प्रयागराज में 144 साल बाद हुए महाकुम्भ की खुमारी उतरी। फाल्गुनी बयार भी बह निकली। फिर भी सियासय का बुखार नहीं उतरा। सियासत महाकुम्भ में भीड़ नियंत्रण पर हुई। बीच वालों के हितैषी बजट पर बिहार की छाया भी सियासत से नहीं बच सकी। इधर दिल्ली में ‘आपदा’ मिट गई। कांग्रेस शून्य पर सिमट गई। ट्रम्प के टैरिफ तूफान में सैंसेक्स ने गोते लगा लिए। सोने चांदी की चमक ने चुंधिया दिया। वजीर-ए-अजाम सात समंदर पार जा आए। इधर, हमारी कलम और स्याही कागज की प्यास तक नहीं बुझा सकी। नदिया के किनारे बैठकर भी प्यासे के प्यासे रहे।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये बेतुकी बातें क्यों? जो बातें की जा रही है, उनका न कोई तुक है न कोई तीर। कहां प्रयागराज और कहां दिल्ली….कौनसी आपदा, कौनसी आफत…और फिर ये कागज, कलम और स्याही के साथ नदिया का किनारा….? क्या किसी ने भांग पिला दी है। बहकी-बहकी बातें हो रही है। आप भी सही हैं और हम भी। दरअसल, खुमार महाकुम्भ का उतरा है और हमारे पर बुखार होली का चढ़ गया है। किसी को मलेरिया होता है, हमें ‘होलेरिया’ हो गया है। आम भाषा में कहें तो हम अभी से हुरिया गए हैं। भई, होली तो है ही मस्ती का त्योहार। तभी तो इसे मदनोत्सव भी कहा गया है। हमारी संस्कृति भी है-वसुधैव कुटुम्बकम यानी हिल-मिल कर सभी को साथ लेकर रहना और त्योहार इस संस्कृति को और ज्यादा समृद्ध बना देते हैं। इस बार तो होली की मस्ती में डूबने के कई कारण बनते हैं। हम राजस्थान के लोग हैं। जहां के कई इलाकों में पानी आज भी मृग मरिचिका ही है। बाड़मेर-जैसलमेर जैसे इलाके तो बिना पानी के भी ‘काले पानी की सजा’ की संज्ञा तक झेलते रहे हैं। ऐसे में यदि हमारी सरकार भजन करते करते मोहन को रिझा दे और पड़ोसी राज्य से ईआरसीपी के जरिए हमारे पूर्वी जिलों तक पानी आ जाए तो क्या होली की मस्ती में भीगने का मन नहीं करेगा। करेगा ही निश्चित तौर पर। फिर निर्मला अम्मा ने हम मध्यम वर्ग को लोगों पर भरी सर्दी में राहतों की बौछार जो कर दी है तो क्यों ने झूमें होली की मस्ती में।
लिहाजा राजस्थान टुडे की पूरी टीम ऐसी हुरियाई है कि उसे भांग के नशे की मस्ती में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार भी आपदा के साथ पापदा की विदाई दिख रही है। कोई कहे कि कांग्रेस ले डूबी तो कोई कहे कि शराब ही आप के लिए आपदा ले आई। कारण कोई भी हो, लेकिन कांग्रेस अपनी जगह कायम रही। भाजपा को तो 27 साल का वनवास पूरा हो गया, लेकिन कांग्रेस ने न कुछ खोया और न ही कुछ पाया। शून्य थे, शून्य पर रहे और रेकार्ड चार बार शून्य हासिल कर कांग्रेस शून्य की सरताज हो गई। इस बार के अंक में ऐसी ही बातों के साथ हैं मौज-मस्ती की बातें, छींटाकशी के कौड़े और मस्ती में डूबा हास्य कवि सम्मेलन भी। साथ ही हम कोशिश कर रहे हैं आपको होली तेरे रंग अनेक की तर्ज पर मारवाड़ से मेवाड़, हाड़ौती से बीकाणा और गोड़वाड़ से शेखावाटी की होली से। कई बातें आपको गुदगुदाएगी। आढ़ी-तिरछी रेखाओं से निखर रहे रंग-बदरंग चेहरे हंसाएंगे। कई नामी व्यंग्यकारों की रचनाएं चुभन पैदा करेंगी।
कुल मिलाकर, यह अंक होली की मस्ती में तैयार किया गया है। एआई के दौर में आधुनिकता की दौड़ से प्रतिस्पर्धा कर रही पत्रकारिता का यह अलग स्वरूप आपको लग रहा है। आज की पीढ़ी के लिए ये अजूबा हो सकता है, लेकिन हमने इस मौज-मस्ती का अहसास करवाने वाले इस अंक के साथ उस परम्परा को भी जिंदा करने की कोशिश की है, जिसमें कभी साइक्लोस्टाइल से तैयार की गई बुकलैट या एक दो पन्नो पर हंसी मजाक झलकती थी। होली के विशेषांक ऐसी ही सामग्री से भरे होते थे। इन अंकों में बंटी उपाधियां हंसी-मजाक के रूप में किसी का भी व्यक्तित्व-कृतित्व सामने ला देती थी। हमने भी कोशिश की है, लेकिन यकीन मानिए, इसके पीछे किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का मकसद नहीं है। यदि कोई बात आपको बुरी भी लगी हो तो अग्रिम क्षमा प्रार्थना के साथ इसे अबीर-गुलाल का टीका ही समझिएगा।
आप सभी को होली की अग्रिम शुभकामनाएं।