विवेक श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार
- प्रशासनिक समन्वय की कमी से जनता और जनप्रतिनिधियों में नाराजगी बढ़ी
प्रदेश की सुचारू शासन व्यवस्था और विकास योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) और सरकार के बीच बेहतर तालमेल आवश्यक होता है। लेकिन हाल ही में राजस्थान में देखने को मिला कि प्रशासनिक समन्वय की कमी के कारण सरकार की योजनाएँ और निर्णय अधर में लटके हुए हैं। ट्रांसफर से लेकर निवेशकों को राहत देने तक के मामलों में यह असंतुलन साफ झलक रहा है।
ट्रांसफर बैन हटने के बाद भी लंबित स्थानांतरण
राजस्थान में ट्रांसफर बैन हटाए जाने और इसे पाँच दिन के लिए बढ़ाए जाने के बावजूद कई विभागों में तबादले लंबित पड़े हैं। इस स्थिति ने विधायकों और मंत्रियों की परेशानी बढ़ा दी है। खासकर राजस्व विभाग में राजस्व मंत्रालय और राजस्व बोर्ड के बीच की खींचतान के चलते अब तक एक भी ट्रांसफर नहीं हो पाया है।
विधायकों में तहसीलदारों और पटवारियों के तबादले न होने से भारी नाराजगी देखने को मिली है। इस मुद्दे को लेकर कई विधायक मंत्रियों से खुलकर असहमति जता चुके हैं। उनकी चिंता यह है कि यदि प्रशासनिक पदों पर इच्छित अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होती, तो विकास कार्यों को गति देना मुश्किल हो जाएगा। कांग्रेस शासन के अधिकारी से लेकर कई कर्मचारी एक साल गुजरने के बाद भी सत्तारूढ़ विधायकों की इच्छा के विरुद्ध वहाँ कार्यरत है।
मुख्य सचिव सुधांशु पंत की कार्यशैली पर उठते सवाल
मुख्य सचिव सुधांशु पंत पर प्रशासनिक समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी थी, लेकिन अब तक वे इसमें सफल नहीं हो पाए हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उम्मीदों के बावजूद कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक फैसले लटक गए हैं। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की सूची भी अब तक जारी नहीं हो पाई है, जिससे ब्यूरोक्रेसी में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
प्रदेश में मुख्य सचिव सुधांशु पंत की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने बाड़मेर और जैसलमेर का दौरा किया और जिला प्रशासन के साथ बैठक की, लेकिन सोलर कंपनियों के निवेशकों को प्रशासन से कोई राहत नहीं मिली। इस स्थिति से हताश होकर भारतीय सोलर संघ ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाई।
निवेशकों और विकास कार्यों पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव
प्रशासनिक समन्वय की कमी से केवल राजनीतिक प्रतिनिधि ही नहीं, बल्कि प्रदेश के विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। बाड़मेर और जैसलमेर में सोलर कंपनियों के निवेशकों को आवश्यक सरकारी सहायता नहीं मिलने से वे असमंजस में हैं। सरकार द्वारा विदेशी और निजी निवेश को आकर्षित करने के तमाम प्रयासों के बावजूद, यदि स्थानीय प्रशासन निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल नहीं बना पाता, तो यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने मुख्य सचिव की इस निष्क्रियता पर नाराजगी भी जाहिर की है। इससे साफ संकेत मिलता है कि यदि ब्यूरोक्रेसी को सही दिशा में नहीं लाया गया, तो यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है!
सीखने की जरूरत: समन्वय और पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता
सरकारी नीतियों और निर्णयों का प्रभावी क्रियान्वयन तभी संभव हो सकता है, जब ब्यूरोक्रेसी और सरकार के बीच मजबूत तालमेल हो। ट्रांसफर प्रक्रिया में पारदर्शिता हो, प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और निवेशकों को हरसंभव सहायता मिले, तभी प्रदेश की प्रगति संभव है।
मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश को विकास की नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने की संभावनाएँ हैं, लेकिन यदि प्रशासनिक ढांचे में समुचित सुधार नहीं किए गए, तो यह संभावनाएँ सीमित हो सकती हैं। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह ब्यूरोक्रेसी में समन्वय स्थापित करने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि सरकारी योजनाओं और फैसलों का लाभ जनता तक जल्द से जल्द पहुँच सके।