अतुल कनक
पुल हैं,तो क्या नदी में
नहा भी नहीं सकते?
नदी में कूदने को आतुर
एक पुल दिखा तो
हमने उसे टोका
अपने सवाल का
ज़वाब लेने के
मक़सद से थोड़ा रोका
चिल्लाकर पूछा
पुल भाई, बताओ तो सही
यह क्या मसला है भला?
कि नदी में उफान
देखते ही हर पुल
डुबकी लगाने चला
ये नदी के साथ
गठबंधन की तैयारी है
या कोई विवशता है?
कोई पुल, नेता की तरह
जनता की उम्मीदों को ऐसे
धोखा कैसे दे सकता है?
पुल बोला- भले मानुस
लगातार बोझ उठाकर कभी
हम भी तो थकते हैं
पुल हैं तो क्या
नदी में कूदकर कभी
नहा भी नहीं सकते हैं?
जहां तक गिरने या
दरकने का सवाल है
तो वो मामूली बात है
क्योंकि जब पहाड़
टूट कर गिर रहे हों
तो पुलों की क्या औकात है?
बीमा पॉलिसियां कहां रखी
हैं -बस, इतना बता देना
हम ने पत्नी से कहा
कि काम के दबाव में एक
रोबोट ने कर ली आत्महत्या
क्यों यह बेकार का दबाव
बनता जा रहा है हमारे
जीवन की बड़ी समस्या
इसलिए बात बात पर
धमकी मत दिया करो
अपने मायके जाने की
और करवाचौथ पर
कसम खा लेना इस बार
मेरी जान नहीं खाने की
किसी दिन रोबोट की तरह
मैं भी गुड़क गया तो
सारी उम्र पछताओगी
भुक्खड़ सहेलियों के
घर आने पर आखिर
कचौरियां किससे मंगाओगी?
पत्नी बोली, छोड़ो चिंता
सपनों के शहर में क्यों
टेंशन को अपना पता देना
तुम्हारी बीमा पॉलिसियां
कहां रखी हैं
गुड़कने के पहले बस
इतना बता देना………..
दिमाग खाने से कोई मरता
तो सोचो, मेरा क्या होता?
हमने उस दिन
पत्नी को जब
ये समाचार दिए
कि दिमाग खाने वाले
अमीबा के संक्रमण ने
कुछ लोग मार दिए
तो पत्नी
इतराते हुए बोली,
सच-सच बताना
संक्रमण भारी था
या मौत ही आने का
ढूंढ रही थी बहाना
कभी- कभी जीवन में
संवेदनशील होना भी
बड़ी समस्या होता है
आप तो कवि हो
अच्छी तरह जानते हो कि
दिमाग खाना क्या होता है
जब भी नई कविता
लिखते हो मुझे
जबर्दस्ती सुनाते हो
बुरा तो लगेगा आपको
लेकिन क्या मेरा
कम दिमाग खाते हो?
आप तो कविता सुनाकर
आनंद के दरिया में
लगाने लगते हो गोता
सोचो, दिमाग खाने से ही
कोई मर जाता तो
भला, मेरा क्या होता?
समझ
बाधाओं को जीवन के सुख के अनुकूल समझ लो
आंख दिखाए जो भी सपना, उसे फिजूल समझ लो
भ्रष्टाचार हंसे तो देखो- कितनी खुशहाली है
पानी अग़र भरे सड़कों पर, स्वीमिंग पूल समझ लो।।
स्मार्ट सिटी
अमन-चैन से रहने की हर हसरत लुटी- पिटी है
मानो, दुनिया तोड़- फोड़ की ताक़त देख मिटी है
क़दम- क़दम पर मरने की अद्भुत सुविधा हासिल है
खुश हो जाओ लोगों- यह सचमुच स्मार्ट सिटी है
तरक्की
कुछ लोगों ने कैद किया था सुख को सख्त सलाखों में
चुभती थी – रंगत डेमोक्रेसी की उनकी आंखों में
फिर विकास को गति मिली तो इतना ऊपर पहुंच गया
रिश्वत तक की रकम यहां पर जा पहुंची है लाखों में
जिज्ञासा
ऊंचे- ऊंचे फौवारे हैं, सारी तड़क- भड़क है
इस मौसम में भी विकास का तेवर बहुत कड़क है
बारिश सोच रही है खुद ही हालत देख शहर की
सड़कों में है गड्ढे या गड्ढों में स्वयं सड़क