कई दिग्गजों पर भारी थे महिपाल, शैलेष कुमार व सज्जन
– सुधांशु टाक,
लेखक, समीक्षक
राजस्थान की धरती अपने क़िलों- महलों और वीरगाथाओं के लिए तो मशहूर है ही, यहां की समृद्ध संस्कृति, कला और गीत-संगीत भी हमेशा से लोगों को आकर्षित करते आए हैं। राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर जोधपुर, जिसकी स्थापना 12 मई 1459 में मारवाड़ रियासत के राव जोधा ने की थी, प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी भी कहलाता है। जोधपुर की सांस्कृतिक विरासत, सुंदरता और यहां की अपणायत के लिए जोधपुर विश्व प्रसिद्ध है। जोधपुर मारवाड़ की कला क्षेत्र में अपनी समृद्ध विरासत रही है। यहां की कला और गीत-संगीत से हिंदी सिनेमा भी अछूता नहीं रहा और बोलते सिनेमा के शुरूआती दिनों से ही जोधपुर के कलाकार हिंदी सिनेमा का अटूट हिस्सा बन बैठे। खेमचन्द प्रकाश, महिपाल, सज्जन जैसे जोधपुर के कलाकारों ने सिनेमा के क्षेत्र में भरपूर योगदान दिया।
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वैसे जोधपुर देखने के साथ- साथ महसूस करने का शहर है। कला और संस्कृति के शहर जोधपुर में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। नाटक या साहित्य हो या फिर प्रदर्शकारी कलाएं, हर विधा के कलाकार यहां मिल जाएंगे। यही वजह है कि शहर का फिल्मों से भी पुराना नाता रहा है। वर्तमान समय की बात करें तो ऐसे कई युवा और वरिष्ठ कलाकार हैं, जो अपने अभिनय से बालीवुड में धाक जमाए हुए हैं। आइए जोधपुर के स्थापना दिवस पर जानते हैं यहां के उन कलाकारों को जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना विशिष्ट योगदान दिया।
चौथी क्लास में ही मंच पर उतर गए थे महिपाल भंडारी
महिपाल भंडारी, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिपाल के नाम से जाने जाते थे। अपने जमाने में स्टार अभिनेता रहे। 24 दिसम्बर 1919 को जोधपुर के एक रईस ओसवाल जैन परिवार में पैदा हुए महिपाल भंडारी महज़ 6 साल के थे कि उनकी मां गुज़र गईं। पिता का कारोबार कोलकाता में था, इसलिए महिपाल का पालन-पोषण पुश्तैनी शहर जोधपुर में अपने दादा की देखरेख में हुआ। चित्रकला और कविता में उनके दादा की गहरी दिलचस्पी थी, जिसका असर महिपाल पर भी पड़ा। महिपाल के मुताबिक़ जब वो चौथी क्लास थे तो ‘अभिमन्यु’ नाम की नाटिका में पहली बार मंच पर उतरे थे, जिसमें उन्हें मोनोएक्टिंग का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला था। महिपाल ने क़रीब 4 दशकों के अपने करियर में कुल 130 फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें से 108 फ़िल्मों में वो नायक थे। ज़्यादातर पौराणिक फ़िल्मों में उनकी नायिका मीना कुमारी, अनीता गुहा या निरूपा राय हुआ करती थीं तो फ़ैंटेसी फ़िल्मों में शकिला, चित्रा या श्यामा। 1960 के दशक के मध्य तक उनका करियर बुलंदियों पर रहा। लेकिन 1970 का दशक आते- आते पौराणिक और फ़ैंटेसी फ़िल्मों में दर्शकों की दिलचस्पी कम होने लगी। ऐसे में महिपाल ने अभिनय से रिटायरमेंट लेना बेहतर समझा। ‘गंगासागर’ (1978) और ‘बद्रीनाथ धाम’ (1980) उनकी आख़िरी फ़िल्मों में से थीं। रिटायरमेंट के बाद महिपाल अपना वक़्त लिखने- पढ़ने में गुज़ारते थे। पैदल चलने के शौक के कारण वे रोज़ क़रीब 8-10 किलोमीटर पैदल चलते थे। यही वजह है कि वो आख़िरी समय तक स्वस्थ और सजग बने रहे। 15 मई 2005 की सुबह 9 बजे जब 86 साल की उम्र में अचानक ही महिपाल का निधन हुआ, तब वे सुबह की सैर से घर लौटे ही थे। महिपाल को गुज़रे 20 वर्ष बीत गए, लेकिन हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर के दर्शकों के ज़ेहन में उनकी यादें हमेशा बनी रहेंगी।
धर्मेंद्र की तरह डैशिंग हीरो थे शैलेश कुमार
गुजरे जमाने के फिल्मी सितारे और जोधपुर में जन्मे शैलेष कुमार ने वर्ष 1957 से 1977 तक करीब 28 फिल्मों में काम किया। मीना कुमारी, धर्मेन्द्र, बलराज साहनी जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम करने के बावजूद उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली थी। शैलेष कुमार को काजल फिल्म के ‘मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन’ गाने के लिए पहचाना जाता है, जो मीना कुमारी और उन पर फिल्माया गया था। आज भी रक्षाबंधन पर यह गाना खूब बजता है। ऐसा कहा जाता है कि वे विफलता के बाद अपने शहर जोधपुर लौट आए थे, लेकिन उनके परिवार वालों का कहना है कि स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से वे जोधपुर लौटे। बलराज साहनी और मीनाकुमारी के साथ “भाभी की चूडिय़ां” फिल्म से फिल्मी करिअर शुरू करने वाले शैलेश ने नामचीन कलाकारों के साथ बेगाना, नई रोशनी, ये रात फिर न आएगी, आधी रात के बाद, काजल, शहीद, गोल्डन आइज, मयखाना, सस्ता खून महंगा प्यार, पहचान, फिर कब मिलोगी, हमराही जैसी फिल्में की थी। चरस में वे आखिरी बार एक छोटी भूमिका में दिखाई दिए। 28 फिल्मों में अभिनय के बाद उन्होंने मायानगरी से नाता तोड़ लिया था। बताते हैं वे जोधपुर में तापी बावड़ी स्थित अपने पुस्तैनी मकान हाकम साहब की हवेली में लौट आए थे। उनका मूल नाम शंभुनाथ पुरोहित था और वे तीन भाइयों और एक बहिन में मझले थे। उनका थिएटर से जुड़ाव जोधपुर के जसवन्त कॉलेज से ही था। तब उनके साथ मंच पर ओम शिवपुरी भी हुआ करते थे, लेकिन शैलेश कुमार को पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण फिल्मों में ब्रेक जल्दी मिला। कम उम्र में ही थायरॉइड के चलते उन्हें काफी सर्जरी व रेडिएशन आदि भी का सामना करना पड़ा। रेडिएशन थेरेपी के कारण कुछ लोगों ने उन्हें कैंसर की झूठी अफवाह फैला दी और उन्हें फिल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया।
अभिनेता सज्जन –
1980 के दशक के अंत में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली टेलीविज़न सीरीज ‘विक्रम और बेताल’ में विक्रम का किरदार अरुण गोविल और बेताल का किरदार सज्जन लाल पुरोहित ने निभाया था। सीरियल में बेताल का फेमस डायलॉग ‘तू बोला, तो ले मैं जा रहा हूं, मैं तो चला!’ काफी लोकप्रिय था। हालांकि, बहुत से लोगों को याद नहीं होगा कि बेताल का किरदार अभिनेता सज्जनलाल पुरोहित ने निभाया था, जिन्हें सज्जन नाम से ही जाना जाता है। सज्जन का पूरा नाम सज्जन लाल पुरोहित था। उनका जन्म 15 जनवरी 1921 को जयपुर में हुआ था। सज्जन ने जोधपुर के जसवंत कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। वह वकील बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। सज्जन ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म धन्यवाद से की थी। इसके बाद वह अलग-अलग फिल्मों में काम कर एक प्रतिष्ठित साइड हीरो बने। उन्होंने नलिनी जयवंत, मधुबाला, नूतन जैसी फेमस अदाकारों संग काम किया। वह दिल से एक कवि थे और इस टैलेंट का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने फिल्म मीना (1944) के डायलॉग लिखे थे। सज्जन की आखिरी फिल्म राजेश खन्ना स्टारर शत्रु थी। उन्होंने 79 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था।
चरित्र अभिनेता ओम शिवपुरी –
ओम शिवपुरी को आपने पुरानी फिल्मों में विलेन का रोल निभाते देखा होगा। 70 के दशक में करीब हर दूसरी फिल्म में दिखने वाले ओम शिवपुरी जोधपुर में जन्मे थे। ओम शिवपुरी ने अपने करियर की शुरुआत जयपुर में एक रेडियो स्टेशन में काम करके की थी। उस समय सुधा शिवपुरी भी वहां काम करती थीं। बाद में ओम शिवपुरी ने सुधा से शादी कर ली थी। ओम शिवपुरी ने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रेजुएशन किया। उन्होंने दो दशक तक फिल्म इंडस्ट्री में काम किया। उन्होंने 175 फिल्मों में अदाकारी की, जिनमें से ज्यादातर में वो विलेन के रोल में नजर आए। ओम शिवपुरी ने सुधा शिवपुरी के साथ मिलकर ‘दिशांतर’ नाम से अपना एक थिएटर ग्रुप भी शुरू किया। ओम शिवपुरी ने कई प्ले खुद ही डायरेक्ट किए। इसमें ‘आधे अधूरे’, ‘खामोश’, ‘अदालत जारी’ और ‘कोर्ट चालू है’ काफी लोकप्रिय हुए थे। ओम शिवपुरी और सुधा की बेटी रितु शिवपुरी भी बॉलीवुड की पॉपुलर एक्ट्रेस रहीं। उन्होंने गोविंदा की हिट फिल्म ‘आंखें’ में लीड रोल निभाया था। इस फिल्म का गाना ‘लाल दुपट्टे वाली’ बहुत पॉपुलर हुआ था।
कीकू शारदा –
कीकू शारदा कॉमेडी इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा हैं। उनका जन्म राजस्थान के जोधपुर में हुआ था। कीकू शारदा कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में पलक के रूप में अपने किरदार से काफी फेमस हुए। बाद में द कपिल शर्मा शो में भी अभिनय किया। इसके साथ ही उन्होंने लोकप्रिय भारतीय शृंखला F.I.R. में कांस्टेबल गुलगुले और कॉमेडी शो अकबर बीरबल में अकबर का किरदार निभाया था। मारवाड़ी परिवार से आने वाले कीकू शारदा का असली नाम राघवेन्द्र शारदा हैं। जोधपुर में वर्ष 1975 में जन्मे कीकू ने प्रियंका से शादी की और उनके दो बच्चे हैं। उनके पिता अमरनाथ शारदा मूल रूप से जोधपुर के निवासी हैं। कीकू शारदा ने अपनी शुरूआती शिक्षा जोधपुर से ही ली और उसके बाद कॉमर्स में ग्रेजुएशन के लिए वे मुंबई चले गए। मुंबई में उन्होंने नरसी मोंजी कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से अपनी कॉॆमर्स की डिग्री ली। जिसके बाद उन्होंने चेतना इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडी एंड रिसर्च से एमबीए किया। वे एक प्रसिद्ध हास्य अभिनेता हैं और इस समय कपिल शर्मा के शो में धमाल मचा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने फिर हेराफेरी, एफआईआई, धमाल, जवानी जानेमन, अंग्रेजी मीडियम, रोडसाइड रोमियो, डरना मना है समेत कई फिल्मों व धारावाहिकों में अपने अभिनय का कमाल दिखाया है।
चित्रांगदा सिंह –
‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’, ‘देसी ब्वॉयज’, ‘इनकार’ और ‘ये साली जिंदगी’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह भी जोधपुर की बिटिया हैं। उनका जन्म 30 अगस्त 1976 को जोधपुर में हुआ था। लंबे फिल्मी करियर के बावजूद चित्रांगदा अभिनय में वो शोहरत हासिल नहीं कर पाईं, जिसकी वो हकदार हैं। इसके बाद फिल्म निर्माण में हाथ आजमाने वाली चित्रांगदा आर्मी ऑफिसर की बेटी हैं। उनके भाई दिग्विजय सिंह गोल्फर हैं। अभिनेत्री ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से गृह विज्ञान में ग्रेजुएशन किया है। कॉलेज के दिनों से ही चित्रांगदा मॉडलिंग करने लगी थीं। इस दौरान उन्हें कई बड़े विज्ञापन मिले। अल्ताफ राजा की एल्बम ‘तुम तो ठहरे परदेसी’ से चित्रांगदा पहली बार लोगों की नजरों में आईं। बॉलीवुड में उन्होंने फिल्म सॉरी भाई से कदम रखा। आज भी वे बॉलीवुड में अपनी चमक बिखेर रही है।
इला अरुण –
15 मार्च 1954 को जोधपुर में जन्मी और जयपुर में पाली बढ़ी राजस्थानी लोक संगीत में अपनी पहचान बना चुकी इला अरुण की प्रसिद्धि उस समय चरम पर पहुंच गई जब 1993 में सुभाष घई की फिल्म ‘खलनायक’ के विवादित ‘चोली के पीछे’ नामक गीत से अपना जादू चलाया। मुंबई आकर इला ने कला की हर विधा में अपना नाम बनाया- फिल्म, टेलीविजन, संगीत और पार्श्व गायन और एक संगीतकार व गीतकार के रूप में भी। लगभग पचास वर्षों की अपनी रचनात्मक यात्रा के दौरान, इला इस क्षेत्र के कई जाने-माने नामों से जुड़ी रही हैं। जिनमें श्याम बेनेगल, शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नीना गुप्ता, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, लता मंगेशकर, अलका याग्निक जैसी बॉलीवुड हस्तियां शामिल हैं। हालांकि थियेटर अभी भी उनका जुनून है।
सुमित व्यास –
सुमीत व्यास न सिर्फ अभिनेता है, बल्कि वे कई फिल्मों, वेब सीरीज और थिएटर नाटकों के राइटर भी हैं। उनका जन्म जोधपुर में लेखक बी.एम. व्यास और सुधा व्यास के घर हुआ। अभिनय और लेखन के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए मुंबई जाने से पहले उन्होंने अपने शुरुआती साल वहीं बिताए। सुमित ने 2009 में फिल्म ‘जश्न’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया और इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में अभिनय किया। उन्होंने 30 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिनमें गुड्डु की गन, पार्च्ड, औरंगजेब और कजरिया शामिल हैं। हालांकि, तीन दर्जन से ज्यादा फिल्मों में काम करने के बाद भी उन्हें वैसी लोकप्रियता नहीं मिली, जैसी कि वेब सीरीज में उन्हें पसंद किया गया। यहां हर कोई उनकी राइटिंग और अभिनय का दिवाना बन गया। उन्होंने कई वेब सीरीजों में काम किया, जिनमें परमानेंट रूममेट्स और टीवीएफ ट्रिपलिंग शामिल हैं, जिनमें से बाद में उन्होंने राइटिंग में भी सहयोग दिया। फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों में अभिनय के अलावा, व्यास भारत में थिएटर प्रस्तुतियों में भी दिखाई देते हैं।
शन्नो खुराना–
शन्नो खुराना (जन्म 1927) एक प्रतिष्ठित भारतीय शास्त्रीय गायिका और संगीतकार हैं, जो रामपुर-सहसवान घराने से जुड़ी हैं। उन्होंने उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और ख्याल, तराना, ठुमरी, दादरा, टप्पा, चैती और भजन जैसे विविध गायन शैलियों में निपुणता हासिल की। जोधपुर में जन्मी शन्नो ने 1945 में लाहौर के ऑल इंडिया रेडियो से गायन की शुरुआत की, बाद में दिल्ली आकर संगीत साधना और शिक्षण में जुट गईं। उन्होंने खैरागढ़ विश्वविद्यालय से संगीत में एम.फिल. और पीएच.डी. की और राजस्थान के लोक संगीत पर गहन शोध किया। उन्होंने देश-विदेश में भारत सरकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया और अनेक संगीत समारोहों में प्रस्तुति दी। वे संगीत नाटकों की रचना, निर्देशन और गायन भी कर चुकी हैं – जिनमें हीर रांझा, सोहनी महिवाल, जहांआरा, चित्रलेखा और सुंदरी जैसे नाट्य शामिल हैं। उनकी संस्था “गीतिका” ने महिलाओं के लिए संगीत महोत्सव आयोजित किए हैं। उन्हें पद्मश्री (1991), पद्म भूषण (2006) व संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2002) से नवाजा जा चुका है।