यह बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है कि मिथुन फ़िल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले एक कट्टर नक्सली थे, लेकिन उनके परिवार को कठिनाई का सामना तब करना पड़ा जब उनके एकमात्र भाई की मौत दुर्घटनावश बिजली के करंट लगने से हो गई। इसके बाद मिथुन अपने परिवार में लौट आये और नक्सली आन्दोलन से खुद को अलग कर लिया।
साहित्यकार समाज की विसंगतियों को, विद्रूपताओं को ज्यों का त्यों सामने नहीं रखता, संवेदनात्मक तरीके से सामने रखता है। जिसे संवेदनात्मक ज्ञान कहा है। यह संवेदना पहले रचनाकार को रचती है। ‘हुआ करती जब कविता पूर्ण, हुआ करता कवि का निर्माण।’ पहले कवि का निर्माण होता है। साहित्य पहले रचनाकार को रचता है। उसके होने के अर्थ से उसका परिचय करवाता है। एक रचनाकार रचना के माध्यम से अपने होने को ढूंढता है। वह अपनी स्वयं की तलाश में निकलता है।
जस्टिस समीर जैन की अगुवाई में कोर्ट ने सरकार को 21 फरवरी, 15 मई, और 26 मई 2025 तक निर्णय करने के लिए समय सीमा दी। कोर्ट ने चेतावनी दी कि 26 मई तक निर्णय न होने पर वह हस्तक्षेप करेगा।
लाखों श्रद्धालु पहाड़ी ट्रैक से 3584 मीटर ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर में महादेव के दर्शन करने जाते हैं, उनके लिए कितनी असुविधाएं उस मार्ग पर मौजूद रहती है। गौरी कुंड से 16 किलोमीटर के ट्रैक पर पग- पग पर परेशानी का आलम है।
शुरुआती दौर में बावूमा की खूबियों का किसी को पूरा अंदाज़ा नहीं था। उन्होंने तानों और उपहासों की लंबी श्रृंखला झेली। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। खेल पर नियंत्रण बनाए रखते हुए उन्होंने न सिर्फ अपने देश के क्रिकेट प्रेमियों के 27 वर्षों के इंतज़ार को खत्म किया, बल्कि 'चोकर' की पहचान को मिटाकर दक्षिण अफ्रीका को आईसीसी ट्रॉफी दिलाई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग बीस करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार हैं, जिसमें बुजुर्गों की संख्या बहुत अधिक है। भारत में लगभग बयालीस प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एन्क्जाइटी से त्रस्त हैं। डिप्रेशन और एन्क्जाइटी की मूल वजहों में से एक है अकेलापन।
सोनम की इस जघन्य घटना ने यह भी साबित किया है कि आज के दौर में विवाह जैसे पवित्र संबंध को कुछ लोग सिर्फ स्वार्थ और योजनाओं का जरिया बना रहे हैं। सोशल मीडिया, फ़िल्मों और भौतिकवादी जीवनशैली ने संबंधों की गरिमा को प्रभावित किया है।
भले ही मतदान की तिथियों पर चुनाव आयोग खामोश है, लेकिन बिहार के सियासी दलों ने अपने पत्ते खोलने प्रारंभ के दिए हैं। सीटों की दावेदारी पर राज्य के 3 बड़े दलों (राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल– यूनाइटेड) ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उन्हें समर्थन देने वाली पार्टियों के नेता मनमाफिक दावेदारी करने लगे हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब इतना सक्षम होने जा रहा है कि हमारे अनकहे वाक्यों और मन के भीतर गोपनीय तरीके से छिपाई बातों को जगजाहिर कर देगा। हालांकि इस एआइ तकनीक का विकास गंभीर किस्म के रोगियों, न बोल पाने वाले बुजुर्गों और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अक्षम लोगों की तकलीफ को समझने के लिए किया गया है। लेकिन कामयाब हो रहे प्रयोगों को देखकर ऐसा माना जा सकता है कि एक समय बाद ऐसी मशीनें अदालतों और पुलिस थानों में भी तैनात होकर आरोपियों के दिमाग में उपज रहे सही गलत का पूरा बयान ही लिखकर सामने रख दे।
12 जून 2025 को भारत ने एक ऐसा हादसा देखा, जिसने केवल विमान यात्रियों की ही नहीं, बल्कि ज़मीन पर मौजूद मासूम जिंदगियों को भी निगल लिया। अहमदाबाद में हुआ यह हादसा सिर्फ एक विमान दुर्घटना नहीं था। यह भरोसे की बुनियाद पर गिरी ऐसी दरार है, जिसने हवाई सुरक्षा, मानवीय सहायता और सरकारी तंत्र की संवेदनशीलता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हादसे के बाद जो हुआ, वही असली परीक्षा है– तंत्र की भी, और हमारी संवेदनाओं की भी।
असल में ये छापे खुद को शुद्ध करने की प्रक्रिया हैं, जहां नेता खुद ही पकड़ते हैं, खुद ही डांटते हैं, और फिर खुद को चाय पर भी बुला लेते हैं। जनता देख रही है और ताली भी बजा रही है, क्योंकि नाटक रोज़ बदलता है और टिकट भी नहीं लगता।
गहलोत और पायलट की यह नजदीकी कई परतों में देखी जा सकती है। पहली— सार्वजनिक संवाद का नियंत्रण। पिछले वर्षों में जो आरोप-प्रत्यारोप मीडिया की सुर्खियां बनते थे, वे अब संवाद और सौहार्द में बदल गए हैं। दूसरी— चुनावी तैयारी। 2028 के विधानसभा चुनावों और उसके बाद 2029 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व समझ चुका है कि आंतरिक दरारों को पाटे बिना जनता का भरोसा पाना असंभव होगा।
दिसंबर 2023 में प्रदेश की जनता ने बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपी। उम्मीदें थी कि “डबल इंजन” अब सिर्फ़ ट्रेन का नहीं, ट्रांसफॉर्मेशन का प्रतीक बनेगा। परंतु अफ़सोस, डेढ़ साल के इस राजनीतिक अध्याय ने ये साबित कर दिया कि..
“कभी-कभी सबसे बड़ा फैसला… कोई फैसला न लेना भी होता है!”
भारत की नई जल रणनीति जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह योजना न केवल कृषि और जल आपूर्ति के क्षेत्र में बदलाव लाएगी, बल्कि भारत की जल सुरक्षा और रणनीतिक संप्रभुता को भी सुदृढ़ करेगी। जल अब केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पूंजी बन चुका है, जिसका विवेकपूर्ण उपयोग आने वाले समय में भारत की स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि का निर्धारक होगा।
भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ एक ऐसी विश्व व्यवस्था की ओर अग्रसर है, जिसमें एकमात्र मुद्रा का प्रभुत्व नहीं, बल्कि बहुध्रुवीयता और न्याय संगत लेनदेन को महत्व मिले। रुपया इस यात्रा में आर्थिक से अधिक वैचारिक औजार बनता जा रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का पसंदीदा शौक शादियां करने के अलावा दूसरों के फटे मे टांग अड़ाना भी है। वे भारत-पाक के बीच युद्ध रुकवाने का तीस-मारखांनुमा दावा इतना दोहरा चुके हैं कि अब नींद में भी सीजफायर-सीजफायर की आवाजें आती हैं।
पाकिस्तान सैन्य भाषा में जब ‘न्यूट्रल’ यानी खत्म कर दिया गया तो अमेरिका ने ईरान पर सीधा हमला करने का कदम उठाया। उसे भरोसा था कि चीन और रूस भले ही ईरान के दोस्त और व्यापारिक भागीदार हों, लेकिन वे हमले की निंदा के अलावा कुछ नहीं करेंगे। पाकिस्तान को अपने पक्ष में मिला लेना ही ट्रम्प की सबसे बड़ी जीत थी।
पहलगाम हमले को नजरअंदाज करने वाले संयुक्त बयान पर भारत ने हस्ताक्षर न करके न सिर्फ़ अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया, बल्कि चीन पाक गठजोड़ की मंशा पर भी सवाल खड़े कर दिए।
हाल में पहलगाम आंतकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच भड़के तनाव के बाद भी अमेरिका ने यही चाल खेली थी। उसने पाकिस्तान को भरोसे में लेकर दुनियाभर के आश्वासन उसकी झोली में डाल दिए। पाकिस्तान को भी लगा कि अमेरिका की गोद में बैठकर वह सुरक्षित रहेगा और भारत उस पर आगे काई कार्रवाई नहीं करेगा। अमेरिका ने भारत के साथ जो चालें चलीं, कमोबेश वैसा ही इस्रायल के साथ किया। ट्रम्प ने अपने दोनों अच्छे दोस्तों भारत और इस्रायल के साथ खड़े होने का ड्रामा भी रच दिया और अपना कूटनीतिक दांव भी खेल दिया।