राकेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
आखिर दुनिया भर में कार्यस्थलों पर क्यों बढ़ता जा रहा है काम का दबाव? हर काम की एक सीमा होती है और यदि उस सीमा का लांघने का प्रयास किया जाता है तो परिणाम नकारात्मक ही आने हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय से युवा काम के दबाव के चलते डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं। बढ़ते टारगेट के चलते ये समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि जो युवा इस नकारात्मक पहलू को अच्छे से समझ चुके हैं, वे खुद को स्व-प्रबंधित कर इस महामारी से दूर हो चुके हैं। ये कोई अमरीका जैसे एक विकसित देश की समस्या नहीं है, बल्कि जब से तकनीकी युग शुरू हुआ है, लगभग सभी विकसित व विकासशील देश के युवा इस बीमारी के चपेट में आने लगे हैं। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में 25 से 30 फीसदी युवा कर्मचारी इस समय डिप्रेशन की समस्या से जूझ रहे हैं।
वैश्विक व्यापार और भारत: टैरिफ की नई चुनौतियां – राजस्थान https://rajasthantoday.online/archives/1133
तकनीकी हो या गैर तकनीकी क्षेत्र, उच्च शिक्षा प्राप्त युवा मोटी तनख्वाह पर बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में जैसे ही अपनी नौकरी शुरू करते हैं, बड़ी जिम्मेदारी के कारण शुरू से ही उन्हें काम के बोझ से लाद दिया जाता है। अधिकांश बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के मुख्य कार्यालय वैसे भी उनके अपने देशों में होते हैं। ऐसे में उन कम्पनियों में कार्यरत अधिकतर भारतीय युवाओं के लिए उनके देश के समय के अनुसार ढलने में दिक्कत रहती है। ऐसे में इन भारतीय युवाओं की दिनचर्या प्रायः गड़बड़ाई हुई ही रहती है। उन्हें सुबह का पता होता है और न रात का। नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक उनका समय मेल नहीं खाता। नींद तो कभी पूरी हो ही नहीं पाती। अनिद्रा के शिकार होने से उनमें बैचेनी भी बढ़ती रहती है।
35 प्रतिशत युवा डिप्रेशन के शिकार
काम के बोझ के मारे अकेले अमरीका में करीब 35 प्रतिशत युवा कर्मचारी डिप्रेशन के शिकार हैं। पूरी दुनिया का आकलन करें तो ये प्रतिशत 28 फीसदी से ज्यादा ही है। भारत के भी कमोबेश ये ही हालात है। डिप्रेशन की बीमारी साधारणतः तो देखने मात्र से समझ ही नहीं आती। पीड़ित युवा अकेले रहने के आदी हो जाते हैं। साथ ही उन्हें लगातार काम करने की आदत पड़ जाती है और वे घर जाने से भी कतराते हैं। समस्याओं से बचने के प्रयास में वे खुद को काम में व्यस्त कर लेते हैं। अक्सर अपने साथी कर्मचारियों व दोस्तों के साथ पार्टियां करने वाले कई युवा धीरे- धीरे अकेले रहने लगते हैं और उन्हें किसी का संग अच्छा नहीं लगता। आफिस में जहां समूह बैठकें होती हैं, वहां से भी ऐसे युवा नदारद रहने की कोशिश करते हैं। जो युवा डिप्रेशन की गंभीर अवस्था पार कर जाते हैं वे आफिस का काम भी समय पर पूरा नहीं कर पाते और ऐसे में वे आफिस जाने से भी कतराने लगते हैं। कुल मिलाकर उनका समय प्रबंधन गड़बड़ा जाता है। काम पर नियंत्रण नहीं रहता। कमजोर मानसिक स्वास्थ्य के चलते वे अपने तय टारगेट पर भी ध्यान नहीं दे पाते, जिससे वे आफिस में मिलने वाले कई लाभों से भी वंचित हो जाते हैं। ऐसे में उनका तनाव और बढ़ जाता है।
मानसिक स्थिति का परीक्षण जरूरी
युवाओं में बढ़ते ऐसे हालात उनके भविष्य के लिए उचित नहीं माने जा सकते। उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे युवाओं के परिजनों व खासतौर से उनके कार्यालयी अधिकारियों को चाहिए कि वे समय- समय पर उनकी मानसिक स्थितियों का परीक्षण करवाए और उन्हें बेहतर काम का माहौल प्रदान करे। उन्हें अकेले छोड़ने से बचें और बेहतर पारिवारिक माहौल प्रदान करने की कोशिश करें। उनके साथ नरमी से पेश आएं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि कार्यस्थल पर काम के दबाव के चलते डिप्रेशन के लक्षण खुद पर हावी होने से पहले उन्हें पहचानना जरूरी है। यदि स्थिति नियंत्रण में न हो तो तत्काल चिकित्सकीय परामर्श लेने से नहीं हिचकना चाहिए। ये पीड़ित युवा के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। नियोक्ता कम्पनियों को भी इसे गंभीरता से लेना चाहिए। ऐसी कम्पनियां चाहे तो समय- समय पर कार्यालय में जागरूकता अभियान या खेलों का आयोजन कर सकती है, जिससे युवा काम से अलग होकर डिप्रेशन से बाहर आ सकें।
हल्की- फुल्की मनोरंजक गतिविधियां
यदि संभव हो तो परिसर में ही कार्यालय समय के दौरान एकाध घंटे के लिए हल्की-फुल्की खेल या मनोरंजक गतिविधियां भी संचालित की जा सकती है। ताकि कर्मचारी अपनी मानसिक स्थिति पर नियंत्रण के साथ ही खुद को बोझिल न समझे। ये कोई जरूरी नहीं कि डिप्रेशन की स्थिति होने पर ही जागरुकता अभियान चलाया जाए। कम्पनियों या नियोक्ता एजेन्सियों को चाहिए कि वे अपने कर्मचारियों को ऐसी अवस्था में जाने से बचाने के लिए भी नियमित रूप से प्रतिदिन एकाध घंटा हल्की-फुल्की मनोरंजक गतिविधियां संचालित करने का प्रयास करें। यदि प्रतिदिन संभव न हो तो दो- तीन दिन में एक बार भी की जा सकती हैं, जिससे कर्मचारी का मनोबल बढ़ा हुआ रहेगा और वे कार्यालय का काम भी निर्धारित समय के भीतर कर सकेंगे। ऐसा करना कर्मचारी व नियोक्ता कम्पनी दोनों के लिए फायदेमंद रहेगा।