बलवंत राज मेहता
वरिष्ठ पत्रकार
एक ऐसा युवक, जिसने उड़ने का सपना देखा—पर पंखों से नहीं, अपने हौंसले से।
जहाँ लोग साँप का नाम सुनते ही डर के मारे चीख उठते हैं, वहीं चमनसिंह चौहान साँपों से प्रेम करता है।
उसे देखकर लगता है जैसे वह धरती पर प्रकृति का एक सच्चा प्रहरी है,
जो हर बार मौत से आँख मिलाकर, जीवन को बचाने निकलता है।
हर बार जब कोई विषधर रेंगता है आबादी की तरफ,
चमनसिंह उस परछाईं की तरह पहुँचता है, जो जीवन को ढक लेती है—सुरक्षित कर देती है।
वह साँप को पकड़ता नहीं,
बल्कि मानो उसे समझाता है,
जैसे एक माँ अपने बच्चे को कहती है—“बेटा, तू यहाँ नहीं, वहाँ जा, जहाँ तुझे कोई चोट न पहुँचाए।”
जिस तरह कोई कलाकार रंगों से कैनवास को जीवंत करता है,
वैसे ही चमनसिंह अपनी सावधानी, ज्ञान और प्रेम से हर साँप को जीवनदान देता है।
वह कोई सुपरहीरो नहीं, न ही उसके पास कोई जादुई छड़ी है,
पर उसके हाथों में है विश्वास, उसकी आँखों में साहस, और उसके दिल में दया का जंगल।
चमनसिंह चौहान का जीवन इस बात का प्रमाण है
कि जब कोई अपने डर को दोस्त बना ले,
तो वह दूसरों के डर को भी चैन में बदल सकता है।
“कभी-कभी सच्चा नायक वो होता है,
जो शोर नहीं करता, पर हर फुफकार को शांत कर देता है।
जो जानवरों की भाषा नहीं बोलता,
पर उनके मन की बात समझता है।
वो जो डर से भागता नहीं,
उसे अपने साहस से थाम लेता है।
वो चमनसिंह होता है—सांपों का दोस्त, इंसानियत का प्रहरी।”