाई में जान—माल की क्षति हो ही जाती है। लेकिन अब सरहदों की निगहबानी के लिए पूरी दुनिया ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नित नए समाधान व उपाय खोज रही है। इसमें AI आधारित स्वायत्त हथियार प्रणाली, निगरानी यंत्र, बारूदी सुरंग डिटेक्टर सहित AI संचालित बख्तरबंद वाहन ही नहीं टैंक, मिसाइल, ड्रोन, लड़ाकू विमान और खोजी रोबो—डॉग्स विकसित किए जा रहे हैं।

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दुनिया के दूसरे देशों पर नजर डालें तो अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने AI पर अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना स्टारगेट पर 500 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा करके, AI पर एकाधिकार की अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। हालांकि अमेरिका का रक्षा विभाग प्रोजेक्ट मेवन के तहत ड्रोन से प्राप्त वीडियो का AI विश्लेषण करते हुए खुफिया डाटा निर्मित करता है। वहीं 2018 में जेएआइसी यानि जॉइंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेंटर स्थापित कर AI एकीकरण की प्रक्रिया को अभियान का रूप दिया गया और स्काईबॉर्ग प्रोजेक्ट के तहत स्वायत्त ड्रोन विकसित किए गए हैं। चीन ने भी जहां AI से लैस सीएच—7 ड्रोन विकसित कर लिए हैं। साथ ही स्वचालित AI रोबॉट्स ही नहीं, युद्ध में रणनीतियों का पूर्वानुमान लगाने वाले सिमुलेशन AI सॉफ्टवेयर तैयार कर लिए हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने 2023 के रक्षा बजट में 261 बिलियन डॉलर में सर्वाधिक खर्च AI पर किया। रूस की बात करें तो उसने भी 2025 तक 400 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। साथ ही AI आधारित उपग्रह निगरानी प्रणालियों को ईजाद कर लिया है। इसके अलावा यूरान—9 नामक स्व-निर्देशित सैन्य वाहन व टैंक का विकास किया है। इजराइल का रुख करें तो इस बार युद्ध में उसके ”आयरन डोम” के चमत्कार समाचारों में छाए रहे। उसके मिसाइल डिफेंस AI सिस्टम, हमलावर रॉकेट और सरहदों में दाखिल होने वाली मिसाइलों को नेस्तनाबूद करने में बेहद सफल रहे। अलबत्ता वहां AI पर अनुसंधान और विकास में 20 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष निवेश किए जाते रहे हैं।

टास्क फोर्स का गठन

खास बात यह है कि हमारे देश में भी सेना ने बहुत पहले ही AI को ‘आर्मड विद इंटेलिजेंस’ की सोच के साथ अपनाते हुए एक रणनीति के तहत युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिया था। 2018 में रक्षा क्षेत्र में AI के इस्तेमाल पर एक टास्क फोर्स का गठन किया गया। वहीं 2019 में ‘सप्त शक्ति’ नामक AI सेमिनार के जरिए हिसार में मंथन किया गया। इसी प्रकार 2022 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन डिफेंस के तहत एक प्रदर्शनी आयोजित करते हुए AI आधारित 75 तकनीक और सैन्य उपकरणों को लॉन्च किया गया। जिन्हें डीआरडीओ और डिफेंस पीएसयू द्वारा पहले ही जांचा परखा जा चुका था। इसी प्रकार दिसंबर में बेंगलुरु में भारतीय सेना AI इनक्यूबेशन सेंटर यानी आइएएआइआइसी की शुरुआत की जो सेना को अत्याधुनिक AI तकनीक से लैस करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यानि देश की रक्षा व युद्ध को लेकर आधुनिकीकरण की कवायद सतत रूप से जारी है।

गोलीबारी से होने वाली क्षति से बचाया

गौरतलब है कि पिछले साल ही हमारी सेना ने अखनूर में AI संचालित मानव रहित वाहन की मदद से आतंकियों का खात्मा किया था। इस मॉडल ऑपरेशन ने जहां सैनिकों को छिपे हुए खतरे से आगाह किया, वहीं आतंकियों की गोलीबारी से होने वाली क्षति से भी बचाया। यह तो एक उदाहरण भर है, लेकिन यह भी जानना बहुत दिलचस्प होगा कि हमारी एक बंदूक ही सैनिक को दुश्मन की गतिविधि पर अलर्ट करते हुए टारगेट की दूरी, सही निशाना और सही समय बताते हुए स्वत: दुश्मन को ढेर कर दे। जी हां, यह संभव हो गया है। हमारी सेना ने AI का उपयोग करते हुए स्मार्ट स्कोप AI फॉर टारगेट एक्विजिशन एंड एंगेजमेंट नामक डिवाइस विकसित किया है, जो किसी भी हथियार को सटीक मारक क्षमता देने में सक्षम है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह भी है कि कम से कम गोली खर्च और जान की सलामती को आश्वस्त करता है। वहीं एडीबी यानि आर्मी डिजाइन बोर्ड के एक्सपर्ट द्वारा सरहदों पर तैनात किए जा रहे साइलेंट संतरी ऐसे रोबोटिक रेल माउंटेड डिवाइस हैं जो दुश्मन, आतंकी या घुसपैठियों की तुरंत सूचना देकर सेना को सचेत करने में सक्षम हैं। खास बात यह भी है कि यह AI अलर्ट सिस्टम फेस डिटेक्शन के जरिए अपने देश के सैनिक और बाहरी तत्व की परख कर सकता है। ऐसे ही दुश्मन के टैंकों को पल भर में तबाह करने वाली एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल भी AI तकनीक से अपनी मारक क्षमता का लोहा मनवा चुकी है। ऐसी ही तकनीक का सफल उपयोग रूस और यूक्रेन युद्ध में किया गया था। इसी प्रकार संहारक लैंड माइंस से निपटने के लिए भारतीय सेना ने AI पावर्ड अनमैन्ड व्हीकल भी तैयार कर लिए हैं जो बारूदी सुरंगों की शिनाख्त ही नहीं, उसे निष्क्रिय करने में मददगार साबित हो रहे हैं। वहीं प्रिज्म यानी प्रोएक्टिव रियल टाइम इंटेलिजेंस एंड सर्विलांस मॉनिटरिंग सिस्टम तो बॉर्डर पर मीलों दूर की बनाई वीडियो की गुणवत्ता को AI तकनीक से बढ़कार, असपष्ट से अधिक स्पष्ट करने में कामयाब रही है। इससे सरहदों की निगरानी और चाक चौबंद हो गई है।

तेजी से बदल रहा है वारफेयर

कुल मिलाकर आधुनिक वारफेयर बहुत तेजी से बदल रहा है, जिसमें सैन्य कार्यप्रणाली और उपकरणों को नवीनतम तकनीक से बहुउद्देशीय बनाया जा रहा है। इसमें प्रशिक्षण, निगरानी, लॉजिस्टिक्स, यूएवी, लीथल आटोनोमस वेपन सिस्टम सहित घातक स्वायत्त शस्त्र प्रणाली व विविध प्रकार की रोबॉटिक्स शामिल है। वहीं युद्ध का दायरा भी बदल गया है। जैसे कि अब हमें सेटेलाइट की सुरक्षा, देश में हर तरह के डिजिटल यंत्रों को संरक्षित करने और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को पूर्वनियोजित विध्वंस से बचाने के लिए भी गहन पड़ताल और सुरक्षा यंत्र विकसित करने होंगे। इस मामले पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बयान उल्लेखनीय है कि ‘जो AI सेक्टर को काबू में रखेगा, वही दुनिया पर राज करेगा।’ इसके मद्देनजर अमेरिका, रूस, चीन और इजराइल ही नहीं, भारत भी अपना AI दमखम आजमाने को तैयार है।

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कट्टर नक्सली से अभिनेता बनने का सफर

यह बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है कि मिथुन फ़िल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले एक कट्टर नक्सली थे, लेकिन उनके परिवार को कठिनाई का सामना तब करना पड़ा जब उनके एकमात्र भाई की मौत दुर्घटनावश बिजली के करंट लगने से हो गई। इसके बाद मिथुन अपने परिवार में लौट आये और नक्सली आन्दोलन से खुद को अलग कर लिया।

रचना के जरिए खुद को ढूंढता है रचनाकार

साहित्यकार समाज की विसंगतियों को, विद्रूपताओं को ज्यों का त्यों सामने नहीं रखता, संवेदनात्मक तरीके से सामने रखता है। जिसे संवेदनात्मक ज्ञान कहा है। यह संवेदना पहले रचनाकार को रचती है। ‘हुआ करती जब कविता पूर्ण, हुआ करता कवि का निर्माण।’ पहले कवि का निर्माण होता है। साहित्य पहले रचनाकार को रचता है। उसके होने के अर्थ से उसका परिचय करवाता है। एक रचनाकार रचना के माध्यम से अपने होने को ढूंढता है। वह अपनी स्वयं की तलाश में निकलता है।

एसआई भर्ती की रिपोर्ट पेश हो

जस्टिस समीर जैन की अगुवाई में कोर्ट ने सरकार को 21 फरवरी, 15 मई, और 26 मई 2025 तक निर्णय करने के लिए समय सीमा दी। कोर्ट ने चेतावनी दी कि 26 मई तक निर्णय न होने पर वह हस्तक्षेप करेगा।

पग- पग पर पीड़ा परेशानी

लाखों श्रद्धालु पहाड़ी ट्रैक से 3584 मीटर ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर में महादेव के दर्शन करने जाते हैं, उनके लिए कितनी असुविधाएं उस मार्ग पर मौजूद रहती है। गौरी कुंड से 16 किलोमीटर के ट्रैक पर पग- पग पर परेशानी का आलम है।

टेस्ट के ताज का छोटा सरताज

शुरुआती दौर में बावूमा की खूबियों का किसी को पूरा अंदाज़ा नहीं था। उन्होंने तानों और उपहासों की लंबी श्रृंखला झेली। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। खेल पर नियंत्रण बनाए रखते हुए उन्होंने न सिर्फ अपने देश के क्रिकेट प्रेमियों के 27 वर्षों के इंतज़ार को खत्म किया, बल्कि 'चोकर' की पहचान को मिटाकर दक्षिण अफ्रीका को आईसीसी ट्रॉफी दिलाई।

जीवन मूल्यों के संवाहक हैं हमारे बुजुर्ग

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग बीस करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार हैं, जिसमें बुजुर्गों की संख्या बहुत अधिक है। भारत में लगभग बयालीस प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एन्क्जाइटी से त्रस्त हैं। डिप्रेशन और एन्क्जाइटी की मूल वजहों में से एक है अकेलापन।

भारतीय छोड़ रहे, पश्चिम अपना रहा

संयुक्त परिवार का मतलब केवल साथ रहना ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक निवेश है, जहां पीढ़ियां साझा जिम्मेदारियों और मूल्यों से बंधी होती हैं।

स्वतंत्रता व नैतिकता के बीच संतुलन जरूरी

सोनम की इस जघन्य घटना ने यह भी साबित किया है कि आज के दौर में विवाह जैसे पवित्र संबंध को कुछ लोग सिर्फ स्वार्थ और योजनाओं का जरिया बना रहे हैं। सोशल मीडिया, फ़िल्मों और भौतिकवादी जीवनशैली ने संबंधों की गरिमा को प्रभावित किया है।

बिहार में इस बार किसकी बहार

भले ही मतदान की तिथियों पर चुनाव आयोग खामोश है, लेकिन बिहार के सियासी दलों ने अपने पत्ते खोलने प्रारंभ के दिए हैं। सीटों की दावेदारी पर राज्य के 3 बड़े दलों (राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल– यूनाइटेड) ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उन्हें समर्थन देने वाली पार्टियों के नेता मनमाफिक दावेदारी करने लगे हैं।

एआई को पता है.. आप क्या सोच रहे हो

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब इतना सक्षम होने जा रहा है कि हमारे अनकहे वाक्यों और मन के भीतर गोपनीय तरीके से छिपाई बातों को जगजाहिर कर देगा। हालांकि इस एआइ तकनीक का विकास गंभीर किस्म के रोगियों, न बोल पाने वाले बुजुर्गों और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अक्षम लोगों की तकलीफ को समझने के लिए किया गया है। लेकिन कामयाब हो रहे प्रयोगों को देखकर ऐसा माना जा सकता है कि एक समय बाद ऐसी मशीनें अदालतों और पुलिस थानों में भी तैनात होकर आरोपियों के दिमाग में उपज रहे सही गलत का पूरा बयान ही लिखकर सामने रख दे। 

जब आसमान ने सबकुछ निगल लिया

12 जून 2025 को भारत ने एक ऐसा हादसा देखा, जिसने केवल विमान यात्रियों की ही नहीं, बल्कि ज़मीन पर मौजूद मासूम जिंदगियों को भी निगल लिया। अहमदाबाद में हुआ यह हादसा सिर्फ एक विमान दुर्घटना नहीं था। यह भरोसे की बुनियाद पर गिरी ऐसी दरार है, जिसने हवाई सुरक्षा, मानवीय सहायता और सरकारी तंत्र की संवेदनशीलता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हादसे के बाद जो हुआ, वही असली परीक्षा है– तंत्र की भी, और हमारी संवेदनाओं की भी।

छापों का चमत्कार और सत्ता का संस्कार

असल में ये छापे खुद को शुद्ध करने की प्रक्रिया हैं, जहां नेता खुद ही पकड़ते हैं, खुद ही डांटते हैं, और फिर खुद को चाय पर भी बुला लेते हैं। जनता देख रही है और ताली भी बजा रही है, क्योंकि नाटक रोज़ बदलता है और टिकट भी नहीं लगता।

वोट हम दोनों मिलकर बटोरेंगे- सचिन

गहलोत और पायलट की यह नजदीकी कई परतों में देखी जा सकती है। पहली— सार्वजनिक संवाद का नियंत्रण। पिछले वर्षों में जो आरोप-प्रत्यारोप मीडिया की सुर्खियां बनते थे, वे अब संवाद और सौहार्द में बदल गए हैं। दूसरी— चुनावी तैयारी। 2028 के विधानसभा चुनावों और उसके बाद 2029 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व समझ चुका है कि आंतरिक दरारों को पाटे बिना जनता का भरोसा पाना असंभव होगा।

“फैसला नहीं लेना ही सबसे बड़ा फैसला है!”

दिसंबर 2023 में प्रदेश की जनता ने बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपी। उम्मीदें थी कि “डबल इंजन” अब सिर्फ़ ट्रेन का नहीं, ट्रांसफॉर्मेशन का प्रतीक बनेगा। परंतु अफ़सोस, डेढ़ साल के इस राजनीतिक अध्याय ने ये साबित कर दिया कि.. “कभी-कभी सबसे बड़ा फैसला… कोई फैसला न लेना भी होता है!”

नदी नीरे- चमक जाएगी तकदीरें?

भारत की नई जल रणनीति जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह योजना न केवल कृषि और जल आपूर्ति के क्षेत्र में बदलाव लाएगी, बल्कि भारत की जल सुरक्षा और रणनीतिक संप्रभुता को भी सुदृढ़ करेगी। जल अब केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पूंजी बन चुका है, जिसका विवेकपूर्ण उपयोग आने वाले समय में भारत की स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि का निर्धारक होगा।

रुपया बनाम डॉलर: भारत की वैश्विक मुद्रा रणनीति

भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ एक ऐसी विश्व व्यवस्था की ओर अग्रसर है, जिसमें एकमात्र मुद्रा का प्रभुत्व नहीं, बल्कि बहुध्रुवीयता और न्याय संगत लेनदेन को महत्व मिले। रुपया इस यात्रा में आर्थिक से अधिक वैचारिक औजार बनता जा रहा है।

‘हम क्रांति करके शांति का नोबेल लेकर रहूंगा’

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का पसंदीदा शौक शादियां करने के अलावा दूसरों के फटे मे टांग अड़ाना भी है। वे भारत-पाक के बीच युद्ध रुकवाने का तीस-मारखांनुमा दावा इतना दोहरा चुके हैं कि अब नींद में भी सीजफायर-सीजफायर की आवाजें आती हैं।

ईरान- इस्रायल युद्ध – उतर गए कई नकाब!

पाकिस्तान सैन्य भाषा में जब ‘न्यूट्रल’ यानी खत्म कर दिया गया तो अमेरिका ने ईरान पर सीधा हमला करने का कदम उठाया। उसे भरोसा था कि चीन और रूस भले ही ईरान के दोस्त और व्यापारिक भागीदार हों, लेकिन वे हमले की निंदा के अलावा कुछ नहीं करेंगे। पाकिस्तान को अपने पक्ष में मिला लेना ही ट्रम्प की सबसे बड़ी जीत थी।

भारत ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर से किया इनकार

पहलगाम हमले को नजरअंदाज करने वाले संयुक्त बयान पर भारत ने हस्ताक्षर न करके न सिर्फ़ अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया, बल्कि चीन पाक गठजोड़ की मंशा पर भी सवाल खड़े कर दिए।

समझ आ गया महाशक्ति का महाखेल

हाल में पहलगाम आंतकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच भड़के तनाव के बाद भी अमेरिका ने यही चाल खेली थी। उसने पाकिस्तान को भरोसे में लेकर दुनियाभर के आश्वासन उसकी झोली में डाल दिए। पाकिस्तान को भी लगा कि अमेरिका की गोद में बैठकर वह सुरक्षित रहेगा और भारत उस पर आगे काई कार्रवाई नहीं करेगा। अमेरिका ने भारत के साथ जो चालें चलीं, कमोबेश वैसा ही इस्रायल के साथ किया। ट्रम्प ने अपने दोनों अच्छे दोस्तों भारत और इस्रायल के साथ खड़े होने का ड्रामा भी रच दिया और अपना कूटनीतिक दांव भी खेल दिया।