जोधपुर का गांधी मैदान उस सुबह कोई साधारण स्थल नहीं था। वह आत्मशुद्धि और समभाव का महातीर्थ बन गया था, जहाँ जूते-चप्पल बाहर उतरे, और अहंकार भीतर। पुरुषों का श्वेत वस्त्र जैसे शांति का प्रतीक था, तो महिलाओं की लाल साड़ियाँ जैसे साधना की ज्वाला। हज़ारों लोग, मगर कोई ऊँच-नीच नहीं — हर कोई एक समान साधक, हर चेहरा श्रद्धा में डूबा।
सुबह 8:01 पर जब नवकार मंत्र की दिव्य ध्वनि गूँजी, तो प्रतीत हुआ मानो स्वयं समय ने कुछ क्षणों के लिए ठहर कर साधना में भाग लिया हो। मंत्र की अनुगूंज न केवल आसमान में, बल्कि आत्मा की गहराइयों में प्रतिध्वनित हो रही थी।
जैसे कोई पथिक अपने भीतर के शिव को खोज रहा हो
इस पुण्य आयोजन में जोधपुर शहर के विधायक अतुल भंसाली भी आम साधकों की तरह उपस्थित हुए — बिना किसी राजनीतिक आभामंडल के, जैसे कोई पथिक अपने भीतर के शिव को खोज रहा हो।
जीतो जोधपुर चैप्टर के अध्यक्ष प्रियेश भंडारी ने पूरे आयोजन का स्वागत इस भाव से किया, मानो कोई संत अपने घर आए यायावरों को गले लगा रहा हो। और कार्यक्रम के अंत में संयोजक राजेश कर्णावट ने ऐसा धन्यवाद ज्ञापित किया, जैसे किसी मंदिर की अंतिम आरती—जो भक्त और देव, दोनों को जोड़ दे।
विज्ञान भवन से प्रधानमंत्री की वाणी जब यहाँ गूंजी, तो वह एक श्रद्धा और शासन के बीच सेतु बन गई। उपस्थित साधकों ने तालियों की गूंज से उसके हर शब्द को सम्मान दिया—वह तालियाँ किसी व्यक्ति के लिए नहीं थीं, बल्कि उस चेतना के लिए थीं जो राष्ट्र और धर्म के बीच संतुलन बनाना जानती है।