बीकानेर का पापड़ महज़ एक दाल और मसालों का मेल नहीं, बल्कि एक संपूर्ण संस्कृति की तहज़ीब है—जो थाली से निकलकर कभी विदेशी कूटनीति की मेज़ तक जा पहुँची थी। कहते हैं कि 1932 के लंदन वायसराय सम्मेलन में, जब भारत की ओर से प्रतिनिधिमंडल गया, तो उसमें एक विशेष नाम था—बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह। वे अकेले ऐसे भारतीय राजा थे जिन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों (1930, 1931 और 1932) में भारतीय रियासतों की ओर से भाग लिया और ब्रिटिश साम्राज्य के दरबार में भारत की रियासतों की बात पूरे आत्मविश्वास से रखी।
उनकी दूरदृष्टि और कूटनीतिक क्षमता की मिसालें आज भी दी जाती हैं, पर एक और बात जो उनके साथ लंदन पहुँची—वह थी बीकानेरी पापड़ की परंपरा। हालाँकि इस बारे में कोई औपचारिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह लोककथा बीकानेर में गहराई से प्रचलित है कि महाराजा गंगा सिंह के साथ बीकानेरी पापड़ भी लंदन की ज़मीन पर पहुँचा।
कहते हैं, जब ब्रिटिश अफसरों और विदेशी प्रतिनिधियों के भोज में ये पतले, करारे, मसालेदार चमत्कार परोसे गए, तो एक अंग्रेज अफसर हँसते हुए बोल पड़ा—”It cracks like our diplomacy, but tastes far richer!” यह वही दौर था जब भारत राजनीतिक रूप से गुलाम था, लेकिन स्वाद और परंपरा के स्तर पर उसने अपनी छाप दुनिया पर छोड़नी शुरू कर दी थी।
बीकानेरी पापड़ ने वहाँ स्वाद के ज़रिए जो दोस्ती का पुल बनाया, वह सिर्फ़ एक नाश्ते की महक नहीं थी—वह थी राजस्थानी मिट्टी की महिमा, जो किसी औपनिवेशिक दरबार में भी बिना सिर झुकाए मुस्कुरा सकती थी। यह पापड़ नहीं था, वह एक संदेश था—कि भारत भूखा या पिछड़ा नहीं, बल्कि स्वाद, संस्कृति और शालीनता से समृद्ध देश है।और यह संदेश वहाँ तक पहुँचा, जहाँ कभी भारत की आवाज़ नहीं पहुँची थी—ब्रिटेन की शाही दावतों में।