साइबर अरेस्ट रोकथाम के लिए अब एआइ औजारों की दरकार

प्रो. (डॉ.) सचिन बत्रा
सलाहकार,
मीडिया फेडरेशन ऑफ इंडिया,दिल्ली

आज के नए दौर में साइबर अपराधी भी नए नए पैंतरे अपनाकर अनूठे तरीके से जुर्म कर रहे हैं। इसमें सबसे सनसनीखेज वारदात हैं साइबर अरेस्ट की। उदाहरण के लिए नोएडा के सेक्टर 128 की ही घटना में पीड़िता चांद गांधी को 48 घंटे फोन पर ही यह कहते नजरबंद कर दिया गया है कि उन्होंने जो पार्सल भेजा था उसमें नकली पासपोर्ट और ड्रग्स पाई गई है। शातिर साइबर अपराधियों ने उनपर इतना मनोवैज्ञानिक दबाव डाला कि उन्हें दो किश्तों में 65 लाख रूपए देने ही पड़े। ऐसे नए मामले तो अब पुलिस ही नहीं जांच एजेंसियों को भी चौंकाने लगे हैं। इसका कारण यह है कि साइबर अरेस्ट ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रताड़ना है जिसमें व्यक्ति औचक आरोपों और कार्रवाई की घंटो लंबी कवायद के चलते अपने मोबाइल पर आई वीडियो काल से बरी ही नहीं हो पाता। आखिरकार विवश होकर अपनी लाखों की धन संपदा को अपराधियों के हवाले करने को मजबूर हो जाता है। अचूक मनोवैज्ञानिक दबाव और कानूनी कार्रवाई के भय से की जाने वाली डिजिटल गिरफ्तारी के मामले अभी इतने नए हैं कि इससे निपटने की समझ अभी समाज में विकसित ही नहीं हुई है। क्योंकि डिजिटल अरेस्ट एक अचानक होने वाली ऐसी कार्रवाई है जो किसी एक व्यक्ति पर मनी लॉन्ड्रिंग, आय से अधिक संपत्ति, पार्सल में ड्रग्स, भ्रष्टाचार, अवैध धन, विदेश से प्राप्त धन या हवाला का आरोप लगाते हुए कानूनी कार्रवाई और जेल की धमकी से भ्रमित कर देती है। लिहाजा अब ऐसे मामलों से सावधान और बचाव करने के लिए एआइ औजारों सहित डिजिटल एलर्ट सिस्टम तैयार करना आवश्यक हो गया है।

भारत में साइबर अपराध के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हालिया मामले इसका जीता-जागता उदाहरण हैं, जैसे कि लुधियाना के 82 वर्षीय व्यवसायी को मनी लॉन्ड्रिंग के फर्जी आरोप में फंसाने की धमकी देकर 7 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी या फिर दिल्ली की एक महिला वकील से नशीले पदार्थों की तस्करी के झूठे आरोप में 14 लाख रुपये ठग लेना। इन घटनाओं ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर एक वकील जैसे कानून के पेशेवर भी साइबर अपराधियों के सम्मोहन और मनोवैज्ञानिक दबाव के आगे लाचार हो सकते हैं, तो आम आदमी इन खतरों से कैसे बचेगा? वहीं पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए यह मामले इतने नए है कि बचाव व रोकथाम के लिए उपायों पर मंथन किया जा रहा है। परेशानी यह है कि साइबर अपराधी पहले किसी शिकार के व्यक्तिगत आंकड़ों को हासिल करते हैं, फिर उसे डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाकर फर्जी अधिकारियों के रूप में मानसिक प्रताड़ना देते हैं।

यह केवल भारत की समस्या नहीं है; अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे विकसित देशों में भी साइबर धोखाधड़ी ने विकट समस्या का रूप ले लिया है। FBI की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में साइबर अपराध से एक साल में 2.4 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। हालांकि कुछ एआइ टूल्स साइबर अपराधियों के खिलाफ कारगर साबित हुए हैं। मसलन, क्राउडस्ट्राइक एक उन्नत सुरक्षा टूल है, जो डेटा पर हमले या सेंधमारी की पहचान करते हुए रोकथाम में मददगार माना जाता है। यह डिजिटल शोषण और अनाधिकृत हस्तक्षेप पर नकेल कसने के लिए उपयुक्त है। इसी प्रकार, जीरोफॉक्स सोशल मीडिया और डिजिटल चैनलों की निगरानी में दक्ष है, जो ऑनलाइन फ्रॉड, इनफॉर्मेशन लीक और फिशिंग के मामलों को रोकने में सहायक है। देखा जाए तो आम तौर पर एआइ टूल्स व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, बैंकों और सरकारी एजेंसियों को तो सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं, पर आम नागरिक को डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन एक्सटॉर्शन जैसी घटनाओं से बचने के लिए कोई ठोस सुरक्षा उपाय उपलब्ध नहीं है। इसके चलते आज साइबर अपराधियों का सबसे आसान शिकार आम आदमी बनता जा रहा है, जिसके पास इन अपराधों से बचने के लिए न कोई समझ है और न ही साधन।

वैसे तो भारत सरकार ने भी साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए आई4सी (इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर) और 1930 हेल्पलाइन जैसी पहल की हैं, जो साइबर अपराध के मामलों में तत्काल सहायता प्रदान करती है। फिर भी डिजिटल अरेस्ट और साइबर एक्सटॉर्शन के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस क्षेत्र में और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रहने के लिए एआइ औजार विकसित कर एक संगठित और समर्पित तंत्र बनाया जाए, जो आम नागरिक को साइबर अपराधियों से सुरक्षित रख सके।

अब वक्त आ गया है कि मोबाइल निर्माता कंपनियां, बैंक और सरकार मिलकर एआइ आधारित सुरक्षा तंत्र विकसित करें। यह तंत्र लोगों के मोबाइल, टैब या कंप्यूटर पर पहले चरण में ही अलार्म या चेतावनी देने में सक्षम होना चाहिए, ताकि उन्हें किसी भी डिजिटल धोखाधड़ी से सचेत किया जा सके। साथ ही, ऐसे एआइ एप्लिकेशन विकसित किए जा सकते हैं, जो साइबर अपराधियों की गतिविधियों के एल्गोरिदम पर आधारित हों। जब कोई अपराधी फर्जी अधिकारी बनकर किसी व्यक्ति को डिजिटल अरेस्ट करता है, तो वह व्यक्ति त्वरित रूप से खतरे की चेतावनी पा सके। हालांकि जागरूकता को साइबर सुरक्षा का पहला कदम माना जाता है, लेकिन आज के डिजिटल युग में केवल चेतना से ज्यादा कुछ करने की जरूरत है। आम नागरिकों को साइबर अपराधियों के सम्मोहन और मनोवैज्ञानिक हमलों से बचाने के लिए एआइ आधारित सुरक्षा ही कारगर साबित होगी।

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