दिनेश जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
होली का मौसम आते ही चारों ओर रंग, गुलाल और पानी की बाल्टियाँ तैयार हो जाती हैं। पर इस बार इंडिया गठबंधन की होली तो हो ली। राजनीति के अखाड़े में यूं भी रंगों की जबरदस्त बौछार बारहमासी होती रहती है। फिर ये गठबंधन तो बड़ा वाला अखाड़ा था/है। तालमेल के अभाव और घालमेल की इफरात ने दिवाली के बाद ही “इंडिया” गठबंधन का रंग उड़ा दिया। कहें तो इसे बदरंग कर डाला।
गली-गली में चर्चा है कि इस बार “इंडिया” गठबंधन की होली कैसी रहेगी। विपक्षी दलों ने मिलकर जो रंगोली सजाई थी, वह अब हवा में उड़ती नजर आ रही है। हर नेता अपने गुलाल की पोटली लेकर मैदान में उतरा था, लेकिन जैसे ही अबीर-गुलाल उड़ना शुरू हुआ, गठबंधन के नेता खुद को बचाने में लग गए।
पहली पिचकारी: प्रधानमंत्री पद की आस
गठबंधन के अस्तित्व में आने के साथ ही उसमें शामिल बड़े-बड़े महारथी अपने-अपने गालों पर पीएम पद का अबीर पोतने में लगे थे। राहुल बाबा ने सोचा, पक्का उन्हें ही “गुलाबी गाल” वाला पद मिलने वाला है, लेकिन तृणमूल की दीदी ने उन्हें अपनी रंग-बिरंगी पिचकारी से ऐसा धो डाला कि बेचारे आईने में ख़ुद को पहचानने से ही डरने लगे। अरविंद केजरीवाल भी गुलाबी पद की टकटकी में थे, मगर हाय री किस्मत भ्रष्टाचार के जिस काले रंग की खिलाफत से ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने, उसी रंग ने उन्हें जमीन दिखा दी। होली से करीब सवा महीने पहले ही उनकी होली भी हो ली। यूं भी उनकी खाप धवल टोपी से बंगाल और बिहार वाले रंग मेल नहीं खा रहे थे।
दूसरी पिचकारी: सीटों का झगड़ा
होली से पहले इंडिया गठबंधन की असली मस्ती तो तब आई जब सीटों के बंटवारे पर गुलाल के बजाय कीचड़ फेंका जाने लगा। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और कांग्रेस की पिचकारियाँ उल्टी चलने लगीं। बिहार में लालू यादव ने अपनी पिचकारी जैसे ही टेढ़ी की कांग्रेस के नेता रंगने से पहले ही भाग खड़े हुए। बंगाल में दीदी ने अपनी अलग ही रंगोली बना ली और बाकी सबको पानी के गुब्बारे थमाकर किनारे बैठा दिया। अब इतने टूट भड़ंगे में गठबंधन की होली का रंग फीका नजर आने लगा है।
तीसरी पिचकारी: कौन बनेगा ‘रंगमंच का राजा’
गठबंधन की होली जाननी है तो हमें एक साल पीछे जाना होगा। जरा याद कीजिए, जब होली के रंग चरम पर पहुंचे, तब असली सवाल उठा—”गठबंधन का मुखिया कौन होगा?” हर कोई एक-दूसरे पर रंग डालकर खुद को उजला दिखाने में लगा था। राहुल बाबा बोले, “मेरे पास पार्टी है!”
दीदी तमतमा उठीं—”मेरे पास बंगाल है!”
अखिलेश ने मुस्कुराकर कहा था—”मेरे पास यूपी का साइकिल है!”
केजरीवाल ने टोपी सीधी करते हुए कहा—”मेरे पास दिल्ली की झाड़ू है!”
शरद पवार ने ठंडी सांस भरते हुए कहा—”मेरे पास अनुभव है!”
पर ममता दीदी की पिचकारी सबसे तेज निकली और उन्होंने गठबंधन के चेहरे को अपने ही रंग से सराबोर कर दिया। गठबंधन को जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाने वाले मिस्टर पलटूराम को सबसे पहले बाहर का रास्ता दिखाया गया। अब आप ही बताइए, जो पकाएगा वो कुछ खाएगा नहीं क्या? फिर, पलटूराम तो यूं भी विख्यात… सुबह यहां, शाम वहां, कल पता नहीं कहां?
चौथी पिचकारी: कौन किसके साथ खेलेगा?
इधर, जनता सोच रही है कि इस बार होली में कौन किसका दोस्त बनेगा। गठबंधन के कुछ रंग तो ऐसे थे, जो आपस में घुल ही नहीं पा रहे थे।
बिहार में नीतीश कुमार ने पहले लाल रंग से दोस्ती की, फिर भगवा रंग की ओर दौड़ लगा दी। उधर महाराष्ट्र में शरद पवार के भतीजे ने अलग ही गुलाल उड़ाना शुरू कर दिया। विपक्षी नेताओं ने जो भी रंग तैयार किया था, वह खुद के ही कपड़ों पर गिरने लगा।
पांचवीं पिचकारी: ‘इंडिया’ का रंग उड़ गया!
गठबंधन की दूसरी होली के दिन ज्यों ज्यों नजदीक आ रहे, “इंडिया” गठबंधन की पूरी रंगोली बिखरने लगी है।
पहले बिहार में नीतीश ने गठबंधन के रंग से हाथ धो लिया, फिर यूपी में सीटों की लड़ाई ने स्थिति और रंगीन बना दी। पश्चिम बंगाल की दीदी अभी भी एकला चालो रे… की तर्ज पर फागुन के गीत गा रही है। दिल्ली में केजरीवाल की झाड़ू ने खुद उनकी ही सफाई कर डाली है।
आखिरकार, दूसरी होली से पहले ही विपक्षी गठबंधन की अंगिया गीली होकर खुलने वाली है। कोई एक-दूसरे को पानी डालकर भीगने से बचाने में लगा है, तो कोई खुद को इस गंदे खेल से दूर बताने में जुटा है।
इस बार होली से पहले ही “इंडिया” गठबंधन जिस तेजी से बदरंग हुआ है, उसे देखकर जनता भी चकित है। जनता सोच रही है कि ये नेता राजनीति के गुलाल से खेल रहे थे या सिर्फ अपने ही चेहरों को चमकाने की होड़ में लगे थे?
होली का असली मजा तो तब आता है जब सब मिलकर रंग खेलें, लेकिन जब रंग ही अलग-अलग दिशाओं में उड़ने लगे, तो न त्योहार का मजा आता है और न ही राजनीति की रणनीति सफल होती है।
इस बार की होली से पहले ही ‘इंडिया’ गठबंधन के कई रंग बिखर चुके हैं। देखना यह है कि अब कितने रंग बचते हैं और कौन से उड़ जाते हैं। राजनीति में होली और हो ली का बहुत बारीक फ़र्क है, जिसे “इंडिया” गठबंधन साबित करता नजर आ रहा है।