भजनलाल सरकार का एक साल : प्रदेश के विकास के लिए कई बड़े फैसले लिए, 4 साल में कितनी बुलंदियां छू पाएंगे देखेंगे सब
राजेश कसेरा
(वरिष्ठ पत्रकार)
राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया। इस दौरान कई बड़े काम हुए तो अधिकांश कामों पर सवाल भी खड़े हुए। जिन मुद्दों को लेकर भाजपा ने कांग्रेस की अशोक गहलोत को सत्ता से दूर किया, उनकी चर्चा साल भर होती रही। इस दौरान लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा बैकफुट पर आ गई तो उप चुनाव में फिर प्रदेश की जनता का आशीर्वाद और समर्थन मिला। एक साल के दौरान कई बार ऐसे अवसर आए, जब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पद से हटाने और नया मुख्यमंत्री बनाने की अफवाहें सामने आईं। इसके बावजूद भजनलाल सरकार ने राइजिंग राजस्थान इंवेस्टमेंट समिट, पीकेसी-ईआरसीपी प्रोजेक्ट का शिलान्यास, पेपरलीक माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई, युवाओं को रोजगार के अवसर देने जैसे बड़े काम शुरू किए। राज्य सरकार ने दावे किए कि उन्होंने बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, ग्रामीण और शहरी विकास, परिवहन और उद्योग समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम शुरू किए। ये काम कितने आगे बढ़ेंगे और पूरे होंगे, इसके लिए चार साल सरकार को मिलेंगे। सबको साथ लेकर चलने के दावे करने वाले सीएम भजनलाल शर्मा भले प्रदेश के विकास में के लिए दिन-रात पसीना बहा रहे हों, लेकिन पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ उनके साथी विधायकों को वे अक्सर खटकते रहते हैं। यहां तक कि विपक्ष भी उनको पचा नहीं पा रहा है और पर्ची सरकार का मुखिया संबोधित कर उन पर निशाना साधता रहता है। इन सारी चुनौतियों के बीच आने वाले चार साल में कैसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा प्रदेश के आर्थिक तंत्र को मजबूत बनाने के साथ बड़ी योजनाओं को धरातल पर साकार करने का काम कर पाएंगे, इस पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी।
प्रदेश के आर्थिक हालात को मजबूत बनाना सबसे बड़ी चुनौती
राजस्थान फिस्कल रेस्पोंसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) की हाल में सामने आई रिपोर्ट की मानें तो प्रदेश पर कर्ज का भार 6 लाख 8 हज़ार 813 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। मार्च-2024 तक यह आंकड़ा 5.70 लाख करोड़ रुपए का था। वर्तमान वित्तीय वर्ष में अप्रेल से सितंबर-2024 तक के सरकार की ओर से जारी आंकड़ों में भी सामने आया कि कर्ज का यह स्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे गंभीर चुनौती है। प्रदेश की जनसंख्या 8.36 करोड़ है और इस हिसाब से हर व्यक्ति पर कर्ज का बोझ 72 हजार 825 रुपए हो गया है। राज्य सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान कर्ज में करीब 70 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी और होने का अनुमान लगाया। इस हिसाब से सरकार पर हर माह औसतन छह हजार करोड़ से अधिक का कर्ज बढ़ रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो बढ़ते कर्ज का सबसे बड़ा असर ब्याज भुगतान पर पड़ेगा, जिससे सरकार को विकास योजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने में मुश्किलें आ सकती हैं। इसके अलावा कर्ज बढ़ने से ये आशंका भी बढ़ जाती हैं कि सरकार को टैक्स बढ़ाकर जनता से अतिरिक्त राजस्व जुटाना पड़े। हालांकि सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में राजस्व का लक्ष्य 1.25 लाख करोड़ रुपए निर्धारित कर रखा है।
लक्ष्य 350 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का, पूरा करने को संसाधन नहीं
राइजिंग राजस्थान इंवेस्टमेंट समिट के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अगले पांच सालों में 350 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का दावा किया। जबकि प्रदेश की मौजूदा जीडीपी 186 बिलियन डॉलर यानी 15 लाख 28 हजार करोड़ अनुमानित है। यानी 350 बिलियन डॉलर तक जाने में लगभग अर्थव्यवस्था का आकार दुगने से ज्यादा करना होगा। आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो कोविड के बाद मौजूदा अर्थव्यवस्था की जो रफ्तार है, उसमें पांच सालों में राजस्थान की जीडीपी 350 बिलियन डॉलर को पार कर सकती है। यह बड़ा लक्ष्य नहीं है। मौजूदा जीडीपी ग्रोथ रेट 12 से 13 प्रतिशत चल रही है। पर, यहां बड़ा सवाल यह है कि इस आर्थिक विकास की कीमत प्रदेश क्या चुका रहे है? जिस वित्तीय प्रबंधन के दावे किए जाते हैं, क्या वह विश्वसनीय है? जिस टीम के हाथों में राजस्थान का वित्तीय प्रबंधन है, उन्होंने पिछले पांच सालों में राजस्थान को कहां पहुंचाया है, ये भी बड़ा सवाल है? राजस्थान में वित्त विभाग की कमान बीते 6 साल से ज्यादा समय से अतिरिक्त मुख्य सचिव अखिल अरोड़ा संभाले हुए हैं। हाल ये हैं कि प्रदेश पर कर्ज का भार 6 लाख 8 हज़ार 813 करोड़ रुपए से अधिक हो गया। बोर्ड-कॉरपोरेशन और पीएसयूज पर ऋण दायित्व करीब सवा लाख करोड़ से ज्यादा है। राजस्थान के खजाने को गिरवी रखकर कर्ज लिया और इतना सब होने के बाद हर साल करीब 35 हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम ब्याज के रूप में चुका कर रहे हैं। प्रदेश की डीजीपी से इसकी तुलना करें तो कुल ऋण दायित्व करीब 80 से बिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुका है।
5 साल में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का रोडमैप कैसे बनेगा
भजनलाल सरकार ने अपनी 5 साल की सरकार के दौरान 10 लाख से ज्यादा प्रदेश युवाओं काे रोजगार देने की घोषणा की है। इसमें सबसे बड़ी भर्ती चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की है। इसके अलावा ड्राइवर, पशुधन सहायक, जेल प्रहरी, कंडक्टर, वरिष्ठ अध्यापक पदों की भर्तियां शामिल हैं। इनके लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन बोर्ड की ओर से विज्ञापन जारी कर दिए गए हैं। पर, सरकार सफाईकर्मी भर्ती परीक्षा को बीते एक साल में पूरा नहीं कर पाई तो बाकी की भर्तियों को कैसे पूरा करेंगी, ये सवाल भी उठ रहा है। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे 2023-24 के मुताबिक राजस्थान में बेरोजगारी दर 4.2% है। पंजाब की सबसे ज्यादा 5.5% तो राजस्थान दूसरे नंबर पर है। प्रदेश में सरकार बदलने के बावजूद प्रदेश का बेरोजगारी दर के लिहाज से देश के पहले पांच राज्यों में शुमार होना निराशाजनक है। प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में एक के बाद एक रद्द होती भर्तियों और कोर्ट में अटके मामलों को लेकर भी बेरोजगारी दर में इजाफे को बड़ा कारण माना गया। भजनलाल सरकार के समक्ष यही चुनौती सबसे बड़ी है कि वे युवाओं को रोजगार देने की दिशा में कैसे ठोस कार्ययोजनाओं को बनाएंगे और उन्हें साकार करेंगे।
राइजिंग राजस्थान से आया 35 लाख करोड़ रुपए का निवेश जमीन पर उतारना होगा
राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट के तहत कुल 35 लाख करोड़ रुपए से अधिक के एमओयू हुए थे। इनमें से लगभग 32 लाख करोड़ रुपए के 261 एमओयू एक हजार करोड़ रुपए से अधिक राशि वाले हैं। 100 करोड़ से अधिक और 1 हजार करोड़ रुपए से कम राशि वाले एमओयू की संख्या 1 हजार 678 है, जिनकी कुल राशि 3.50 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। वहीं 100 करोड़ रुपए तक के एमओयू की संख्या 9 हजार 726 है और इनकी कुल राशि लगभग 90 हजार करोड़ रुपए है। जयपुर में गत वर्ष 9 से 11 दिसंबर तक आयोजित हुए राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट में मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि हस्ताक्षरित एमओयू की प्रगति और विस्तृत रिपोर्ट को वे दिसंबर-2025 में प्रदेशवासियों के सामने प्रस्तुत करेंगे। इस काम को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए सरकार ने औद्योगिक विकास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी विजन और रोडमैप के साथ काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए त्रि-स्तरीय समीक्षा व्यवस्था के तहत एक हजार करोड़ रुपए से अधिक राशि वाले एमओयू की समीक्षा मुख्यमंत्री स्तर पर मासिक रूप से होगी। 100 करोड़ से लेकर 1 हजार करोड़ रुपए तक की राशि वाले एमओयू की समीक्षा मुख्य सचिव स्तर पर पाक्षिक रूप से होगी। वहीं 100 करोड़ रुपए से कम राशि वाले एमओयू की समीक्षा विभागीय सचिव स्तर पर साप्ताहिक रूप से की जाएगी। भजनलाल सरकार निवेश को जमीन पर लाने की कार्ययोजना भले अच्छे से बना रही हो, पर प्रदेश में पूर्व सरकारों के समय हुए ऐसे प्रयासों के अनुभव भी बेहद कड़वे रहे हैं। पिछली गहलोत सरकार में चौथे साल में इन्वेस्ट राजस्थान समिट हुआ था। इसमें 12.53 लाख करोड़ के 4 हजार 195 एमओयू हुए थे। जबकि निवेश आया 25 हजार 975 करोड़ रुपए का। यानी केवल 2.07 प्रतिशत। वसुंधरा सरकार में 2015 में रिसर्जेंट राजस्थान समिट में 3.37 लाख करोड़ के 470 एमओयू हुए थे। इसमें भी निवेश आया 33 हजार करोड़ रुपए का यानी 10 प्रतिशत। वसुंधरा सरकार के समय 1.20 लाख करोड़ के करार कुछ महीनों में निरस्त हो गए थे। 4% प्रोजेक्ट लिटिगेशन में फंस गए थे तो इतने ही लंबित रह गए। ऐसे ही गहलोत सरकार के 604 करार आगे नहीं बढ़े तो 1378 खारिज हो गए। निवेशकों ने लिखकर दिया कि उनको न जमीन मिली न ही बेसिक इन्फ्रास्टक्चर। ऐसे में बड़ा सवाल यही खड़ा हो रहा है कि बड़ा सवाल यही है कि वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत जैसे अनुभवी और दिग्गज मुख्यमंत्री अपने दावे के मुताबिक निवेश नहीं ला पाए तो पहली बार मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा कैसे लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे? लेकिन इसका जवाब तलाशें तो भजनलाल सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले साल में इस काम को किया। उनके पास चार साल बाकी हैं। सरकार के पास निवेशकों की तमाम शंकाओं और मुश्किलों को दूर कर उससे निवेश कराने का पूरा मौका है। सरकार ने हर एक निवेशक से वादे के मुताबिक निवेश करवाने के लिए एक आईएएस और आरएएस अधिकारियों को नियुक्त किया है। इनकी जिम्मेदारी होगी कि वे उन्हें मनाएं, उनके निवेश में आ रही अड़चन दूर करें।
राजनीतिक अड़चनें भी कम नहीं, सबको साथ नहीं ले पाए एक साल में
पहली बार मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा के पास सरकार या विधायिकी का पुराना अनुभव नहीं हैं। लेकिन सत्ता और संगठन के बीच वे लंबे समय से कार्य कर रहे हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनको प्रदेश की कमान सौंपी तो राजनीतिक भूचाल आ गया। किसी ने सोचा तक नहीं होगा कि उनके नाम की पर्ची को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की राह देख रहीं वसुंधरा राजे को खोलना होगा। बीते एक साल में भजनलाल शर्मा ने भले सबको साथ में लेकर सरकार चलाने के भरसक प्रयास किए, लेकिन प्रदेश की राजनीति के मैदान में लंबे समय से टिके दिग्गजों को वे साध नहीं पाए। सालभर में ऐसे कई मौके आए, जब ये बातें हवा में बहीं कि राजस्थान का मुख्यमंत्री बदलने वाला है। लेकिन इस दिशा में किसी ने न तो सोचा और न ध्यान दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भजनलाल शर्मा के नाम को तय किया तो इसके पीछे के सारे सियासी समीकरण क्या होंगे? फिर भी बीते एक साल में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री की पूरी परीक्षा ली। कैबिनेट में शामिल होने के बावजूद मंत्री किरोड़ी लाल मीणा सरकार और पार्टी की परेशानियों को बढ़ाते रहे हैं। सरकार में होने के बावजूद बीते एक साल में उन्होंने अपने विभाग से संबंधित किसी बड़े फैसले पर काम नहीं किया। इसी तरह से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पार्टी की ओर से कोई भूमिका तय नहीं होने से उनके समर्थक भी पर्दे के पीछे से भजनलाल सरकार के लिए अड़चनें पैदा कर रहे हैं। वसुंधरा राजे की उप चुनाव के बाद बढ़ी सक्रियता ने भी सियासत के कई समीकरणों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसके अलावा राजेन्द्र राठौड़, सतीश पूनिया जैसे वरिष्ठ नेताओं को राजस्थान में संतुष्टपूर्ण भूमिका नहीं मिलने से अटकलों का बाजार गर्म बना रहता है। इधर, विपक्ष के मजबूत नेताओं अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गाेविंद सिंह डोटासरा, टीकराम जूली, शांति धारीवाल, प्रताप सिंह खाचरियावास को काउंटर करने के लिए भी भजनलाल शर्मा और उनकी नई टीम कमजोर दिखाई देती है। कैबिनेट में किरोड़ी मीणा के अलावा ऐसा कोई दूसरा बड़ा नेता नहीं है तो विपक्ष पर करारा पलटवार कर सके। इस भूमिका को प्रदेश प्रभारी राधामोहन अग्रवाल, प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़, वरिष्ठ नेता राजेन्द्र राठाैड़ निभा रहे हैं। आने वाले चार साल में विपक्ष को शांत रखने के लिए भी भजनलाल सरकार को मजबूत प्लान बनाना ही होगा।
बजट की घोषणाएं बाकी, लाल डायरी खोयी
चुनावी साल होने की वजह से भजनलाल सरकार का पूर्ण बजट जुलाई में लाया गया। बजट में कई बड़ी घोषणाएं की गईं। बजट पास होने से पहले ही मुख्यमंत्री ने मंत्रियों और बड़े अफसर को उसे धरातल पर उतारने के लिए टास्क दे दिया। इस कदम की विपक्ष ने जमकर आलोचना भी की और विधानसभा में सवाल भी उठाए। ऐसे में बजट की आधी घोषणाएं बीते छह महीने में पूरी नहीं हो पाईं। इस बार सरकार ने शीतकालीन सत्र में बजट को लाने के संकेत दिए हैं, जिससे कि बजट की योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम पूरा कर सकें। इसी तरह से विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने लाल डायरी को बड़ा मुद्दा बनाया था। चुनावी सभाओं में पीएम मोदी तक ने लाल डायरी का जिक्र करते हुए सरकार बनने पर इसमें लगे आरोपों पर जांच की बात कही थी। सत्ता में आने के बाद लाल डायरी पर चुप्पी है। इस मुद्दे को एक तरह से भुला दिया है। बीते एक साल में सरकार या पार्टी की ओर से इस पर कोई बात नहीं की गई।
वन स्टेट वन इलेक्शन पर काम अधूरा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वन नेशन-वन इलेक्शन की तर्ज पर प्रदेश की भजनलाल सरकार ने वन स्टेट-वन इलेक्शन के तहत निकायों और पंचायत के एक साथ चुनाव करवाने घोषणा की। जिन स्थानीय निकायों के चुनाव जनवरी में बाकी थे, उन 49 शहरी निकायों में प्रशासक लगा दिए हैं। वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर डिटेल रोडमैप नहीं दिया। इसके अलावा 7000 के आसपास पंचायतों में भी प्रशासक लगाए जाने हैं। लेकिन इस दिशा में काम आगे नहीं बढ़ रहा है। इधर, कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव 5 साल में करवाया जाना अनिवार्य है। आपात स्थिति को छोड़कर चुनाव टालने का कोई प्रावधान नहीं है। हाल में पंजाब में चुनाव टालने पर सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुका है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने कहा कि चुनाव टालना संविधान विरोधी कदम है, हम चुप नहीं बैठेंगे, सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। सरपंच संघ ने भी विरोध जताना शुरू कर दिया। जनवरी में ही 6975 ग्राम पंचायतों, मार्च में 704 ग्राम पंचायतों और अक्टूबर में 3847 ग्राम पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इन सबके एक साथ चुनाव करवाने के लिए आधी पंचायतों के चुनाव आगे पीछे करने होंगे। दिसंबर 2025 में 21 जिला परिषदों, सितंबर-अक्टूबर 2026 में 8 जिला परिषदों और दिसंबर 2026 में 4 जिला परिषदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इसी तरह दिसंबर 2025 में 222 पंचायत समिति के मेंबर और प्रधानों का कार्यकाल पूरा होगा, सितंबर 2026 में 78, अक्टूबर 2026 में 22 और दिसंबर 2026 में 38 पंचायत समितियों का कार्यकाल पूरा हो रहा है। वन स्टेट वन इलेक्शन पर विचार के लिए कैबिनेट सब कमेटी बनाने का प्रस्ताव करीब तीन महीने से सीएमओ में लंबित है। अब तक सीएम के स्तर पर मंजूरी मिलना बाकी है। इसके अलावा राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम 1994 और राजस्थान नगरपालिका अधिनियम की धाराओं में संशोधन करना होगा।