नेताओं की होली के रंग

अमित शर्मा –

होली पर कुछ लिखने की बात आती है तो नज़ीर अकबराबादी की ‘बहारें’ ढप से ज्यादा कानों में बजने लगती हैं। जो न समझे उनके लिए दो पंक्तियां।

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की

नजीर की होली और पढ़नी हो तो गूगल कर लेना, हम तो यहां बहुत जरूरी मसला आपके सामने रखने आए हैं। हमारे पास देश की एक बड़ी पीआर ऐजेंसी की डील आई है। कह रहे हैं, हमारे नेताजी के लिए ऐसा कुछ लिख दो, कि बस उन्हीं की होली के रंग नजर आएं, बाकि सब फीके। हमने समझाया भाई यह स्वयंभू तुर्रमखां क्यों बनाना नेता को, इसमें घमंड दिखेगा। पीआर वाला मौढ़ा बोला- वही तो दिखाना है। बिना घमंड और फॉरच्यूनर के कैसा नेता। हमें मामला कुछ जमा नहीं, पर पीआर वाले ने हमारे हाथ में एक हरी गड्डी रख दी। हमने की-बोर्ड पर उंगलियां तोड़नी शुरू की। भांग मिला एक गिलास ठंडाई का खुद गटकाया.. और एक पीआर एजेंसी के परम नालयक को थमाया। लिख लिख के देते गए.. वो नेताओं के सोशल मीडिया पर हाथों हाथ चेपते गए।
लो, बामुलायजा होशियार.. नेताओं के होली पोस्ट पढ़िए.. जो लिखें हैं उन्होंने- बाकलम खुद वाया पीआर बाय पास हम।

पर्ची के रंग, कागज-कलम दंग
(सीएम भजनलाल का कैरिकेचर)

मैं पर्ची का लाल
देखो मेरे रंग
मेरे नाम के ऐलान पर
हो गए सारे तुर्रम दंग
भाषण दूं ऐसा
फिसल जाए जुबान
राजस्थान की राइजिंग से
कस लिए तरकष, तीर, कमान
सूची आए दिल्ली से
सचिवाल मे देखें सीधे पंत
अपने तो गमछा भला
‘भजन’ करें हम बन संत
बोलो सारा रा रा….

मैं नेता प्रतिपक्ष, मैं ही हूं
(टीका राम जूली)

कहने को मैं नेता प्रतिपक्ष
नाम है मेरा जूली
पार्टी में हावी मुझ पर
नेता दबंग हो या मामूली
जादूगर आते नहीं
चाहे क्यों न हो बजट
पार्टी अध्यक्ष अपनाते हैं
अपनी ही अलग रट
होली पर दुआ मेरी
ऐसा फैले रंग
बाकि देखेंगे बाद में
बस ‘दिल्ली’ रहे प्रसन्न

जादूगर की छड़ी कौन ले गया
(अशोक गहलोत)

तीन बार का राजा मैं
गांधी की है छाप
छड़ी को ढप बना दूं
ऐसी मेरी थाप
निकम्मों के कारण
खोया मैंने राज
गैरों की कहें क्या
अपने भी न आए बाज
चिरंजीवी, मुफ्त बिजली
कोई न आई काम
मैं तो सेक्यूलर ठहरा
कैसे कहूं, ‘हे राम’
बोलो सारा रा रा

जुबां पर ताला
(वसुंधरा राजे)

हाथों से खोली पर्ची
दिल पर रख पत्थर भारी
जुबां पर लगा है ताला
पर चेहरा बता दे हालत सारी
बेटे को मिल जाए
अब तो कोई मुकाम
ख्वाहिश यही बची बस
बाकि बस आराम
पांच साल का बल प्रदर्शन
आया नहीं कुछ काम
मार्गदर्शक हैं अब अपन
लो शुभकामनाएं, सुबह हो या शाम
बोलो सारा रा रा…

मैं तो वही खिलौना लूंगा
सचिन पायलट

वादा टूटा सपना टूटा
था जो अपना, सारा छूटा
सिंधिया की राह पर
बढ़ाये थे कदम
टाइमिंग हुई मिस
जादूगर ने फीके कर दिए रंग
अब चेहरे पर मुस्कान से
जीतूं बाकि जंग
चार साल बाद की होली
क्या करेगी हमको मलंग
तब भी हो जाए न कहीं
इफ एंड बट
मैं तो वही खिलौना लूंगा
अपनी तो बस यही है रट

बोलो … सारा रा रा…

होली का हुड़दंग
(हनुमान बेनीवाल)

विधान हो या संसद
अपने वही हैं रंग
जैसे यूनिवर्सिटी में
मचाते थे हुड़दंग
दिव्या, ज्योति की जंग में
चौधरी थक गए इतना
उप चुनावों में भैया
खेल कर गया अपना
नागौर में सिमटी बोतल
दावे बन गए डींगे
चलो अब दिल्ली चलें
वहीं होंगी पींगे
बोलो सारा रा रा


सब स्क्रिप्टेड है हुकुम
(रवीन्द्र सिंह भाटी)

मैं चलूं उससे पहले
पीआर टीम आगे चले
बोलूं कुछ उससे पहले
सोशल मीडिया पर डले
अपनी ठसक अपनी शान
200 के बीच में अपन ‘किंग खान’
होली भी खेलूं
तो चार कैमरे हों आगे पीछे
हेलीकॉप्टर से गुलाल
ड्रोन से पिचकारी खींचे
यूथ का नेता हूं..
क्यूं रहूं होंठ भींचे
बोलो सारा रा रा….

भांग के नशे में हम ने लिख तो दिया। पीआर वाले ने नेताओं के सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिया। होली का रंग अब इन नेताओं की आंखों में आ गया है। किसी की लाल हैं, किसी भगवा, किसी की हरी। नेता हैं, होली के रंग हो या गुस्से के, पार्टी की विचारधारा के मुताबिक चुनते हैं। नेताओं के छुटभैयों के प्यार भरे कॉल हमें आने लगे हैं। पीआर वाले ने पेटी समेट के दूसरे राज्य में दुकान जमा ली है। हां.. इस मैगजीन के सम्पादक जी वहीं हैं। अपने टूटे फूटे ऑफिस में। होली पर गुलाल की थाली हाथ में लिए। गिफ्ट में आई सोन पपड़ी का डब्बा लिए। जा आइए। कह दीजिए उन्हें.. हैप्पी होली.. बोलो सारा रा रा….

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यह मुख़्तसर सा बायोडाटा दुनिया के मानचित्र पर भारतीय फिल्मों को स्थापित करने वाले उस फ़िल्मकार का है, जिसे करीब से जानने वाले ‘माणिक दा’ के नाम से और दुनिया सत्यजित रे (राय) के नाम से पहचानती है।

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शब्द भाव का खोल है, कविता निःशब्दता की यात्रा

विचार किसी के प्रति चिंता, प्रेम, आकर्षण, लगाव, दुराव, नफरत का संबंध रखता है। वह चाहे कोई मनुष्य हो, समाज हो,  देश हो, जाति- धर्म हो या भाषा। किंतु भाव किसी से संबंधित नहीं होता।

बाबा रे बाबा

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स्ट्रेटेजिक टाइम आउट! और गेम चेंज

ड्रीम-11 की तरह माय-11 सर्कल, मायटीम-11, बल्लेबाजी जैसी कई ऐप्स ने स्पोर्ट्स फैंटेसी के मार्केट में कदम रख दिया। सभी ऐप्स तेजी से ग्रो भी कर रहे हैं। ये करोड़ों तक जीतने का लुभावना ऑफर देकर लोगों को इसमें पैसे लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। और इनका प्रमोशन करते हैं आईपीएल के स्टार क्रिकेटर्स।

किंकर्तव्यविमूढ़ कांग्रेस

कांग्रेस के लिए मुफीद रहे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी उसके हाथ से निकल गए और हार का असर यह हुआ कि इन प्रदेशों में भी कांग्रेस अब तक 'कोमा' से निकल नहीं पा रही।

वह विश्व विजय

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वर्ष 1914 में, तैस्सितोरी बीकानेर पहुंचे। एक विदेशी, जो उस भाषा के प्रेम में खिंचा आया था, जिसे तब भारत में भी उचित मान्यता नहीं मिली थी। बीकानेर की हवाओं में जैसे कोई पुरानी पहचान थी, यहां की धूल में शायद कोई पुराना रिश्ता।

बात- बेलगाम (व्यंग)

संयम लोढ़ा की राजनीति किसी कसीदाकारी की तरह महीन नहीं, बल्कि एक धारदार तलवार की तरह है— सीधी, पैनी और कभी-कभी बेलगाम। उनकी राजनीति में विचारधारा से ज्यादा आक्रामकता और बयानबाजी का तड़का देखने को मिलता है।

बोल हरि बोल

अपन भी आज बिना चिंतन के बैठे हैं। अपनी मर्जी से नहीं, जब लिखने कहा गया तो ऐसे ही मूर्खता करने बैठ गए! कहा गया कि आजकल जो चल रहा है, उस पर एक नजर मारिए और अपनी तीरे नजर से लिख डालिए। जिसको समझ आया वो व्यंग्य मान लेगा, वरना मूर्खता में तो आपका फोटू सुरिंदर शर्मा से मीलों आगे ही है।

कोटा, एक जिद्दी शहर

अनुभव से सीखने की है और विरासत को और आगे ले जाने की है। चम्बल के पानी की तासीर कहें या यहां के लोगों की मेहनत की पराकाष्ठा, इतिहास में देखें तो कोटा ने जब-जब जिद पाली है कुछ करके दिखाया है।

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ताजा टैरिफ प्रकरण में ये जानना जरूरी है कि भारत जहां अमेरिकी वस्तुओं पर 9.5 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, वहीं भारतीय आयात पर अमेरिकी शुल्क केवल 3 प्रतिशत ही है। ट्रम्प रैसिप्रोकल नीति (जैसे को तैसा) के जरिए सभी देशों से इसी असंतुलन को खत्म करना चाहते हैं।