किवाड़

किवाड़

लक्ष्मीदत्त तरुण, रावतभाटा

हर किसी को, हर एक बात पता थोड़ी होती है
फिर भी हर इंसान ख़ुद को ज्ञानी मान खुश होता है
आपको पता है?
कि जो किवाड़ की जोड़ी होती है
उसका एक पल्ला स्त्री और दूसरा पल्ला पुरुष होता है
घर की चौखट से जुड़े जड़े रहते हैं
हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं
ख़ुद को ये घर का सदस्य मानते हैं
भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं
एक रात उनके बीच था संवाद
चोरों को लाख लाख धन्यवाद
वर्ना घर के लोग हमारी एक भी चलने नहीं देते
हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं
हमें ये मिलने भी नहीं देते
घर की चौखट से साथ हम जुड़े हैं,
अगर जुड़े जड़े नहीं होते
तो किसी दिन तेज आंधी -तूफान आता,
तो तुम कहीं पड़ी होतीं
हम कहीं पड़े होते
चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है
वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है
इस घर में यह जो झरोखे
और खिड़कियां हैं
यह सब हमारे लड़के और लड़कियां हैं
तब ही तो
इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं
पूरे घर में जीवन रचा बसा रहे
इसलिये ये आती जाती हवा को,
खेल ही खेल में
घर की तरफ मोड़ देते हैं
हम इस घर की सच्चाई छिपाते हैं
हर बार ही शोभा बढ़ाते हैं
हैं तो कुछ नहीं
उस से ज्यादा ही बतलाते हैं
इसीलिये जब भी कोई शुभ काम होता है
सब से पहले हमीं को रंगवाते पुतवाते हैं
कभी भी नहीं रही, डोर बेल बजाने की प्रवृति
जीवित रखे जीवन मूल्य, संस्कार और संस्कृति
बड़े बाबू जी जब भी आते हैं
कुछ अलग सी सांकल बजाते हैं
सब के सब घर के जान जाते हैं
कि आ गये हैं बाबू जी
बहुयें अपने हाथ का हर काम छोड़ देती हैं
उनके आने की आहट पा
आदर में
घूंघट ओढ़ लेती हैं
अब तो पूरे मुहल्ले के
किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के
घर नहीं अब फ्लैट हैं
गेट हैं इक पल्ले के
खुलते हैं सिर्फ एक झटके से
पूरा घर दिखता बेखटके से
दो पल्ले के किवाड़ में
एक पल्ले की आड़ में
घर की बेटी या नव वधु
किसी भी आगन्तुक को
जो वो पूछता बता देती थीं
अपने को, चेहरा और शरीर छिपा लेती थीं
अब तो धड़ल्ले से खुलता है
एक पल्ले का किवाड़
न कोई पर्दा न कोई आड़
गंदी नजर, बुरी नीयत, बुरे संस्कार
एक साथ भीतर आते हैं
फिर बाहर नहीं जाते हैं
कितना बड़ा आ गया है बदलाव
अच्छे भाव को अभाव,
स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव
सब हुआ चुपचाप
बिन किसी हल्ले गुल्ले के
अब घरों में किवाड़ कोई नहीं लगवाता
दो पल्ले के
अपनों में नहीं रहा वो अपनापन
एकाकी सोच हर एक है एकाकी मन
स्वार्थी जन
अपने आप में रखना चाहता है
मस्त बिल्कुल इकलल्ला
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में
दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला

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अब और नहीं, अब और नहीं….

भारतीय वायुसेना के जवानों ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार किए बिना प्रक्षेपास्त्रों के जरिए ऐसा धावा बोला कि पाकिस्तान और आतंक के आकाओं को भनक तक नहीं लग सकी। भारत ने भारतीय महिलाओं का सिंदूर उजाड़ने वाले हमले का जवाब भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए ही दिया।

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मैजेस्टिक टॉकीज को बचाने के लिए महर्षि ने बेच दिया अपना सबकुछ

क्या आप जानते हैं कि जोधपुर के एक सिनेमा संचालक ने आज़ादी के तुरंत बाद अंग्रेज़ अधिकारियों से कागज़ी लड़ाई लड़ते हुए अपने थिएटर के लाइसेंस को बचाने के लिए अपना सब कुछ बेच डाला था?

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