– राकेश गांधी –
दुनिया भर में डगमगाती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी के कारण जीवनयापन की लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे हालात में आमजन की आय भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं बढ़ रही। कुल मिलाकर आय व खर्च के बीच संतुलन न होने से घरेलू बजट गड़बड़ाता जा रहा है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले सदियों से कुछ अलग ही रही है। इसका कारण भारतीय गृहिणियों की अपनी अर्थव्यवस्था है, जो किताबों से कुछ अलग हटकर होती है। यही वजह है कि यहां के अधिसंख्य परिवार खराब आर्थिक हालात में भी विचलित नहीं होते। इसके विपरित अधिकांश पश्चिमी देशों के हालात कुछ अलग है। ये ही वजह है कि वहां लगातार बिगड़ते आर्थिक हालात से लोग न केवल तनावग्रस्त होते जा रहे हैं, बल्कि उनके व्यवहार में भी नकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। ऐसे में इन दिनों घरेलू बजट बनाते समय 30:30:30:10 के नियम के पालन की जरूरत महसूस की जा रही है।
आखिर क्या है ये नियम..?
आखिर क्या है 30:30:30:10 का नियम? भारतीय परिवारों में ये नियम भले ही अनौपचारिक तौर पर सदियों से चला आ रहा है, लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में अब यहां भी ये नियम ताक में रख दिए गए हैं। खासकर पश्चिमी देशों की नकल पर चल रही नई पीढ़ी के खर्च अनावश्यक मदों में ज्यादा होने लगे हैं। ऐसे में अब भारत में भी परिवारों के आर्थिक हालात बिगड़ ही रहे हैं। आर्थिक संतुलन के 30:30:30:10 के नियम के अनुसार किसी परिवार की आय को खर्च व निवेश में आनुपातिक निर्धारण करना है। इस नियम के अनुसार एक परिवार की आय का 30 प्रतिशत रोजाना के खर्च में, 30 प्रतिशत निवेश, 30 प्रतिशत नौकरी के बाद के लिए बचत और 10 प्रतिशत इमरजेंसी खर्चों के लिए निर्धारित करना है। वैसे ये सही है कि ऐसे बजट हर घर में उनकी जरूरतों के अनुसार बनते- बिगड़ते रहते हैं, फिर भी विषम आर्थिक हालात में भी यदि मजबूती बनाए रखनी है तो ये नियम कारगर साबित होते हैं। केवल पारिवारिक आय के वितरण में ही नहीं, बल्कि ये नियम परिवार की पहले की बचत की राशि के उपयोग में भी काम आता है। ये नियम हर परिवार के आर्थिक हालात के अऩुसार तय हो सकते हैं। जिस परिवार की जैसी स्थिति है, उसी के अनुसार रकम का आनुपातिक वितरण किया जा सकता है। ऐसे बजट बनाने से परिवार के मुखिया की स्थिति सदैव मजबूत रहती है।
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आर्थिक मामलों के जानकार ये भी कहते हैं कि यदि किसी परिवार में पहले से निवेश है तो भी 30:30:30:10 नियम कारगर साबित होता है। इस नियम के तहत 30 प्रतिशत सम्पत्ति, 30 प्रतिशत स्टाक, 30 प्रतिशत बाण्ड और शेष 10 प्रतिशत राशि नकद के तौर पर रहनी चाहिए। इससे परिवार के आर्थिक हालात भी मजबूत होते हैं।
खराब आर्थिक हालात से हावी होती है आक्रामकता
आय व खर्च में संतुलन न होने से पारिवारिक आर्थिक ढांचा चरमरा जाता है। ऐसे में न केवल कमाने वाला, बल्कि उसका पूरा परिवार ही तनावग्रस्त होने लगता है। कोरोना काल के बाद हालांकि कुछ समय तक परिवारों को आर्थिक तौर पर संभलने की समझ विकसित हुई थी, लेकिन धीरे- धीरे हालात सामान्य होने के बाद इस भौतिकवादी युग में परिवारों की ये समझ फिर से क्षीण होने लगी है। खराब आर्थिक हालात का सर्वाधिक प्रतिकूल असर इंसान के स्वभाव पर पड़ता है। हाल ही में जापान से खबर मिली थी कि प्रतिकूल आर्थिक हालात के चलते वहां के नागरिकों का व्यवहार आक्रामक होता जा रहा है। वैसे दुनिया भर में जापानी अपने शांत, विनम्र स्वभाव और अक्सर दूसरों का सम्मान करने के मामले में ख्यात हैं। लेकिन विषम आर्थिक हालात ने उन्हें भी एक तरह से तोड़ कर रख दिया है। हालात ऐसे हो गए कि वहां की सरकार को अपने लोगों के व्यवहार को संभालने के लिए गाइडलाइन तक बनाने का विचार करना पड़ रहा है। ये केवल जापान का ही मसला नहीं है, बल्कि भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों के ये ही हालात है। ऐसे में अब परिवारिक के आर्थिक ढांचे को फिर से पटरी पर लाने के लिए नियमबद्ध चलना जरूरी हो गया है। तभी ऐसे विषम हालात से निपटा जा सकेगा।