शब्द-शब्द दरपन : शीन काफ़ निज़ाम

— डाॅ. इश्राक़ुल इस्लाम माहिर

इकलौती संतान और मेधावी छात्र रहे शीन काफ़ निज़ाम इंजिनीयरिंग की पढ़ाई छोड़ कर
साहित्यिक सफ़र की शुरूआत ही से ‘ट्रेंडसेटर’ रहे हैं, उनकी अध्ययन प्रवृत्ति की वज्ह से जोधपुर में ऐसी किताबें पढ़ने सुनने में आने लगीं जिनसे जोधपुर का साहित्य जगत अनभिज्ञ था। फिर जब उनकी शाइरी,काव्य दृष्टि और साहित्यिक चिंतन देश की साहित्यिक राजधानियों में अपना असर दिखाने लगी तो जोधपुर में ऐसे साहित्यिकारों का आना शुरू हुआ जिनके बारे में शायद ही कोई नगरवासी जानता हो ,इस की एक मिसाल ये है कि जब उर्दू के नामवर नाक़िद मुहम्मद हसन स्करी का निधन हुआ तो निज़ाम शहर में ऐसे एक शख्स को ढूंढते रह गये जो मुहम्मद हसन अस्करी को जानता हो ।
उसी प्रकार निज़ाम की प्रतिभा,स्वभाव और प्रसिद्धि की वज्ह से अन्य ललित कलाओं के जो भी नेशनल लेवल के कलाकार जोधपुर आते रहे वह भी निज़ाम से अपने निकट संबंधों की चर्चा या मिलने की इच्छा को सार्वजनिक तौर पर प्रकट करते रहे ।
पिछले दो-ढाई दशकों में जोधपुर शहर में शीन काफ़ निज़ाम ही के कारण ऐसे पुरस्कार या सम्मान आने लगे जिन में से कई के नाम पहली बार सुने। ‘इकबाल सम्मान’ ‘भाषा-भारती सम्मान’ आदि के अलावा और भी कई सम्मान इस श्रेणी में आते हैं।
उनका कृतित्व हो या व्यक्तिव दोनों ही एक त्रिवेणी से जुड़े हैं यानी उनका अध्ययन, चिंतन और सर्जन आपस में गुंधा हुआ है,अध्ययन के साथ चिंतन चलता रहता है और चिंतन के साथ सर्जन होता रहता है। उनकी शाइरी में भाषाई अनुशासन, अद्वितीय मनःस्थितियां और मौलिक चिंतन है इसीलिये उनकी ग़ज़लें ग़ज़ल की पारंपरिक परिभाषा से अलग परिभाषा गढ़ती नज़र आती हैं तो नज़्में भाषा को तोड़ते हुए अछूती भाषा घड़ती हैं , और अगर समग्रता में देखा जाये तो उनका कलाम प्राचीन भारतीय मूल्यों का नया आईना है , शाइरी के साथ-साथ यही त्रिवेणी उनकी आलोचना में नज़र आती है, वह हमेशा किसी भी साहित्यिक रचना के कलात्मक और सकारात्मक पहलुओं पर नज़र डालते हैं , यही बात उनके व्यक्तित्व में भी पाई जाती है उनके आस-पास ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके बारे में वह बहुत कुछ नकारात्मक जानते हैं फिर भी उनसे मिलते वक़्त उन पर उन चीजों को ज़रा भी ज़ाहिर नहीं होने देते बल्कि सामने वाले के गुणों और संभावनाओं को उजागर करके उसको आत्म-साक्षात्कार का अवसर देते हैं और हर नव परिचित या नवागांतुक की उपस्थिति को भी सादर दर्ज करते हैं ।
जोधपुर में उनके शागिर्दों की बड़ी तादाद जगज़ाहिर है लेकिन जोधपुर के बाहर भी कई नामचीन, समकालीन और उम्र में बड़े शाइर भी निज़ाम से अपनी रचनाओं पर इस्लाह
(काव्य परामर्श) लेते रहे हैं, मौजूदा दौर में गुलज़ार सामने की मिसाल है जो सार्वजनिक कार्यक्रम में इस बात को अलग अलग शहरों में दोहरा चुके हैं। इसी तरह निदा फ़ाज़ली की हर ग़ज़ल या नज़्म के पहले श्रोता निज़ाम होते थे ।
शाइरी और आलोचना की 12 किताबें लिखने, लगभग 12 मुल्कों की यात्रा और 12 से अधिक पुरस्कार या सम्मान प्राप्ति के बाद भी उनके स्वभाव की सहजता और विनम्रता वही है जो पहली मुलाकात के वक़्त होती है ।
प्रशंसकों एवं हितैषियों के अनुसार निज़ाम को पद्मश्री कम से कम दस बरस देर से मिला है फिर भी पद्मश्री मिलने की खुशी इसलिये बड़ी है कि जोधपुर के इतिहास में शीन काफ़ निज़ाम जोधपुर शहर में किसी भी भाषा के पहले लेखक हैं जिनको पद्मश्री पेश किया जा रहा है । ‘पहले’ के ताल्लुक़ से दो और पुरस्कार याद आ गये जो कि सबसे पहले शीन काफ़ निज़ाम को पेश किये गये ,एक तो मेहरानगढ़ ट्रस्ट , जोधपुर का ‘मारवाड़ रत्न सम्मान’ दूसरा राजस्थान उर्दू अकादमी, जयपुर का ‘महमूद शीरानी अवार्ड’ । जोधपुर के 500 साल से अधिक के इतिहास में इतने लब्ध प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले वे एक मात्र लेखक हैं।
अभी पिछले दिनों पाकिस्तान में ‘चहारसू’ और भारत में ‘आलमी ज़बान’ नामी अदबी रिसालों ने निज़ाम पर विशेषांक निकाले जो बताते हैं कि उनकी मक़बूलियत सरहदों के पार भी है, शायद इसीलिये पिछले वर्ष खाड़ी देश क़तर में निज़ाम को ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ भी पेश किया गया ।
शाइरी में किसी को उस्ताद ना रखने वाले शीन काफ़ निज़ाम ‘अज्ञेय’ ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’, ‘मौलाना माहिरुल क़ादरी’,’वज़ीर आग़ा’ , ‘वारिस अल्वी’ और ‘कालिदास गुप्ता रिज़ा’ वग़ैरह की हौसला अफ़ज़ाई को अपनी ख़ुश क़िस्मती समझते हैं । निज़ाम की उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं के साहित्य पर गहरी समझ ही का नतीजा है कि राजस्थानी के विजयदान देथा ‘बिज्जी’ , हिंदी के नंदकिशोर आचार्य तो उर्दू के कालिदास गुप्ता रिज़ा, मख़्मूर सईदी और जयंत परमार सरीखे साहित्यिकारों ने अपनी किताबें उन को समर्पित की हैं ।
पद्मश्री का समाचार अगर पच्चीस दिन पहले आ जाता तो असीम धैर्य वाली उस आत्मा को दिली ख़ुशी होती जिसने शीन काफ़ निज़ाम के संघर्ष को साथ साथ जिया है । अपने दुख को अपनी निजी जायदाद मानने वाले निज़ाम शोक के बावजूद हर बधाई देने वाले से ‘अशोक’ की तरह मिल कर सब के प्रेम और भावनाओं का सम्मान कर रहे हैं । ऐसे व्यक्तित्व के लिये पद्मश्री आख़िरी पड़ाव नहीं हो सकता ।
आख़िर में शाइर ‘खु़श्तर मकरान्वी’ के दोहे पर अपनी बात को रोकता हूं
वो शब्दों का देवता जीवन जोत ‘निज़ाम’
ज़िन्दा सुन्दर रास्ते रखता हर  हर  गाम

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