आज जोधपुर की सड़कों पर एक मौन था… लेकिन वह मौन चीख रहा था– न्याय की पुकार में, अहिंसा की रक्षा में, संतों के सम्मान में।
मध्यप्रदेश के नीमच ज़िले के सिंगोली कस्बे में जैन संतों पर हुए अमानवीय हमले ने देशभर के जैन समाज को झकझोर कर रख दिया। इसी के विरोध में बुधवार सवेरे 8:30 बजे जोधपुर के महावीर कॉम्प्लेक्स से शुरू हुआ एक विशाल मौन जुलूस, केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि धर्म की गरिमा की पुनःस्थापना का संदेश था।
जोधपुर बना एकजुटता का प्रतीक
हजारों स्वधर्मी – पुरुष, महिलाएं, वृद्धजन, और युवा– बिना कोई नारा लगाए, हाथों में तख्तियां, धार्मिक ध्वज और आंसू लिए कदम से कदम मिलाकर चले। यह कोई साधारण विरोध नहीं था– यह एक भावनात्मक दृश्य था, जहां हर चेहरा आहत था, पर संयमित; हर आंख में पीड़ा थी, पर उसकी गहराई में अहिंसा की लौ जल रही थी।
कछाला गांव प्रकरण को लेकर निकले इस जुलूस में संयम की शक्ति और सहिष्णुता की आवाज़ स्पष्ट दिखाई दी। ज्ञापन के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकार से मांग की गई– कि देश के हर कोने में विचरण करते संतों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। ताकि फिर कोई भी संत भय में न जिए, और कोई समाज अपने धर्मगुरु की पीड़ा को दोहराए नहीं। आज जोधपुर ने दिखा दिया कि जब भी धर्म पर चोट होगी, जब भी संयम पर प्रहार होगा – तो एक मौन समाज भी गर्जना कर सकता है। और वह गर्जना सिर्फ विरोध की नहीं, समाधान की दिशा में बढ़ता एक शांत, लेकिन दृढ़ कदम होती है। यह मौन अब थमेगा नहीं… यह मौन अब मार्ग दिखाएगा