मुफ़्त का चक्कर, फ़िक्र नहीं मगर

Slug- सामयिक

‘रेवड़ियां’ बांटने की मची होड़

डॉ. त्रिलोक शर्मा
पत्रकार – राजनीतिक विश्लेषक विजिटिंग प्रोफेसर
इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट,

निरमा यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद दिल्ली के चुनाव प्रचार अभियान ने राजनीतिक विश्लेषकों, बुद्धिजीवियों और आम लोगों के मन में ‘मुफ़्त सुविधाओं’ को लेकर अनेक सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। मुफ्त सुविधाओं को उन वस्तुओं और सेवाओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो बिना किसी शुल्क के दी जाती हैं। जब हम किसी सुपर मार्केट से कुछ खरीदते हैं, तो कई बार हमें कोई वस्तु मुफ्त में या बहुत कम कीमत पर मिल जाती है। यह एक सामान्य विपणन तकनीक (मार्केटिंग टेक्निक) है जिससे उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि गरीब वर्गों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है। लेकिन चुनावों में अतार्किक मुफ्त सुविधाओं का प्रयोग जनता को लुभाने के लिए किया जाता है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की अवधारणा कमजोर होती है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहा है, और इसका निर्णय इस विषय पर एक महत्वपूर्ण दिशा निर्धारित करेगा।

चुनावों के संदर्भ में, विभिन्न राजनीतिक दल मुफ्त सुविधाएं देते हैं। वे सार्वजनिक धन से वस्तुएं और सेवाएं देकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास करते हैं। यह प्रश्न उठता है कि क्या राजनीतिक दल कंपनियां हैं, जो मुफ्त सुविधाओं के माध्यम से खुद को विज्ञापित कर रहे हैं? या क्या चुनाव एक सुपर मार्केट हैं, जहां मतदाताओं को मुफ्त वस्तुएं देकर उन्हें प्रभावित किया जाता है? क्या यह उचित है कि राजनीतिक दल केवल सत्ता में बने रहने के लिए सार्वजनिक धन से मुफ्त सुविधाएं प्रदान करें?

कुछ बुद्धिजीवियों की राय में इस विषय के दूसरे पक्ष को भी पूरी तरह से अनदेखा नहीं किया सकता कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आज भी बहुत से लोग हैं जिन्हें मुफ्त सुविधाओं की आवश्यकता है। हालांकि, ऐसे भी कई लोग भी हैं जो मुफ्त सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं, जबकि उन्हें उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ सरकारी योजनाएं जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) आज भी प्रभावी हैं। PDS खाद्य, पानी, और वस्त्र जैसी बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान करता है। 1992 में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य PDS को और मजबूत बनाना था। 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) शुरू की गई, जिसका उद्देश्य गरीबों की स्थिति में सुधार करना था। हालांकि, PDS में भ्रष्टाचार की समस्या भी रही है। आज भी केंद्र सरकार 80 करोड़ ज़रूरतमंदों को प्रतिमाह मुफ्त राशन दे ही रही है। 2013 में शुरू किए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) ने भी गरीबों को राहत प्रदान की है। इस अधिनियम के तहत, 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को सब्सिडी वाले खाद्यान्न उपलब्ध कराए जाते हैं। यह योजना अभी भी प्रभावी है

2025 के चुनाव प्रचार के आरम्भ में ही आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक दलों को आईना दिखाने के साथ सवाल उठाया है कि जनता के पैसे का इस्तेमाल जनता को लाभ पहुंचाने के लिए क्यों नहीं किया जा सकता, क्यों दिल्ली की तरह पूरे देश में फ्री बिजली नहीं दी जा सकती ?

भाजपा का यू-टर्न :

दिलचस्प बात यह है कि 2022 के पंजाब और गुजरात विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी (आप) और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ‘रेवड़ी संस्कृति’ पर खुलकर हमला बोलते हुए इसे देश की अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के लिए घातक बताते हुए कहा था कि लोग रेवड़ी बांटकर दोस्त बनाते हैं और बाद में करों से बचने के लिए इसका उपयोग करते हैं। उन्होंने कहा था कहा था – “राजनीतिक दल वोट पाने के लिए मुफ्त सुविधाएं वितरित करते हैं। मुफ्त सुविधाएं देना जनता को लुभाने और वोट पाने की एक अनैतिक राजनीति है।” इस बयान का आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने विरोध किया और तब यह टिप्पणी बड़े विवाद का विषय बन गई थी और प्रबुद्ध वर्ग से लेकर राजनीतिक गलियारों तक चर्चा में रही। लेकिन अब 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में वही बीजेपी भी इस रेवड़ी संस्कृति का हिस्सा बन गई है।

कांग्रेस भी इस होड़ में पीछे नहीं है। यह बदलाव दर्शाता है कि राजनीति में सिद्धांतों से ज्यादा प्राथमिकता चुनावी जीत को दी जाती है।

ज्ञात रहे, दिल्ली में महिलाओं के लिए दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की बसों में मुफ्त पास की सुविधा दी जाती है। दिल्ली सरकार ने 2017-18 में इस योजना के तहत ₹70.18 करोड़ की सब्सिडी दी थी, लेकिन दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, DTC का घाटा ₹1750.38 करोड़ तक पहुंच गया।
दिल्ली सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी वाली बिजली प्रदान करती है लेकिन इसका भार उद्योगों पर अतिरिक्त कर लगाकर डाला जाता है। इस प्रकार, मुफ्त बिजली की सुविधा देने से पूंजीगत खर्चों में कमी आई है, जिससे स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, सड़कों, मेट्रो, और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

गुजरात के मतदाताओं की नाराजगी:
दिल्ली चुनावों के दौरान पीएम मोदी द्वारा मुफ्त योजनाओं की घोषणा करने पर गुजरात के लोगों में गहरी निराशा देखी जा रही है। गुजरात पिछले तीन दशकों से बीजेपी के प्रति वफादार रहा है, लेकिन वहां के लोगों को इस तरह की मुफ्त योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। अब गुजरात के मतदाता यह सवाल कर रहे हैं कि जब दिल्ली और अन्य राज्यों के लिए यह संभव है, तो गुजरात को इससे वंचित क्यों रखा गया है? यह सवाल बीजेपी के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर सकता है।

क्या फ्रीबी (रेवड़ी) संस्कृति लोकतंत्र के लिए सही है?

लोकतंत्र का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना और उनकी क्षमताओं को बढ़ाना होता है। लेकिन जब राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं का सहारा लेते हैं, तो यह दीर्घकालिक विकास की जगह अल्पकालिक लाभ देने का काम करता है। यह रणनीति न केवल कर दाताओं के पैसे की बर्बादी करती है, बल्कि इससे सरकारी संसाधनों का भी दुरुपयोग होता है।

कर दाताओं के पैसे का दुरुपयोग:

राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं की होड़ में कर दाताओं का पैसा इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे विकास परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे पर असर पड़ता है। यह कर दाताओं के पैसे का राजनीतिक फायदा उठाने जैसा है, जिससे सरकारी योजनाओं में असमानता बढ़ रही है। क्या यह उचित है कि मेहनतकश कर दाताओं का पैसा सिर्फ राजनीतिक दलों के वोट बैंक मजबूत करने के लिए खर्च किया जाए?

क्या फ्रीबी एक चुनावी लालच है?

यदि मुफ्त सुविधाओं को चुनावी लालच के रूप में देखा जाए, तो यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दल इसके बिना चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं। यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दलों के पास मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई और नीति या योजना नहीं है? क्या जनता को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के वादों के बजाय मुफ्त सुविधाओं का लालच देना उचित है?

विकसित देशों में मुफ्त योजनाओं की स्थिति:

दुनिया के कई विकसित देशों में मुफ्त सेवाओं का प्रावधान किया जाता है, लेकिन उनका तरीका अलग होता है। स्कैंडिनेवियाई देश जैसे नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क में मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती हैं, लेकिन इसकी भरपाई उच्च कराधान से की जाती है। भारत में, मुफ्त योजनाओं की कोई स्पष्ट वित्तीय योजना नहीं होती, जिससे सरकारों को कर्ज लेना पड़ता है या करदाताओं पर बोझ बढ़ता है।

सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग का नजरिया:

सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने कई बार मुफ्त योजनाओं की वैधता पर सवाल उठाए हैं। 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनावों के दौरान मुफ्त सुविधाओं के वादे चुनावी अनियमितता हो सकते हैं। हाल ही में, भारत के चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि वे मुफ्त योजनाओं के लिए वित्तीय प्रबंधन का स्पष्ट विवरण दें। फिर भी, इस पर कोई ठोस कानून नहीं बना है।

कुल मिला कर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 ने यह दिखा दिया है कि अब सभी राजनीतिक दल मुफ्त योजनाओं को चुनावी सफलता की कुंजी मानने लगे हैं। जो नेता कभी मुफ्त योजनाओं का विरोध करते थे, वे अब इन्हें चुनावी हथियार बना रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय लोकतंत्र में चुनावी जीत के लिए केवल मुफ्त योजनाओं का ही सहारा रह गया है? यह विचारणीय है कि अगर यही रवैया जारी रहा, तो भविष्य में सरकारें वास्तविक विकास से ज्यादा तात्कालिक लोकप्रियता पर ध्यान केंद्रित करेंगी।

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दिल्ली चुनाव 2025: कौन दे रहा है सबसे ज्यादा पैसा और मुफ्त सुविधाएं – AAP, BJP या कांग्रेस?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025
के मद्देनजर आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (INC) ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने चुनावघोषणा पत्रों में विभिन्न योजनाओं की घोषणा की है। इन योजनाओं का लाभ गरीबों, मध्यम वर्ग, महिलाओं, युवाओं, पुजारियों और अन्य वर्गों को देने का वादा किया गया है।
श्रेणी/सुविधा आम आदमी पार्टी भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस
महिलाएं ₹2100 (महिला सम्मान योजना: 18 वर्ष से ऊपर, दिल्ली की निवासी, वोटर लिस्ट में नाम, सरकारी कर्मचारी/पेंशनधारी नहीं) ₹2500 गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को ₹21,000 गर्भवती महिलाओं को (मातृ सुरक्षा वंदना योजना) | ₹2500 (प्यारी दीदी योजना) |

युवा/छात्र
डॉ. अंबेडकर सम्मान छात्रवृत्ति: दलित छात्रों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए संपूर्ण वित्तीय सहायता
2. 1. ₹15,000 (UPSC, राज्य PCS जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए दो प्रयासों तक)

  1. ₹1,000 मासिक छात्रवृत्ति (SC समुदाय के ITI और पॉलिटेक्निक छात्रों के लिए)
    ₹8,500 (युवा उड़ान योजना) और एक वर्ष की अप्रेंटिसशिप

पुजारी
पुजारी
कोई लाभ नहीं
कोई लाभ नहीं

वरिष्ठ नागरिक (65 वर्ष से अधिक)
सरकारी व निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज (संजीवनी योजना)
1. ₹2500 पेंशन (60-70 वर्ष के लिए)

  1. ₹3000 पेंशन (70 वर्ष से अधिक)

दिल्ली मेट्रो किराए में छूट छात्रों के लिए 50% छूट —
बिजली और पानी
दिल्लीवासियों और किरायेदारों के लिए 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली (50% सब्सिडी उसके बाद)
सभी मौजूदा सरकारी योजनाएं जारी रहेंगी
300 यूनिट तक मुफ्त बिजली

अन्य वादे
1. ₹1 लाख ऑटो चालकों की बेटियों की शादी के लिए

  1. ₹2,500 (होली व दिवाली पर नई वर्दी के लिए)
  2. ₹10 लाख जीवन बीमा, ₹5 लाख दुर्घटना बीमा ऑटो चालकों के लिए
    1. ₹500 सब्सिडी एलपीजी सिलेंडर पर₹5 की दर से
  3. भोजन (अटल कैंटीन)
  4. ₹10 लाख जीवन बीमा और ₹5 लाख दुर्घटना बीमा (ऑटो-टैक्सी चालकों के लिए)
    1. ₹500 प्रति एलपीजी सिलेंडर
  5. 5 किलो चावल, 2 किलो चीनी, 1 लीटर तेल, 6 किलो दाल, 250 ग्राम चाय पत्ती वाली राशन किट

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कांग्रेस के लिए मुफीद रहे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी उसके हाथ से निकल गए और हार का असर यह हुआ कि इन प्रदेशों में भी कांग्रेस अब तक 'कोमा' से निकल नहीं पा रही।

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