सुरेश व्यास
रक्षा मामलों के जानकार
देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में 2025-26 के लिए बजट पेश करते हुए हालांकि सबसे बड़ा हिस्सा रक्षा मंत्रालय को दिया है, लेकिन उनसे रक्षा के लिए इससे कहीं ज्यादा की उम्मीद की जा रही थी। इस साल के बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 6,81,210 करोड़ रुपए के प्रावधान की घोषणा की गई है। इसमें 4,88,822 करोड़ का राजस्व व्यय जिसमें से 1,60,795 करोड़ पेंशन के लिए आरक्षित हैं तथा पूंजीगत व्यय जिससे सेनाओं के लिए विमानों व उपकरणों की खरीद होती है, उस मद में 1,92,387 करोड़ रुपए ही रखे गए हैं। यह रक्षा बजट का मात्र 27.66 फीसदी है। बाकी राशि सैन्य कर्मियों के वेतन भत्तों व पेंशन पर खर्च हो जाएगी।
हालांकि विमान और वैमानिकी इंजनों के लिए 48,614 करोड़ रुपए, अन्य उपकरणों के लिए 63,099 करोड़ और नौसेना बेड़े के लिए 24,390 करोड़ रुपए अलग से रखे गए हैं। इस साल का रक्षा बजट पिछले साल के बजट से 9.5 फीसदी ज्यादा भी है। लेकिन जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, दुनिया में रूस-यूक्रेन व इस्रायल-फलीस्तीन युद्ध के साथ उथल पुथल के चलते सप्लाई चैन प्रभावित हुई है और भारत के समक्ष चीन व पाकिस्तान की दोहरी चुनौती बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए इस राशि से पार पड़ना मुश्किल ही नजर आता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साल 2025 को रक्षा क्षेत्र में सुधार करने का साल घोषित किया है। इसके तहत एकीकृत थिएटर कमांड, साइबर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे जरूरी क्षेत्रों, सरल और समयबद्ध अधिग्रहण, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में काम किए जाने है। साथ ही रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण व सशस्त्र बलों की क्षमता को मजबूत करने के लिए कई नई योजनाएं लाई जा रही है। इस हिसाब से रक्षा बजट और बढ़ाए जाने की उम्मीद की जा रही थी।
आज दुनिया भर में जगह-जगह युद्ध, गृह युद्ध और संघर्ष चल रहे हैं। वहीं भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे अपने पड़ोसियों से भी चुनौतियां मिल रही हैं। चीन-पाकिस्तान के साथ इन दिनों बांग्लादेश के साथ भी संबंधों में उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। इन हालात में रक्षा क्षमताओं को उच्चतम स्तर पर ले जाने की जरूरत के अनुरूप रक्षा बजट में बढ़ोतरी नहीं हुई।
रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि वैश्विक रक्षा खर्च में हालांकि भारत का हिस्सा बढ़कर चार प्रतिशत पहुंच गया है, लेकिन चीन और पाकिस्तान से मिल रही चुनौतियों के मुकाबले देखा जाए तो देश का रक्षा बजट अब भी जीडीपी का बमुश्किल दो फीसदी है। अमरीका अपनी जीडीपी का साढ़े तीन से चार प्रतिशत हिस्सा रक्षा बजट में खर्च करता है। इसका बड़ा हिस्सा नए हथियार, साइबर सुरक्षा, रणनीतिक सैन्य ठिकानों के रखरखाव व स्पेस डिफेंस प्रोग्राम में खर्च होता है। पिछले साल अमरीका का रक्षा बजट इस क्षेत्र में ज्यादा खर्च करने वाले नौ देशों के कुल खर्चे से भी ज्यादा था।
अमरीका के बाद चीन रक्षा क्षेत्र में सर्वाधिक खर्च करने वाला देश है। हालांकि इसका रक्षा बजट कुल जीडीपी का लगभग दो प्रतिशत ही होता है, लेकिन उसका ध्यान स्वदेशी रक्षा उत्पादन और आधुनिक प्रोद्योगिकी हासिल करना पर ज्यादा रहता आया है। दक्षिण चीन सागर व ताइवान के आसपास सैन्य विस्तार की गरज से चीन के रक्षा बजट में सर्वाधिक बढ़ोतरी हो रही है।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार भारत को कंपटीशन में बने रहने के लिए अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर खर्च बढ़ाने की दिशा में भी सोचना चाहिए। अमरीका आर एंड डी पर अपने रक्षा बजट का 13 फीसदी खर्च करता है। जानकार कहते हैं कि अमरीका आरएंडडी पर अपने रक्षा बजट का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता है और भारत के रक्षा बजट में इस मद के लिए मुश्किल से एक प्रतिशत हिस्से आता है। आर एंड डी पर बजट की कमी से हाइपरसोनिक हथियार, एआई और क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रगति सीमित हो जाती है, जबकि भारत के सामने पाकिस्तान और चीन की चुनौतियां लगातार बढ़ रही है।
मौजूदा हालात को देखते हुए सेना की जरूरतें बढ़ रही है। थल सेना को अत्याधुनिक हथियार चाहिएं और वायुसेना पहले से ही लड़ाकू विमानों की कमी झेल रही है। वायुसेना के पास निर्धारित लड़ाकू विमानों की निर्धारित 42 स्क्वाड्रन के मुकाबले लगभग तीस स्क्वाड्रन की बची है। पुराने विमान फेज आउट होते जा रहे हैं और नए विमानों की खरीद को पर्याप्त वित्त पोषण नहीं मिल रहा। हालांकि स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर पिछले पांच साल में काफी जोर दिया गया है, लेकिन स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस मार्क-2 और एडवांस मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट जैसे जरूरी प्रोजेक्ट्स को रफ्तार देने के लिए बजट में पूंजीगत व्यय बढ़ाने की उम्मीद भी पूरी होती नजर नहीं आई।