नए मोड़ पर राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी : संघर्ष, संतुलन और सियासत

विवेक श्रीवास्तव

राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी इन दिनों बदलाव, संघर्ष और संतुलन के नए दौर से गुजर रही है। प्रशासनिक गलियारों में हर तरफ एक नई हलचल है। जहां एक ओर मुख्य सचिव सुधांशु पंत के नेतृत्व में ब्यूरोक्रेसी को एक नई दिशा देने की कोशिशें की जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर अफसरशाही के भीतर गुटबाजी और संतुलन का संकट भी गहराता जा रहा है।

मुख्य सचिव की दमदार एंट्री

31 दिसंबर 2022 को निवर्तमान मुख्य सचिव उषा शर्मा के रिटायर होने के बाद सुधांशु पंत ने प्रदेश के मुख्य सचिव का पदभार संभाला। केंद्र से लौटने के बाद पंत की नियुक्ति को लेकर बड़े राजनीतिक संकेत देखे गए। उनकी कार्यशैली, फाइलों पर तेजी से निर्णय लेना और स्पष्ट दृष्टिकोण ने उन्हें एक प्रभावी प्रशासक के रूप में स्थापित किया। शुरुआत में पंत ने औचक निरीक्षण और त्वरित फैसलों से अपनी छवि को मजबूत किया।

हालांकि, हाल ही में जैसलमेर के दौरे में स्थानीय अफसरों द्वारा उन्हें बिना फिटनेस सर्टिफिकेट वाले वाहन में घुमाने की घटना ने प्रशासनिक नियंत्रण पर सवाल खड़े कर दिए। यह घटना संकेत देती है कि मुख्य सचिव का प्रभावशाली आरंभ धीरे-धीरे सामान्य होता जा रहा है।

ब्यूरोक्रेसी में गुटबाजी और संघर्ष

मुख्य सचिव के साथ ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने संतुलन स्थापित करने के लिए शिखर अग्रवाल को सीएमओ एसीएस नियुक्त किया। इससे ब्यूरोक्रेसी में दो ध्रुव बनने लगे। एक ओर सुधांशु पंत का खेमा है, तो दूसरी ओर शिखर अग्रवाल का। यह विभाजन सचिवालय में स्पष्ट तौर पर दिखा, जब सीएम के निरीक्षण के दौरान अग्रवाल साथ थे, लेकिन मुख्य सचिव पंत नदारद।

सूत्रों के मुताबिक, आईएएस लॉबी भी दो गुटों में बंट चुकी है। शिखर अग्रवाल के करीबी अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई हैं। वित्त सचिव अखिल अरोड़ा और उनकी पत्नी अपर्णा अरोड़ा को अहम विभागों में बनाए रखना इसी गुटबाजी का परिणाम माना जा रहा है।

भ्रष्टाचार के आरोप और मुख्य सचिव की चुनौती

राजस्थान कैडर के वरिष्ठ अफसर सुबोध अग्रवाल, जो मुख्य सचिव पद की दौड़ में थे, पर जल जीवन मिशन में करोड़ों के घोटाले के आरोप हैं। ईडी की जांच और छापेमारी के चलते उनका मुख्य सचिव बनना संभव नहीं हुआ। ऐसे में सुधांशु पंत को चुनकर भाजपा नेतृत्व ने स्पष्ट संकेत दिया कि उन्हें एक प्रभावी और साफ-सुथरे प्रशासक की जरूरत है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

ब्यूरोक्रेसी में बढ़ती गुटबाजी का असर राजनीतिक बयानबाजी में भी दिखा। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने राजस्थान की सरकार को ‘चार इंजन’ की सरकार बताया—मुख्यमंत्री-मंत्रियों, ब्यूरोक्रेसी, पूर्व मुख्यमंत्री के गुट और आरएसएस। उनका कहना था कि ये चारों इंजन अलग-अलग दिशाओं में खींच रहे हैं, जिससे सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है।

आगे का रास्ता

राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी जिस मोड़ पर खड़ी है, वहां संतुलन और प्रभावी नेतृत्व की सख्त जरूरत है। मुख्य सचिव सुधांशु पंत की चुनौती न केवल गुटबाजी को खत्म करना है, बल्कि प्रशासन को नई ऊर्जा और दिशा भी देनी है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि पंत और शिखर अग्रवाल के बीच यह शक्ति संतुलन ब्यूरोक्रेसी और राज्य के विकास को किस दिशा में ले जाता है।

देखना होगा:
राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी इस समय एक दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। सुधांशु पंत के नेतृत्व, शिखर अग्रवाल के प्रभाव और राजनीतिक दबावों के बीच यह देखना अहम होगा कि प्रदेश की अफसरशाही अपने पुराने ढर्रे से निकलकर नई भूमिका में कैसे खुद को ढालती है। यह दौर राजस्थान के प्रशासनिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ सकता है।

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