हे! पर्ची से मिली कुर्सी के महानायक
आप को ब्रज के रसिया हैं, ऐसी में होली की पहली रंगीन बधाई आपको। आपने तो बरसाने से लेकर कुंजगलीन तक की होरी देखी है, लेकिन अब आप भरतपुर ही नहीं, पूरे सूबे के मुखियां हैं। आपके नाम की पर्ची खुलने से पहले हालांकि आप भले ही प्रदेश महामंत्री थे और पर्ची वाली बैठक आपने ही बुलाई थी, लेकिन बहुत कम लोग आपको जानते थे और जो जानते थे, उन्हें भी यह गुमान नहीं था कि आप ‘’ट्रम्प कार्ड’ बनकर किसी दिवास्वप्न की भांति सत्ता रानी की बांहों में जा समाओगे।
खैर, हम भी कहां भंग की पिनक में इतनी गम्भीर बातों में आपको उलझाए रहे हैं। बात तो होली-ठिठोळी की होनी है। आप से हम पहले ही वादा ले लिए हैं कि हम शब्दों की गुलाल का गोटा जो दे मारेंगे तो आप कुछ न कहेंगे, न बुरा मानकर उठ चलेंगे। हम तो दादी के मुंह से बचपन से ही सुनते रहे हैं कि वृन्दावन में रहना है तो राधे-राधे कहना है। अब आप भी जैपर में हैं तो आपको यहां के प्रसिद्ध गुलाल गोटे तो झेलने ही पड़ेंगे। कभी आपका अपना गोटा मारेगा तो कभी विरोधी गुलाल गोटा चलाएंगे।
ये गुलाल गोटे चलें भी क्यों नहीं….सत्ता में आते ही आपने एक साल में इतने चमत्कारी काम कर दिए कि जनता अब तक समझ नहीं पाई कि यह सरकार चल रही है या किसी कुशल जादूगर का शो हो रहा है।
हे, पर्ची से महानायक बनकर सत्ता की नैया खे रहे महामूर्ति….आपकी क्या किस्मत है….जिन्होंने सीएम की कुर्सी को पांच-पांच साल बाद हथियाने को अपनी नियती समझ लिया था, उन्हें आपने ऐसी धूल चटाई कि कोई आस-पास ही नहीं दिखता। न सदन में, न सड़क पर।
वसुंधरा राजे आपकी मुख्यमंत्री पद की नामांकितकर्ता बनीं, और नामांकन के बाद वह खुद ही राजनीतिक गुफा में ध्यानमग्न हो गईं। आपने किरोड़ीलाल मीणा को चुनावी दंगल में उतारा, मंत्री बनाया और फिर बिना कुछ कहे चुपचाप उन्हें घर बिठा दिया। जनता यह समझ ही नहीं पाई कि यह “मंत्रीत्व” था या कोई ट्रायल वर्जन जो 30 दिन में एक्सपायर हो गया? लगता है, आपका पूरा प्लान “यूज एंड थ्रो” की नीति पर आधारित था।
दूसरी ओर, जादूगर के नाम से मशहूर अशोक गहलोत का जादू भी आप पर काम नहीं कर पाया! लगता है, आपने राजनीति की कोई ऐसी मंत्र-विद्या सीख ली है कि गहलोत का जादू और वसुंधरा की सक्रियता, दोनों हवा में घुल गए! राजस्थान की जनता भी चकित है कि यह राजनीति का खेल चल रहा है या कोई तांत्रिक अनुष्ठान, जिसमें विरोधी स्वतः निष्क्रिय हो जाते हैं।
अरे…अरे, भृकुटियां मत तानिए….राजनीति की बात लगता है आपको ज्यादा चुभ रही है। छोड़िए, नहीं करेंगे आपकी दुखती रग पर कोई चोट। मौका मिला है तो कुछ बात अब आपकी सरकार के कामकाज पर की जा सकती कि नहीं। हां, आपकी यही मुस्कराहट ही तो दुश्मनों के दिल भी पिघला देती है। राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात यहां करके हम आपको किसी दुविधा में नहीं डालेंगे, लेकिन ये तो मान ही लीजिए कि जब भी मुखिया जी के रूप में कोई भी आपसे इस मुद्दे पर बात करता है तो आप आप ऐसे चुप्पी धार लेते हैं, जैसे रंग खेलने के दौरान कोई बचने के लिए दौड़ लगाता है।
खैर, सरकार है तो काम तो करती ही है…साल में पूरे 365 दिन। काम भी ऐसे ही कि लोग अचम्भे में डूब जाते हैं। आपने तो कमाल ही कर दिया। पूरी सरकार को गंगा में नहलवा दिया। प्रयागराज कुम्भ के बहाने। मंत्रियों-विधायकों के साथ उनकी ‘धर्मपत्नियों’ को भी आपने संगम में डुबकी लगवा दी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद ऐसा अद्भुत कारनामा करने वाले आप शायद पहले सीएम हैं। योगी ने तो अपनी कैबिनेट को ही डुबकी लगवाई, लेकिन आपने तो बहती गंगा में…..। आपके अकेले इस काम ने आप पर लगने वाला ब्यूरोक्रेसी के भरोसे सरकार चलाने का ‘पाप’ भी धो डाला। संगम की भूमि पर आपने देवी-देवताओं को राजी कर दिया तो दिल्ली दरबार भी आपकी इस काबिलियत से फूले नहीं समा रहा। यानी कुछ दिन के लिए तो आपको दिल्ली दिशा की ओर से भी टेंशन फ्री हो जाना चाहिए।
वैसे कहते भी हैं कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं….सरकार बदली है तो पिछली सरकार को दोष देना भी अब राजधर्म ही तो है। आपने तो वाकई कमाल कर दिया। भले ही साल भर लगा, लेकिन आपने राजस्थान का नक्शा ही बदल दिया। पिछले गहलोत सरकार में बने कई नए जिलों और संभागों का आपकी कलम ने नामोनिशां ही नहीं छोड़ा और देखते ही देखते नए प्रशासनिक व भौगोलिक नक्शे सामने आ गए। हम अभी तक नहीं समझ पाए हैं कि नया राजस्थान बनेगा या सब कुछ पुराने सिस्टम में ही उलझा रहेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आप भी अटल जी के ‘शाइनिंग इंडिया’ की तरह राजस्थान को ‘राइजिंग’ देखना चाहते हैं। वाकई राइजिंग राजस्थान आपका ऐसा मास्टर स्ट्रोक रहा कि आप खुद और आपके मंत्री देशाटन कर आए। कोई लंदन-दुबई, कोई सिंगापुर-जापान। इसमें गलत भी क्या है। घर में कोई आयोजन हो तो प्रमुख लोगों को फिर-फिर कर न्यौतना तो पड़ता ही। आपने भी यही तो किया है। फिर राइजिंग राजस्थान समिट के दौरान आपकी, आपके मंत्रियों और अफसरों की मेहनत वाकई देखने लायक थी। देशी-विदेशी निवेशकों को जो सपने दिखाए गए, वे किसी परिकथा से कम थोड़े ही थे। जिस प्रदेश के युवा नौकरी और व्यापार के लिए दर-दर भटक रहे हैं, वहां विदेश से पूंजी लाने की बड़ी-बड़ी बातें करना एक नया जादू ही है। आंकड़ों की बात तो अब करें भी क्या, इतने हजार करोड़ के एमओयू हो गए कि जलने वाले कहते हैं कि ये देश की जीडीपी से भी कई गुना ज्यादा हैं।
जलने वाले तो जलेंगे ही। उन्हें कौन रोक सकता है। आप तो किए जाओ, किए जाओ, पर्ची के गुण गाये जाओ। किसी की परवाह करने की जरूरत नहीं है। न आपको पेपर लीक की परवाह करनी है और न ही पुरानी परीक्षाओं को रद्द करने पर मगज खपाना है। न डॉक्टर-इंजीनियर बनाने के लिए कोटा भेजे जा रहे बच्चों की आत्महत्याओं पर ध्यान देना है। अच्छा किया आपकी वित्त मंत्री ने जो बजट में युवाओं के लिए परामर्श केंद्र का झुनझुना जो पकड़ा दिया।
‘जो होगा, देखा जाएगा’ की तर्ज पर चलने में क्या हर्ज है। हमारी जैसी जनता का क्या है, वह तो ‘नई बात नौ दिन, खींची-तानी तेरह दिन’ से कभी ऊपर उठी ही नहीं। कोई ज्यादा ही शोरशराबा हो जाए तो अपनी आईटी सेल है ही, संगम की किसी मोनालिशा के बहाने कभी भी जनता का ध्यान डाइवर्ट करने में गोल्ड मेडलिस्ट है। आपने तो वैसे भी इन्फ्लेंसुअर्स के लिए स्कीम का चुग्गा पहले ही डाल दिया है।
राजस्थान वालों के लिए आपकी ‘डबल इंजन’ की सरकार शर्माइए नहीं, हकीकत में एक अजूबा है। इस डबल इंजन सरकार में दो उप-मुख्यमंत्रियों समेत तीन पहिए हैं। अब हर कोई कन्फ्यूज है कि कौन-सा पहिया गाड़ी को आगे बढ़ा रहा है और कौन ब्रेक लगा रहा है। राजस्थान की राजनीति में पहली बार आपने डबल इंजन में एक अतिरिक्त पहिया जोड़ने का श्रेय हासिल किया है और इसे बेहतर ढंग से मैनेज भी किया है—”भजन के संग प्रेम दीया जलता रहे, सरकार चलती रहे!”
मजे से सरकार चलाइए. कौन रोकने वाला है। खैर अभी तो साल-सवा साल ही हुआ है। आगे जहां बाकी है। आपको हमारी अशेष शुभकामनाएं। चिंता मत कीजिए, अगले चुनाव तक जमकर जनता के साथ घोषणाओं की होली खेलिए। मगर, उसे कभी असली चेहरा भी दिखाइएगा। होली का मौका है, शब्दों के इस अबीर-गुलाल टीके अन्यथा मत लीजिएगा। किसी को ठेस पहुंचाना हमारा मंतव्य नहीं है, फिर भी कुछ बुरा लगे तो अग्रिम क्षमा-याचना। आपको व आपकी सरकार को हो-ली मुबारक।
शुभकामनाओं सहित-
भंग की तरंग में एक व्यथित, मगर हंसता हुआ नागरिक