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अजय अस्थाना
वरिष्ठ पत्रकार
इस वर्ष जनवरी माह में ही कोचिंग सिटी कोटा में छह बच्चों द्वारा की गई सुसाइड से हर कोई स्तबध है। क्या इस सिलसिले का कोई अंत होगा? कब टीनएज पूरी करते मासूम फंदों से लटकना छोड़ेंगे? ऐसे कई सवाल है जो शायद हर किसी के दिमाग में नहीं आते हैं, लेकिन कोटा के लोगों के जरूर आते हैं। क्योंकि लगातार बढते हादसे इस तेजी से बढते शहर के लिए चिंता का विषय हैं। आखिरकार कोचिंग सेंटर, पेरेंट्स और सरकार स्टूडेंट्स को आत्महत्या करने से क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? हालांकि इसको लेकर कई कोशिशें कोटा जिला प्रशासन कर चुका है, यह सिलसिला भी जारी हैं। लेकिन महज एक माह में छह आत्महत्या ने सबको झकझोर रख दिया है। जिला कलेक्टर रविंद्र गोस्वामी ने सीधे बच्चों से जुड़ कर उनका मानसिक दबाव कम करने के लिए कामयाब कोटा कार्यक्रम के शुरू कर डिनर—विद—कलेक्टर की पहल की हैं। जिसमें बच्चों के साथ बैठ कर उनको मोटिवेट कर रहे हैं। इसके अलावा भी कई कदम उठाए हैं। लेकिन हाईकोर्ट ने इन आत्महत्याओं को लेकर ज्यादा गंभीरता दिखाई हैं। स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेकर कोर्ट ने सरकार से साफ शब्दों में कहा है कि सुसाइड रोकने के लिए कानून बनाने का कहा है। नहीं तो दस फरवरी के बाद कोर्ट ही गाइड लाइन जारी करेगा। लेकिन वो कानून या गाइड लाइन अब तक के उपायों से कितनी अलग ओर असरदार होगी? जो यह झकझोर देने वाली घटनाएं रोक पाए। ऐसा होना भी जरूरी है क्योंकि कोटा में एक दशक में 172 बच्चे मौत को गले लगा चुके हैं। इनमें 2022 में 20, 2023 में 25, 2024 में 24 और 2025 के पहले महीने में 6 सुसाइड हुई हैं।
आखिर वजह क्या है?
कोटा में पिछले तीन सालों में जिस गति से छात्रों की संख्या बढी है उसके अनुरूप् ही आत्महत्याओं का सिलसिला बढा हैं। आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह जो सामने आती है वह बच्चों का पढाई नहीं कर पाना। पुलिस को कई सुसाइड नोट भी मिले हैं, ज्यादातर में वह सफलता नहीं मिलने से परेशान होकर अपने परिजनों के सपने पूरे नहीं करना का मलाल लेकर फंदे को गले लगा लेते है। इसके अलावा कुछ मामलो में यह भी सामने आया कि कोई एवरज स्टूडेंट कोचिंग सेंटर में दो सौ तीन सौ बच्चों की क्लास में इतना प्रेशराइज हो जाता है कि उसका आत्मविश्वास टूट जाता है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों के एडमिशन से पहले यह जानना जरूरी है कि वह वाकई उस डॉक्टर इंजीनियर बनना चाहता है? एडमिशन के बाद भी उसमें अगर पोटेंशियल नजर नहीं आता है तो पेरेंटस को बताना चाहिए। जिससे वह बाद में डिप्रेशन में जाकर कोई गलत कदम नहीं उठाए।
टीन एज में सपोर्टिव सिस्टम महत्वपूर्ण
इसकी वजह यह है कि कोटा में कोचिंग लेने आने वाले ज़्यादातर स्टूडेंट्स की उम्र 15 और 17 के बीच में होती है। इस उम्र में जहां शारीरिक और मानसिक विकास का क्रम जारी रहता है, उसमें कोमल मन के इन बच्चों के लिए घरों से सैंकड़ों किलोमीटर दूर इस शहर में अकेले रहना आसान नहीं होता है। इसके साथ उन पर परिवारों की उम्मीदें पूरी करने का बोझ भी होता हैं। स्कूली शिक्षा पूरी कर आए इन बच्चों के लिए हर दिन 13-14 घंटों की पढ़ाई, टॉपर्स के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा के दबाव के साथ रहना आसान नहीं होता है। ऐसे में बच्चों को इमोशनल सपोर्ट चाहिए। यहां पर एक साइकलॉजिस्ट का वर्जन दूंगा।
अब तक यह हुआ, तो आगे क्या?
सरकारी स्तर पर प्रशासन और पुलिस ने आत्महत्याएं रोकने के लिए प्रयास किए हैं। इनमें पढाई नहीं कर पाने पर कोचिंग और हॉस्टल से फीस रिफंड तक करने की बाध्यता रखी गई जिससे परिजन के दबाव में जबरदस्ती पढाई नहीं करें। इतना ही नहीं कोचिंग व हॉस्टल से जुड़े लोग बच्चों में सुसाइड की प्रवृति व डिप्रेशन की पहचान कर सके इसके लिए फैकल्टी, गार्ड से लेकर कुक तक को गेट कीपर ट्रेनिंग करवाई गई है। शहर के हर हॉस्टल के पंखों में एंटी सुसाइड रॉड लगवाई गई है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के तहत 16 से कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं देना शामिल है। हर 3 महीने में पेरेंट्स टीचर मीटिंग व इनहाउस टेस्ट की मार्कशीट सार्वजनिक नहीं करना भी शामिल है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा? क्या कानून बनेगा जो आत्महत्याएं रोक पाए?
इस तरह से बदल रहा है ट्रेंड
कोटा में आत्महत्या करने वाले बच्चों में ज्यादातर अन्य प्रदेशों के होते हैं। आत्महत्या करने वालों में राजस्थान के बच्चों की संख्या बहुत कम हैं। राजस्थान में कोटा की तरह ही सीकर शहर भी तेजी से कोचिंग सिटी के रूप् में विकसित हो रहा हैं। यहां राजस्थान के बच्चे ज्यादा आते हैं। यहां भी सैंकड़ों हॉस्टल हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त नया ट्रेंड धीरे धीरे विकसित हो रहा हैं। एक ही शहर कस्बे या मिलने वाले बच्चे एक साथ यहां आते हैं तो वे हॉस्टल के बजाय छोटा फ्लेट लेकर रहना पसंद करते हैं। जहां चार बच्चे एक साथ रहते हैं। लेकिन अकेले नहीं रहते हैं। उनके साथ किसी एक के परिवार का कोई न कोई सदस्य होता हैं। यह सदस्य बारी बारी बदलते हैं। नवलगढ रोड़ पर रहने वाले सुमित के घर में दो फ्लेट हैं। सुमित कहते हैं कि हमारे यहां नौ बच्चे रहते हैं। उनके साथ दो पेरेंट रहते हैं। वे खुद पूरा ध्यान रखते हैं। कोटा में भी ऐसा हो रहा है लेकिन बहुत कम इसकी वजह है यहां दूर दराज से स्टूडेंट्स आ रहे हैं। ऐसे में पेरेंट के लिए साथ रहना संभव नहीं होता है।
कोटा कोचिंग स्टूडेंट सुसाइड केस साल 2025
पहला मामला- 8 जनवरी, हरियाणा के महेंद्रगढ़ निवासी छात्र नीरज
दूसरा मामला- 9 जनवरी, मध्य प्रदेश के गुना जिले का निवासी अभिषेक लोधा
तीसरा मामला- 15 जनवरी, ओड़िशा का अभिजीत गिरी
चौथा मामला – 18 जनवरी, राजस्थान के बूंदी जिले का निवासी मनन जैन
पांचवा मामला- 22 जनवरी, गुजरात की अहमदाबाद निवासी छात्रा अफ्शा शेख
छठा मामला- 22 जनवरी, असम के नागांव निवासी छात्र पराग
पढ़ने वाले बच्चे यह कदम नहीं उठाते
पढाई के दौरान तनाव वही बच्चे महसूस करते हैं जो तैयारी कर नहीं पाते या फिर उन्हें जबरदस्ती यहां भेज दिया गया है। जो पढ़ने वाले होते है वे तनाव ग्रसित नहीं होते हैं। ऐसे में एडमिशन से पहले कोचिंग सेंटर बच्चे का पोटेंशियल देखे उससे पूछे वह यह चाहता या नहीं। एडमिशन के बाद भी समय रहते परेंटस से उसके स्टेटस के बारे में बताए जिससे समय रहते सही निर्णय लें और बच्चे गलत कदम नहीं उठाए।
रविदत्त गौड़, आईजी पुलिस कोटा रेंज