जहां भक्ति तपती हो, वहां सेवा अमृत बन जाती है..

जयपुर। जब सूर्य आकाश में अपनी पूरी प्रखरता के साथ विराजमान हो, हवाएं अंगारों की तरह तन और मन को झुलसाने लगें, श्रद्धा के पथ पर चल रहे पथिकों को न केवल छांव की, बल्कि करुणा की भी तलाश होती है। और ठीक ऐसे ही समय में अल्ट्राटेक सीमेंट जयपुर डिपो एक शीतल जलधारा बनकर प्रकट हुआ, जिसने श्रद्धा की तपती ज़मीन पर सेवा की ठंडी फुहारें बरसाईं।

ठंडे फलों के रस ने मिटाई थकान

खोले के हनुमान जी के मंदिर और मेहंदीपुर बालाजी धाम— ये केवल पूजा के स्थल नहीं, जन-जन की आस्था की ऐसी धरातल हैं, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपने भीतर की भक्ति को अर्पित करने आते हैं। और इस बार जब हनुमान जयंती की धूप देह को छूकर आत्मा तक पहुंच रही थी, उसी पल अल्ट्राटेक की ओर से बांटे गए ठंडे फलों के रस ने एक सेवा का संदेश देकर श्रद्धालुओं के चेहरों पर मुस्कान खिला दी। यह कोई औपचारिक आयोजन नहीं था, यह संवेदना की उस रेखा का विस्तार था, जो व्यवसाय के दायरे से बाहर निकलकर मानवता की चौपाल तक पहुंचता है। और जब रीजनल हेड अरविंद अरोरा, टेरिटरी सेल्स मैनेजर शरद सुराणा और टेक्निकल हेड गिरीश भारद्वाज स्वयं सेवा में उपस्थित हों, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि नेतृत्व केवल कुर्सियों से नहीं, कर्मों से जाना जाता है। दोनों स्थानों पर 25,000 से अधिक श्रद्धालुओं तक सेवा पहुंचाना केवल एक संख्या नहीं, बल्कि यह उन हृदयस्पर्शी क्षणों की गिनती है, जिनमें किसी तपते माथे पर एक प्याले का रस ओस की बूंद बनकर उतरा और भक्ति के साथ-साथ इंसानियत का भी स्वाद दे गया।

जो सीधे दिल में उतरती है

अल्ट्राटेक ने यह सिद्ध कर दिया कि जहां श्रद्धा जल रही हो, वहां सेवा की ठंडी छांव सबसे बड़ा वरदान होती है, और कभी-कभी मंदिर की घंटियों से ज़्यादा असर किसी प्याले में भरे रस की एक मुस्कुराहट कर जाती है, जो सीधे दिल में उतरती है।

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राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के भाषण में राणा सांगा को बाबर की मदद करने के कारण ‘गद्दार’ कहे जाने से देश भर में बवाल मचा हुआ है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। इनके मुताबिक राणा सांगा ने बाबर की मदद तो कभी नहीं की, बल्कि उन्होंने फरवरी 1527 ई. में खानवा के युद्ध से पूर्व बयाना के युद्ध में मुगल आक्रान्ता बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता था।

मानवीय संवेदनाओं का चितेरा- सत्यजित रे

यह मुख़्तसर सा बायोडाटा दुनिया के मानचित्र पर भारतीय फिल्मों को स्थापित करने वाले उस फ़िल्मकार का है, जिसे करीब से जानने वाले ‘माणिक दा’ के नाम से और दुनिया सत्यजित रे (राय) के नाम से पहचानती है।

काश, फिर खिल जाए बसंत

पूरी दुनिया जहां हर 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाती है और 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस। भारत के लिए भी यह महीना काफी महत्वपूर्ण है, खासकर कला, संस्कृति और तीज त्योहारों के कारण।

शब्द भाव का खोल है, कविता निःशब्दता की यात्रा

विचार किसी के प्रति चिंता, प्रेम, आकर्षण, लगाव, दुराव, नफरत का संबंध रखता है। वह चाहे कोई मनुष्य हो, समाज हो,  देश हो, जाति- धर्म हो या भाषा। किंतु भाव किसी से संबंधित नहीं होता।

बाबा रे बाबा

सरकार के साथ हैं या उनके विरोध में। कब, कैसे, कहां और किस बात पर वे सरकार से नाराज हो जाएं, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। माटी और आंदोलन के बूते राजस्थान की सियासत के जमीनी नेता माने जाने वाले किरोड़ी लंबे समय से मंत्री पद से इस्तीफा देकर भी बतौर मंत्री काम कर रहे हैं।

स्ट्रेटेजिक टाइम आउट! और गेम चेंज

ड्रीम-11 की तरह माय-11 सर्कल, मायटीम-11, बल्लेबाजी जैसी कई ऐप्स ने स्पोर्ट्स फैंटेसी के मार्केट में कदम रख दिया। सभी ऐप्स तेजी से ग्रो भी कर रहे हैं। ये करोड़ों तक जीतने का लुभावना ऑफर देकर लोगों को इसमें पैसे लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। और इनका प्रमोशन करते हैं आईपीएल के स्टार क्रिकेटर्स।

किंकर्तव्यविमूढ़ कांग्रेस

कांग्रेस के लिए मुफीद रहे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी उसके हाथ से निकल गए और हार का असर यह हुआ कि इन प्रदेशों में भी कांग्रेस अब तक 'कोमा' से निकल नहीं पा रही।

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दादा ध्यानचंद के सपूत बेटे के इस गोल ने देश को दिलाया पहला विश्व कप। इसके 8 साल बाद वर्ष 1983 में कपिल देव की टीम ने भारत को दिलाया था क्रिकेट का विश्व कप।

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वर्ष 1914 में, तैस्सितोरी बीकानेर पहुंचे। एक विदेशी, जो उस भाषा के प्रेम में खिंचा आया था, जिसे तब भारत में भी उचित मान्यता नहीं मिली थी। बीकानेर की हवाओं में जैसे कोई पुरानी पहचान थी, यहां की धूल में शायद कोई पुराना रिश्ता।

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संयम लोढ़ा की राजनीति किसी कसीदाकारी की तरह महीन नहीं, बल्कि एक धारदार तलवार की तरह है— सीधी, पैनी और कभी-कभी बेलगाम। उनकी राजनीति में विचारधारा से ज्यादा आक्रामकता और बयानबाजी का तड़का देखने को मिलता है।

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अपन भी आज बिना चिंतन के बैठे हैं। अपनी मर्जी से नहीं, जब लिखने कहा गया तो ऐसे ही मूर्खता करने बैठ गए! कहा गया कि आजकल जो चल रहा है, उस पर एक नजर मारिए और अपनी तीरे नजर से लिख डालिए। जिसको समझ आया वो व्यंग्य मान लेगा, वरना मूर्खता में तो आपका फोटू सुरिंदर शर्मा से मीलों आगे ही है।

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अनुभव से सीखने की है और विरासत को और आगे ले जाने की है। चम्बल के पानी की तासीर कहें या यहां के लोगों की मेहनत की पराकाष्ठा, इतिहास में देखें तो कोटा ने जब-जब जिद पाली है कुछ करके दिखाया है।

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ताजा टैरिफ प्रकरण में ये जानना जरूरी है कि भारत जहां अमेरिकी वस्तुओं पर 9.5 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, वहीं भारतीय आयात पर अमेरिकी शुल्क केवल 3 प्रतिशत ही है। ट्रम्प रैसिप्रोकल नीति (जैसे को तैसा) के जरिए सभी देशों से इसी असंतुलन को खत्म करना चाहते हैं।