बाबा रे बाबा

किरोड़ी Vs सरकार: सरकार के खिलाफ खड़े कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा

राजेश कसेरा
वरिष्ठ पत्रकार

राजस्थान की राजनीति में कितनी ही बड़ी उठा-पटक हो, कुछ दिनों बाद या तो वह शांत हो जाती है या फिर पक्ष और विपक्ष के बीच हर मुद्दे को लेकर खींचतान चलती रहती है। लेकिन प्रदेश के कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की सियासत की बात करें तो उसमें दशकों से कोई बदलाव नहीं आया है। वे सत्ता में हो या विपक्ष में उनकी राजनीति करने का अंदाज बिल्कुल नहीं बदला है। मौजूदा भाजपा सरकार में कृषि समेत कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री किरोड़ी ज्यादातर समय अपनों की मुश्किलों को बढ़ाने का काम करते हैं। वे विपक्ष को बैठे-बिठाए भजनलाल सरकार को घेरने के मुद्दे दे देते हैं। बाबा के नाम से ख्यात किरोड़ी बीते सवा साल से प्रदेश की भजनलाल सरकार की नाक में दम किए हुए हैं। उनके निर्णय और फैसले इतने अप्रत्याशित होते हैं कि कोई समझ ही नहीं पाता कि वे सरकार के अंदर हैं या बाहर। सरकार के साथ हैं या उनके विरोध में। कब, कैसे, कहां और किस बात पर वे सरकार से नाराज हो जाएं, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। माटी और आंदोलन के बूते राजस्थान की सियासत के जमीनी नेता माने जाने वाले किरोड़ी लंबे समय से मंत्री पद से इस्तीफा देकर भी बतौर मंत्री काम कर रहे हैं।

हर संकट में जनता का समर्थन

हाल ही करौली जिले के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जब कभी उन पर राजनीतिक संकट आया जनता ने उनका समर्थन किया। हर परिस्थिति में उन्हें भारी मतों से जीताकर विधानसभा भेजा। उन्होंने यह भी कहा कि जब उन्हें पार्टी से निकाला गया तब भी उन्हें जनता का साथ मिला। ऐसा उन्होंने क्यों कहा, इसके कई मायने सियासी गलियारों में निकाले गए। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से उनके कामकाज करने की शैली को देखें तो वे सरकार के साथ कम और बगावती रूप में ज्यादा दिखाई दिए हैं। राजनीति में उनके कद और जमीनी नेता की छवि का ही दम है कि न तो भजनलाल शर्मा सरकार, न प्रदेश भाजपा संगठन और यहां तक की दिल्ली बैठा शीर्ष नेतृत्व भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। बीते दिनों सिर्फ नोटिस देकर उनकी लगाई आग पर केवल छींटें देने काम किया गया। इतना ही नहीं, उनकी अपने समाज के बीच जबरदस्त पकड़ है। उनके खिलाफ कोई भी बड़ी कार्रवाई का मतलब मीणा समाज को नाराज करना होगा। इस समाज का कितना प्रभाव है, इसकी अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि प्रदेश की दो सौ में करीब एक चौथाई यानी पचास सीटें या तो मीणा बहुल हैं या वहां इतने ज्यादा मीणा वोट हैं जो चुनावी हार-जीत को तय करते है। हालांकि किरोड़ी संघ निष्ठ भी हैं और उनकी दिल्ली तक सीधी पहुंच भी है।

अपनी ही सरकार पर जासूसी के आरोप

इसी साल फरवरी महीने में जयपुर के आमागढ़ मंदिर में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में किरोड़ीलाल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ फोन टैपिंग का बम फोड़ दिया। उन्होंने कहा, मैंने राज्य में भ्रष्टाचार के कुछ मामले उठाए। इनमें पेपर लीक प्रकरण भी शामिल था। इसके आधार पर 50 फर्जी थानेदारों को गिरफ्तार किया गया। मैंने जब कहा कि ये परीक्षा रद्द करो तो सरकार ने मेरी बात नहीं मानी। उल्टा सरकार की तरफ से जैसा पिछले राज में हुआ करता था, वैसा किया गया। मुझ पर नजर रखने के लिए चप्पे-चप्पे पर सीआईडी लगा दी। मेरे फोन भी रिकॉर्ड होने लग गए। इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे ही बाबा के इन तेवरों का वीडियो सामने आया तो विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल गया। विधानसभा में भारी हंगामा हुआ और सरकार की किरकिरी हुई। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व तक प्रकरण पहुंचा तो उनके निर्देशों पर पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने डॉ. किरोड़ीलाल मीणा को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

उपेक्षा से भड़के, इस्तीफा दे दिया

किरोड़ी प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से रूठे हैं। आलाकमान की ओर से सबसे जूनियर नेता को मुख्यमंत्री बना दिए जाने और वरिष्ठ नेताओं को पीछे धकेलने की रणनीति उनको रास नहीं आई। भजनलाल शर्मा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित हुआ तो किरोड़ी के समर्थकों ने भाजपा मुख्यालय के बाहर जमकर हंगामा किया था। बाद में मंत्री बनाने के बाद उन्हें आधे-अधूरे विभाग मिले तो उनका नाराज होना भी लाजिमी था। उनको दिए कृषि विभाग के साथ वाले विभाग दूसरे मंत्री को दे दिए गए। लोकसभा चुनाव तक वे शांत रहे, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा तो सरकार से नाराजगी की वजह से दिया, लेकिन बहाना पार्टी की हार का बना दिया। इसके एक और पहलू को समझें तो किरोड़ी लाल सरकार में अपनी मौजूदा हैसियत से खुश नहीं हैं। वे सरकार में ऐसी प्रभावी भूमिका चाहते हैं, जिसमे उन्हें निर्णय की ताकत मिले। ऐसा कोई पद जैसे उप मुख्यमंत्री या कोई बड़े सरकारी विभाग जैसे गृह, वित्त आदि। उनका एक दर्द यह भी है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से लेकर दोनों उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा और दीया कुमारी उनके राजनीतिक जीवन के लिहाज से छोटे हैं।

एसआई भर्ती को लेकर सरकार से भिड़े

प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद एसआई भर्ती-2021 में हुए गड़बड़झाले और पेपर लीक प्रकरण की परतें खुलती गईं। 51 ट्रेनी एसआई, आरपीएससी के वर्तमान और पूर्व सदस्य सहित 80 से ज्यादा आरोपी गिरफ्तार हुए। किरोड़ी ने इस मामले को लेकर प्रदेश में लंबा आंदोलन छेड़ रखा था। सरकार बनने के बाद उन्होंने भर्ती परीक्षा को रद्द करने की मांग की। शुरुआती दिनों में वे मुख्यमंत्री भजनलाल से मिले और भर्ती रद्द करने की मांग की। लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। बार-बार आग्रह करने के बाद भी सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया तो किरोड़ी सरकार के खिलाफ मीडिया में बयान देने लगे कि यह उनकी समझ से परे है कि भर्ती को रद्द क्यों नहीं किया जा रहा? उन्होंने एसआई भर्ती को लेकर सरकार को कटघरे में भी खड़ा किया।

उप चुनाव में भाई की हार से बौखलाए 

विधानसभा चुनाव के बाद से सरकार और पार्टी से नाराज चल रहे किरोड़ी लाल मीणा को मनाने के लिए लिए पार्टी ने उनके छोटे भाई जगमोहन मीणा को उप चुनाव में टिकट दिया। लेकिन वे चुनाव जीत नहीं सके। भाई की हार से वे काफी आहत हुए और उनका गुस्सा फूट पड़ा। जगमोहन की हार के लिए उन्होंने अपने ही पार्टी के नेताओं को जिम्मेदार ठहरा दिया। उन्होंने साफ कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जगमोहन को जिताने के लिए जोर नहीं लगाया। हार से नाराज होकर उन्होंने नाम लिए बिना मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर सीधा जुबानी हमला किया। उन्होंने कहा कि मेरे भाई को अभिमन्यु की तरह घेर कर मारा गया। भाई बनाकर पीठ में छुरा घोंप दिया गया।

थानाधिकारी से विवाद

इसी साल दो महीने पहले किरोड़ीलाल मीणा का महेश नगर थाने की तत्कालीन थानाधिकारी कविता शर्मा से विवाद हो गया। कविता और कैबिनेट मंत्री के बहस करने के वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुए। बाद में एसएचओ ने मंत्री के खिलाफ रोजनामचे में रपट डाल दी। इसके बाद डॉ. मीणा ने भी एसएचओ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मंत्री मीडिया सामने आए और एसएचओ कविता के काले कारनामों को सामने रखा। उन्होंने पुलिस अधिकारी को तुरंत हटाने की मांग की, लेकिन सरकार ने मंत्री के उठाए मुद्दों को अनदेखा कर दिया। बाद में ट्रांसफर दूसरे थाने में कर दिया, लेकिन तथ्यों सहित काले कारनामे उजागर करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। इसे लेकर मीडिया ने सवाल किए तो वे भड़क गए। उन्होंने कहा कि सरकार में सुनवाई नहीं होती, इसीलिए मीडिया के जरिए जनता तक अपनी बात पहुंचाता हूं।

फिर बोले- मैं हां में हां मिलाने वालों में नहीं

गत 31 जनवरी को विधानसभा का बजट सत्र शुरू हुआ तो उस दिन किरोड़ी सदन पहुंचे। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान वे मौजूद रहे। दोपहर को मीडिया से चर्चा में फिर अपनी ही सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में भी उनका अपमान होता था और वर्तमान सरकार में भी हो रहा है। जिन मुद्दों को लेकर हम सत्ता में आए उनको भुला दिया गया। पेपर लीक होना साबित होने के बावजूद भर्ती को रद्द नहीं किया। सरकार की आंखों के सामने रोज सात करोड़ रुपए की बजरी चोरी होती है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं करता। उन्होंने ये भी कहा कि जमाना मिलावट का है पर वे हां में हां मिलाने वाले नेताओं में नहीं हैं।

मंत्री होकर भी विधानसभा से दूर रहे

प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री किरोड़ी के पास कृषि विभाग का अहम जिम्मा है। लेकिन जुलाई 2024 में हुए विधानसभा सत्र में भी उन्होंने सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से छुट्टी ले ली। फिर 31 जनवरी से बजट सत्र शुरू हुआ तो वे 1 फरवरी से सदन में नहीं गए। उनके विभाग से जुड़े सवालों के जवाब दूसरे मंत्रियों को देने पड़े। वे सरकार से सीधे तौर पर खफा दिखे, इसलिए विधानसभा की कार्रवाई का हिस्सा नहीं बने। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार में गंभीर भ्रष्टाचार हो रहा है और आने वाले दिनों में बड़े खुलासे करेंगे।

बाबा को रास नहीं आता सत्ता का साथ

राजस्थान की राजनीति में किरोड़ी के संघर्ष की बात करें तो उन्होंने सदैव सरकारों के खिलाफ अपने मुद्दों पर संघर्ष किया। उनको सत्ता का साथ कभी रास नहीं आया। उनका यह अंदाज काफी पुराना है। जानकारों की मानें तो भैरोंसिंह शेखावत जब राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब भी किरोड़ी ने इसी तरह के तेवर दिखाए थे। सदन में इसी तरह मुद्दे उठाते रहे। उनका शेखावत से कई मुद्दों पर सामंजस्य नहीं बैठ पाया। इसके लिए काफी प्रयास भी किए गए, लेकिन किरोड़ी ने अपना अंदाज नहीं बदला। वसुंधरा राजे सरकार से भी उनकी अदावत रही। 2003 में वसुंधरा मुख्यमंत्री बनीं तब किरोड़ी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। लेकिन दोनों के बीच टकराव बना रहा। वसुंधरा के आगे उनकी नहीं चली तो उन्होंने भाजपा छोड़ दी और नेशनल पीपुल्स पार्टी का हाथ थाम लिया। बाद में वसुंधरा ने ही उनसे सुलह की और फिर से भाजपा में एंट्री करवाई। इसके बाद उन्हें राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा गया। साल 2008 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने तब किरोड़ी की पत्नी गोलमा देवी विधायक बनीं। उन्होंने पत्नी को मंत्री बनाया, लेकिन खुद सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। सदन हो या सड़क, मीणा ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर रखा और धरने-प्रदर्शन तक किए। सड़कों पर संघर्ष के लिए ख्यात बाबा ने पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के दौरान भी उनकी नाक में दम किया। पूरे पांच साल किरोड़ी ने गहलोत सरकार को चेन से राज नहीं करने दिया। पेपर लीक, युवाओं के रोजगार का मुद्दे, जल जीवन मिशन भ्रष्टाचार, उद्योग भवन के बेसमेंट में सोना, नकदी मिलने और पुलवामा शहीदों की वीरांगनाओं के मुद्दों को लेकर जमकर ईंट से ईंट बजाई। इस दौरान गहलोत उनसे काफी परेशान रहे। उन्होंने यहां तक कहा था कि किरोड़ी लाल नॉन इश्यू को भी इश्यू बनाने में माहिर हैं।

डॉक्टर से बने राजनेता, खूब लोकप्रियता भी पाई

भाजपा के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। डॉक्टर से विधायक और सांसद बनने तक का सफर उन्होंने अपनी मेहनत, जनता से जुड़ाव और जनसेवा के बूते पर तय किया। वे वर्तमान समय में राजस्थान की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चित चेहरों में से एक हैं। वे युवाओं, गरीबों, पीड़ितों और शोषितों की सबसे बुलंद आवाज माने जाते हैं। वे पहली बार 1985 में दौसा जिले के महवा से भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1989 में पहला लोकसभा चुनाव जीता। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में किरोड़ी ने दौसा से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा। उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की। 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनको सवाई माधोपुर से टिकट दिया, जहां से जीत दर्ज की।

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